हरिद्वार, 2 अगस्त (ट्रिन्यू)
‘पारम्परिक भारतीय चिकित्सा का आधुनिकीकरण : लोक स्वास्थ्य एवं औद्योगिक परिप्रेक्ष्य’ विषय पर अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलाधिपति स्वामी रामदेव ने कहा कि प्रकृति से ही हमारी संस्कृति की पहचान होती है और इसी से हमें समृद्वि व स्वास्थ्य भी मिलता है। आज करोड़ों लोगों ने अपनी गृह वाटिका में तुलसी, एलोवेरा व गिलोय को स्थान दिया है, इसमें आचार्य बालकृष्ण का बहुत बड़ा योगदान है। पतंजलि अनुसंधान संस्थान के अध्यक्ष एवं पतंजलि वि.वि. के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि पतंजलि के शोध व आयुर्वेदिक दवाओं की दुनिया में स्वीकार्यता बढ़ी है। उन्होंने कहा कि हम सभी को मिलकर भारत को पुनः विश्वगुरु बनाना है। मुख्य अतिथि अमेरिका के डाॅ. यूएन दास ने ड्रग डिस्कवरी व क्लीनिकल ट्रायल की प्रक्रिया को विस्तार से समझाया और पौष्टिक आहार एवं नियमित योग-व्यायाम को अपने जीवन-शैली में जोड़ने की सलाह दी। आयोजन समिति के अध्यक्ष डाॅ. वेदप्रिया ने जानकारी दी कि सम्मेलन में प्रत्यक्ष एवं परोक्ष रूप से 21 देशों के 50 से अधिक शिक्षण संस्थानों से हजारों प्रतिभागी जुड़े हैं। आचार्य डाॅ. राजेश मिश्रा ने वैदिक पादपवर्गिकी विषय पर, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. एचबी सिंह ने जैविक कृषि, डीआरडीओ के वैज्ञानिक के डाॅ. रंजीत सिंह ने सीबकथोर्न विषय पर अपने अनुभव साझा किये। आईआईटी गुवाहटी की प्रो. राखी चतुर्वेदी ने प्लांट टिशू कल्चर तकनीक, तमिलनाडु कृषि वि.वि. के डाॅ. के राजामणि ने औषधीय पादप विषय पर, इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय हरियाणा के कुलपति प्रो. जेपी यादव ने आयुर्वेद से डेंगू वायरस के नियंत्राण पर विस्तार से प्रकाश डाला। एचपीयू शिमला के प्रो. एसएस कंवर ने बौद्धिक सम्पदा, दिल्ली वि.वि. के प्रो. रूपम कपूर ने मलेरिया के निदान में आयुर्वेद की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की।
भारत स्वाभिमान के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी स्वामी परमार्थदेव ने वर्तमान की शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व वैश्विक समस्याओं के समाधन में विद्या सम्पन्न एवं योगमय जीवन तथा आत्मानुकूल आचरण को समाधान के रूप में प्रस्तुत किया।