शारा
इस नाम की दो मूवी बन चुकी हैं। एक 1981 में असरानी वाली, जिसमें हीरो मेडिकल क्षेत्र में चल रही हेराफेरी का पर्दाफाश करता है, जबकि इससे पहले इसी नाम की मूवी 1959 में रिलीज हुई थी। यह फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट थी। यह फिल्म मधुबाला की थी, जिसमें उन्होंने डबल रोल किया था। वह जमाना मधुबाला का था इसलिए फिल्म भी उनके बलबूते पर चली। भारत भूषण तो सिर्फ हीरो ही थे। शुरू में तो इस फिल्म ने खूब भीड़ इकट्ठी की, लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता भीड़ कम होती गयी परंतु इतनी कम नहीं कि फिल्म ही फ्लॉप हो जाये। कहानी सीधी-सादी थी। जो सस्पेंस था, उसे दर्शक आरंभ में ही पहचान गये कि हीरो ब्लैक मार्केट में नामी हीरालाल के बेटे हैं। बस यही बात फिल्म के गुब्बारे में छेद करने के लिए काफी है। फिल्म इसलिए दौड़ पड़ी क्योंकि उन दिनों मधुबाला और भारत भूषण के फिल्मी रोमांस के खूब किस्से चल रहे थे। यह बात अलग है कि मधुबाला की सहेली भारत भूषण की पत्नी थी। इसी नाते उनकी फिल्मी अंडरस्टैंडिंग खूब बनी और केमिस्ट्री भी। इस जोड़े ने फिल्म इंडस्ट्री को बड़ी ही खूबसूरत फिल्में दीं। ‘बरसात की रात’ फिल्म को कौन भूल सकता है? जब बरसात में भीगी मधुबाला के सौंदर्य के वशीभूत होकर वह ‘ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात’ गाता है। मधुबाला के हुस्न का सांगोपांग रसवर्णन शायद ही किसी फिल्म में हुआ हो। उसी जोड़े ने ‘कल हमारा है’ जैसी फिल्म दी। यह फिल्म के. अमरनाथ के प्रोडक्शन में एसके प्रभाकर ने निर्देशित की थी। इसी फिल्म के बारे में के. अमरनाथ की बेटी लिखती हैं कि उनके पिता की प्रोडक्शन में बनी तमाम फिल्मों में से यही एक फिल्म उनके दिल के करीब है। मनोज कुमार भी यही कहते हैं। उनका तो यहां तक कहना है कि उपकार के हीरो का चरित्र उन्होंने इसी फिल्म के हीरो के चरित्र को लेकर गढ़ा था। जब यह फिल्म बन रही थी तो वह लगातार इस फिल्म (कल हमारा है) के सेट पर आते थे। एक और बात पाठकों को बता दूं कि मधुबाला (बाला) पब में नाचती हैं, वह सीन सीधा फिल्म ‘हॉफ टिकट’ से उठाया गया है। इसके लोकप्रिय होने की दूसरी बड़ी वजह इसका संगीत है। ‘चल उड़ जा रहे पंछी’ गीत को कंपोज करने वाले चित्रगुप्त थे। वही चित्रगुप्त जो बिहार के गोपालगंज के श्रीवास्तव खानदान से फिल्मी संगीत में अपनी किस्मत आजमाने आये थे। आपको याद है आम्रपाली के दिल को छू लेने वाले सभी गाने चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किये थे। उन्होंने ही ऊंचे लोग, जरक, मैं चुप रहूंगी सरीखी फिल्मों में संगीत दिया। ‘छेड़ो न मेरी जुल्फें’ गीत में जो हीरो-हीरोइन के वार्तालाप (गीत) में अठखेलियां हैं, उसे संगीत से चित्रगुप्त ने ही कामयाब किया है। यह भी बताती चलूं कि उनके दो बेटे बॉलीवुड के महान संगीतकार हैं और नाम हैं आनंद और मिलिन्द। इस फिल्म का एक गाना चित्रगुप्त ने सुधा मल्होत्रा से भी गवाया है। वही साहिर वाली सुधा मल्होत्रा। कहते हैं कि दोनों में काफी प्यार था जबकि अमृता प्रीतम को लगता था कि साहिर केवल उसी पर मरते हैं। इसी भ्रम में वह एक बार साहिर से मिलने दिल्ली से मुंबई गयीं। मिलने क्या अपने प्यार का इजहार करने गयीं, लेकिन दोनों को खुश देखकर बिना कुछ कहे ट्रेन से वापस लौट कर आ गयीं। ये किस्से सुनने में इसलिए अच्छे लगते हैं क्योंकि हम उन किरदारों को स्वयं के बेहद करीब मानते रहे हैं और साहित्यिकता में वे हमारे रोल मॉडल भी रहे हैं। इस फिल्म में जो सब इंस्पेक्टर का रोल किया है वह हरि शिवदसानी थे। हरि शिवदसानी बबीता के पिता और साधना के चाचा जी थे। बॉलीवुड के चर्चित चेहरों पर खूब बातें हो चुकीं अब चलें फिल्म की कहानी की ओर।
कहानी में भारत (भारत भूषण) को अमीर लालची सेठ हीरालाल (जयंत) के यहां वर्कर दिखाया गया है। जैसे कि हीरालाल जिस काम में मशहूर है, वह भारत को उस बुजुर्ग को जान से मारने के लिए कहता है जो उसके कालाबाजारी के राज जानता है, जिसके लिए भारत इनकार करता है। इस पर वह स्वयं अपनी कार के नीचे उस व्यक्ति को कुचल देता है और इसका दोष भारत के माथे मढ़ देता है। इस पर भारत को जेल हो जाती है। वह जेल से फरार होकर सेठ हीरालाल से बदला लेने की ठान लेता है। अभी वह अपनी इस योजना को सिरे चढ़ाने की सोच ही रहा था कि उसे हीरालाल के घर के खंभे के पास छिपी खड़ी एक लड़की मिलती है जो सेठ के घर पैसे चुराने की नीयत से आई थी। उसने बताया कि उसका नाम मधु है और वह चोरी अपने लिए नहीं करना चाहती बल्कि उसका बाप पिछले दिनों एक एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल हो गया है और वह चुराए पैसों से उसका इलाज करना चाहती है। भारत मधु की मदद के लिए आगे आता है और उसके बाप के लिए दवाई खरीदता है। लेकिन जब मधु के घर जाता है तो उसके असमंजस का ठिकाना नहीं रहता जब उसे पता चलता है कि मधु का बाप कोई और नहीं, वही है जिसकी हत्या के कारण उसे जेल हुई है। हालांकि वह व्यक्ति भारत को नहीं पहचान पाता। इसके बाद भारत मधु के परिवार की आर्थिक तौर पर मदद करता है। धीरे-धीरे मधु और भारत के बीच इश्क हो जाता है। इस पर मधु अपनी बहन वेला को घर लाने के लिए कहता है जो दिल्ली में पढ़ने के लिए गयी है, लेकिन पैसों के अभाव के चलते वह पढ़ाई छोड़कर पब में नाचना शुरू करती है। जब भारत दिल्ली जाकर उसे समझाने की कोशिश करता है, वह उलटे उस पर आसक्त हो जाती है। लेकिन जब उसे मधु के भारत के साथ रिश्ते की बात पता चलती है तभी पीछे हटती है। सच्चाई का पता लगने पर वह अपनी बहन मधु से मिलने घर के लिए जब रवाना होती है, उसका रास्ते में ही कत्ल हो जाता है और कातिल कोई और नहीं बल्कि हीरोलाल ही है। इस बार भी वह दोष भारत के माथे ही मढ़ देता है। उसे फिर कैद हो जाती है। जब अदालत में कार्यवाही चलती है तो पता चलता है कि भारत हीरालाल का ही बेटा है जिसे उसके रिश्तेदार बचपन में ही चुराकर ले गये थे। क्योंकि वे सेठ हीरालाल से जलते थे। जैसे ही भारत को जज जेल भेजता है, हीरालाल कोर्ट में बोल उठता है कि बेला का कत्ल उसने किया है और यह भी बताता है कि जितने भी काले कारनामे किये हैं, उसने ही किये हैं और भारत को फंसा दिया है जिस पर भारत रिहा हो जाता है और सारा परिवार मिल जाता है। कहानी यहीं खत्म हो जाती है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : के. अमरनाथ
निर्देशक : एसके प्रभाकर
संगीत : चित्रगुप्त
गीत : शैलेंद्र और मजरूह सुलतानपुरी
सितारे : मधुबाला, भारत भूषण, जयंत, मुराद, हरि शिवदसानी आदि
गीत
आ आ मेरी ताल पे : गीता दत्त
गम की बदली में चमका : सुधा मल्होत्रा, मोहम्मद रफी
घर से तो कट चुका पत्ता : मोहम्मद रफी
इरादा कत्ल का है : आशा भोसले
जाओ रसिया हटो जाओ : उषा व लता मंगेशकर
यह सच है ऐ जहां वालो : मोहम्मद रफी
झुके हैं बादल बालों के : आशा भोसले, रफी