ओमप्रकाश कादयान
लघु और सार्थक रचना होने के कारण लोकप्रिय विधा है लघुकथा। यही कारण है कि लघुकथाएं खूब लिखी जा रही हैं। पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। वर्तमान में हरियाणवी में भी खूब लिखा जा रहा है। इसी कड़ी में साहित्यकार मधुदीप का लघुकथा संग्रह ‘म्हारी छटमां लघुकथाएं’ प्रकाशित हुआ है, जिसमें 65 हरियाणवी लघुकथाएं शामिल की गई हैं।
कथाकार मधुदीप की हिंदी लघुकथाओं का हरियाणवी में अनुवाद किया है महिला साहित्यकार डॉ. रमाकांता ने तथा इस पुस्तक का संपादन किया है वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मधुकांत ने। लेखक मधुदीप ने अपने आस-पास के परिवेश, सामाजिक ताना-बाना, राजनैतिक चालें, धार्मिक सद्भावना व सांप्रदायिकता पर कुशलतापूर्वक अपनी लेखनी चलाई थी। विभिन्न सामाजिक मुद्दों, अच्छाइयों-बुराइयों, हमारे समाज का छल-कपट, टूटते रिश्ते, बिगड़ते संबंध, बिखरते परिवारों पर निसंकोच, निडर होकर निष्पक्ष लेखनी चलाई है। उन्होंने अपनी लघुकथाओं में मानवीय संवेदनाओं, तीज-त्योहारों, समृद्ध परंपराओं व प्राकृतिक सौंदर्य का प्रभावशाली ढंग से चित्रण किया है।
इन लघुकथाओं में शहर की घुटन, स्वार्थ परायणता के साथ-साथ गांव की जमीन, उनके विखंडित होते मूल्यों तथा बदलते परिवेश का सजीव चित्रण है। इन लघुकथाओं में समाज का हर तबका अपनी-अपनी समस्याओं से जूझता नजर आता है। लेखक ने समाज की कड़वी सच्चाइयों के साथ दार्शनिक अवधारणाओं, मिथकों, सांस्कृतिक प्रतीकों के साथ अपने समय का खूब सामंजस्य बिठाया है। नैतिक व सांस्कृतिक विघटन, मूल्यहीनता, मनुष्य का मनुष्य के प्रति बढ़ता दुर्व्यवहार, सत्ता का अथाह मोह समाज को किस तरफ ले जा रहा है, इन सभी की चिंता व चिंतन इन लघुकथाओं में है। अनुवादक डॉ. रमाकांता ने बेहतर प्रयास किया है कि इन लघुकथाओं को ठेठ हरियाणवी में ढाला जाए, फिर भी हरियाणवी शब्दों को लिखने में कई जगह चूक लगती है।
पुस्तक : म्हारी छटमां लघुकथाएं लेखक : मधुदीप अनुवादक : डॉ. रमा कांता संपादक : मधुकांत प्रकाशक : लिटरेचर लैंड, नयी दिल्ली पृष्ठ : 100 मूल्य : रु. 395.