प्रतिभाएं सहेजें
मोदी सरकार ने यूक्रेन में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की सकुशल वापसी के लिए कूटनीतिक, व्यावहारिक एवं सुरक्षित प्रयास किए। विदेशों से मेडिकल पढ़ाई कम खर्चे पर, कम प्रतिद्वंद्विता एवं कम संसाधनों की उपलब्धता पर भी संपन्न हो जाती है। जबकि देश में मेडिकल शिक्षण संस्थानों की फीस भी काफी ज्यादा है। सरकारों से अपेक्षा है कि वह देश में मेडिकल शिक्षण संस्थानों के ढांचागत विकास में और मजबूती लाएं। अपने देश का हुनर विदेशों को सुदृढ़ करने में लगाने की बजाय देश में ही चिकित्सा सेवाएं बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए।
युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद
विकल्प का संकल्प
यूक्रेन-रूस विवाद के बाद यूक्रेन से भारतीयों छात्राओं की सकुशल वापसी के पश्चात उनके भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग गया है। ऐसे में सरकार को स्वास्थ्य बजट बढ़ा कर जिला अस्पतालों के साथ मेडिकल कालेज खोलने की व्यवस्था करनी चाहिए। इससे एक तो अस्पताल की हालत सुधरेगी, दूसरे मेडिकल शिक्षा का विस्तार होगा तथा विदेशों से डाक्टर बनने की कसक भी कम हो जाएगी। इसके अतिरिक्त सरकार तथा छात्रों को पारम्परिक होम्योपैथिक तथा आयुर्वेदिक मेडिकल शिक्षा को भी बढ़ावा देना चाहिए। सरकार द्वारा प्राइवेट मेडिकल कालेजों पर लिया गया फैसला स्वागतयोग्य है।
एम.एल. शर्मा, कुरुक्षेत्र
मेडिकल कॉलेज खोलें
यूक्रेन में फंसे भारतीय छात्रों को मोदी सरकार ने अपने रणनीतिक तथा राजनीतिक कौशल का परिचय देकर सुरक्षित निकाला। प्रश्न उठता है कि इन विद्यार्थियों की आगे की पढ़ाई का क्या होगा? निश्चित ही मोदी सरकार को इन छात्रों की पढ़ाई का इंतजाम अपने देश में ही करना होगा। अगर देश के तथाकथित नेता लोग समय पर देश की ग्राउंड स्तर की समस्याओं को पढ़ते-समझते तो देश की बहुत-सी समस्याओं का निराकरण हो गया होता। पर्याप्त संख्या में मेडिकल कॉलेज होते। देश के युवाओं को मेडिकल में अपना करिअर बनाने के लिए भटकना नहीं पड़ता। सरकार को चाहिए कि अविलंब देश में पर्याप्त मात्रा में मेडिकल कॉलेज खोले।
सत्यप्रकाश गुप्ता, बलेवा, गुरुग्राम
गंभीर विचार हो
रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण यूक्रेन में फंसे भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने के लिए भारत सरकार ने आॅपरेशन गंगा चला कर सराहनीय कार्य किया है। इनमें बहुत से छात्र ऐसे भी हैं जिन्हें अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ कर ही आना पड़ा। हमारे देश में मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्र इतनी संख्या में विदेशों में क्यों जाते हैं, इसका मुख्य कारण देश में मेडिकल कालेजों की कमी व मेडिकल की पढ़ाई का अत्याधिक महंगा होना है। इस कारण देश का प्रतिभाशाली वर्ग बाहर के देशों में अपनी सेवाएं देता है। सरकार को इस विषय पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
आईना दिखाया
विदेशों में डॉक्टरी पढ़ाई के चलते जो सवाल उठे हैं वह रूस-यूक्रेन युद्ध और उसके बाद मेडिकल पढ़ाई में मची अफरा-तफरी के मद्देनजर जायज हैं। क्या वजह है कि देश की आजादी के 75 साल बाद भी हमारे यहां पर्याप्त मेडिकल कॉलेज नहीं खुल पाए और छात्रों को उसके लिए विदेश की दौड़ लगानी पड़ रही है। हमारी प्रतिभाएं क्यों विदेश जाने को मजबूर हैं? रूस-यूक्रेन युद्ध ने हमें आईना दिखाया है जो हमारी शिक्षा संसाधन की संपन्नता के खिलाफ है। खैर, देर से ही सही हम जागे और अब प्रतिभाओं के विदेशी पलायन को देश में ही रोकें ताकि कमजोर वर्ग का व्यक्ति भी अपने होनहार को देश में ही पढ़ा-लिखा सके।
अमृतलाल मारू, दसई, धार, म.प्र.
पहुंच में हो शिक्षा
यूक्रेन से वापस आये छात्रों को किसी प्रकार की कठिनाई से बचाने के लिए देश में मेडिकल कॉलेजों की संख्या तथा छात्रों की सीटें बढ़ा देनी चाहिए ताकि विद्यार्थियों को विदेशों में न भटकना पड़े। सरकारी तथा गैर-सरकारी मेडिकल कॉलेजों में फीस कम करके आम आदमी की पहुंच के अंदर कर देनी चाहिए। वहीं सरकार मेडिकल शिक्षा देने वाले निजी कॉलेजों को आर्थिक सहायता तथा अनुदान दे। इसके साथ ही जो विद्यार्थी यूक्रेन से डॉक्टरी की पढ़ाई बीच में छोड़ कर आए हैं उन्हें उनके शहर के नजदीक मेडिकल कॉलेज में बिना कोई पैसा लिये पढ़ाई पूरी करने की सुविधा देनी चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
पुरस्कृत पत्र
गुणवत्ता और विस्तार
सरकारी कॉलेजों में पढ़ाई सस्ती है लेकिन सीटें कम हैं। वहीं निजी क्षेत्र में सीटें ज्यादा हैं तो पढ़ाई महंगी है। निजी संस्थान अपने अस्पताल और छात्र दोनों से कमा रहे हैं। दोहरे लाभ को रोकने के लिए सरकार निजी संस्थानों का जरूरी ऑडिट और फीस निर्धारण करे। नए सरकारी कॉलेज खुलें तथा पुरानों का विस्तार हो। देश में चिकित्सा संस्थान खोलने-चलाने की लम्बी, जटिल और खर्चीली प्रक्रिया को सुगम और सस्ता किया जाये। इंजीनियरिंग कॉलेजों की अधिकता ने देश में इंजीनियरिंग का स्तर गिरा दिया है, अतः सुधार के साथ उच्च गुणवत्ता कायम रखना भी जरूरी है।
बृजेश माथुर, बृज विहार, गाजियाबाद