अलका जैन ‘आराधना’
ऋतुराज वसंत जड़ एवं चेतन में नव जीवन का संचार करता है। वसंत ऋतु जितनी निराली है, उतनी ही खास है इससे संबंधित रागों की धुनें। वसंत की धुनों पर चर्चा से पहले आइये जानें ‘राग’ के बारे में। असल में राग शब्द संस्कृत की ‘रंज’ धातु से बना है। रंज मतलब-रंगना। अर्थात जो रचना मानव के हृदय को प्रसन्नता के रंग से रंग दे, वहीं राग कहलाती है। रागों का प्रयोग विभिन्न रसों व भावों को दर्शाने के लिए किया जाता है। हर राग के गायन की ऋतु निर्धारित है जैसे शिशिर ऋतु में राग भैरव, वसंत में राग हिंडोल, ग्रीष्म-राग दीपक, वर्षा-राग मेघ, शरद-राग मालकौंस तथा हेमंत ऋतु में राग श्री गाया जाता है। हर राग में कम से कम 5 स्वर तथा अधिकतम सात स्वर होते हैं। जिन रागों को दोपहर के 12 बजे से मध्यरात्रि तक गाया या बजाया जाता है उन्हें पूर्व राग, मध्य रात्रि से दोपहर के बीच गाए जाने वाले रागों को उत्तर राग तथा सुबह और शाम के समय गाए जाने वाले राग को संधिप्रकाश राग कहा जाता है।
वसंत ऋतु का राग
वसंत ऋतु में गाए जाने वाले राग वसंत में आरोह में पांच तथा अवरोह में सात स्वर होते हैं। यह प्रसन्नता का राग है। वैसे तो इसके गायन का समय रात्रि का अंतिम प्रहर है किन्तु यह दिन में या रात में किसी भी समय गाया जा सकता है। रागमला में इसे राग हिंडोल का पुत्र माना गया है। राग बहार भी वसंत व शरद ऋतु में गया जाने वाला अत्यंत मीठा राग है। खटके और मुरकियों का प्रयोग इसकी विशेषता है। म, प, ग, म, ध, नि, सा इसकी मुख्य पकड़ है। यह राग कई रागों के साथ मिलाकर भी गया जाता है। जिस राग के साथ इसे मिश्रित किया जाता है, उसे उस राग के साथ संयुक्त नाम से जाना जाता है। जैसे- वसंत बहार, भैरव बहार, बागे श्री बहार इत्यादि। वसंत में गाए जाने वाले राग भारतीय शास्त्रीय संगीत की गौरवशाली परंपरा को जीवन तो प्रदान करते ही हैं, साथ ही ये प्राणिमात्र का जीवन से अनुराग भी स्थापित करतें हैं।