घमंडीलाल अग्रवाल
विभिन्न विधाओं की लगभग 48 पुस्तकों के रचयिता गोविंद शर्मा की नवीनतम कृति है ‘यह कालीबंगा है।’ कृति में कालीबंगा के पुरास्थल के विषय में रोचक जानकारी प्रदान की गयी है। पुस्तक को राष्ट्रीय पुस्तक न्यास नयी दिल्ली ने सचित्र प्रकाशित किया है जो बच्चों के अलावा बड़ों के लिए भी उपयोगी है।
हनुमानगढ़ (राजस्थान) के सूरतगढ़ की ओर 32 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ‘कालीबंगा’ नामक गांव। इसके नामकरण के विषय में लेखक कहता है कि ‘बंगा’ का अर्थ है महिलाओं द्वारा हाथों में पहनी जाने वाली चूड़ियां और ‘काली’ तो रंग है ही। जब लोग यहां बसने आए, तब उन्हें यहां-वहां काले रंग की चूड़ियों के टुकड़े दिखे। बस, इसी वजह से यह ‘कालीबंगा’ कहलाया।
दरअसल, कालीबंगा पुरास्थल है। इसकी जानकारी सन् 1952 में मिली थी। तत्पश्चात् सन् 1961 से 1969 तक नौ सत्रों में उत्खनन किया गया। इसकी खुदाई में दो सभ्यताओं के अवशेष मिले- प्रारम्भिक हड़प्पाकालीन संस्कृति और विकसित हड़प्पाकालीन संस्कृति। लेखक का मत है कि यहां फेबरिक ‘ए’ से फेबरिक ‘एफ’ तक के ‘मृद्भांड’ (मिट्टी के बरतन) भी मिले हैं। घरों में पक्की ईंटों का उपयोग भी होता था। मृद्भांडों पर प्राकृतिक चित्रण भी होता था। कुछेक पर फूल-पत्तियों के बीच खड़ी बकरी व सांपों के काले चित्रण भी मिले हैं। यहां के अवशेषों को शानदार संग्रहालय में प्रदर्शित किया गया है जिसे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने बनाया है। संग्रहालय की स्थापना सन् 1985 में की गयी थी।
पुस्तक : यह कालीबंगा है लेखक : गोविंद शर्मा प्रकाशक : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास, नयी दिल्ली पृष्ठ : 24 मूल्य : रु. 65.