चंडीगढ़,13 मार्च (ट्रिन्यू)
सृजन की संवेदनशीलता व उसके हृदयग्राही होने पर बल देते हुए दैनिक ट्रिब्यून के संपादक नरेश कौशल ने कहा कि साहित्य कानों में रस घोलने वाला होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मातृ भाषा में अभिव्यक्ति सृजन को सर्वग्राही बनाती है। जिससे नयी पीढ़ी को साहित्य व समाचार पत्रों से जोड़ा जा सकेगा। सेक्टर-27 प्रेस क्लब में वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश सेठ की किताब ‘समय गवाह है’ और बलविंदर चाहल की पुस्तक ‘इटली में सिख सैनिक’ के अनुवादित संस्करणों के विमोचन कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता कौशल ने यह बात कही। उन्होंने कहा कि कभी इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के आगमन पर प्रिंट मीडिया व मुद्रित साहित्य के भविष्य को लेकर शंका जताई गई थी, लेकिन तमाम चुनौतियों के बावजूद उनकी मौजूदगी बरकरार है। साथ ही कहा कि तकनीकी अनुवाद कभी भी रचना के साथ न्याय नहीं कर सकता। उन्होंने नई पीढ़ी को सृजन से जोड़ने की वकालत की।
वरिष्ठ साहित्यकार सुरेश सेठ ने अकादमी सृजन व साहित्यिक सृजन के फर्क को रेखांकित करने पर बल दिया। उन्होंने सृजन के सरोकारों की आवश्यकता पर बल दिया। ‘समय गवाह है’ समय के सृजनकारों के कृतित्व- व्यक्तित्वों का संकलन है। वहीं ‘इटली में सिख सैनिक’- प्रथम विश्व युद्ध के दौरान इटली में सिख सैनिकों के साहस, वीरता व बलिदान की बानगी का चित्रण है। लेखक ने इटली जाकर जानकारी जुटाई व प्रचलित सिख सैनिकों की गाथाओं का जिक्र भी किया।
वक्ताओं ने सुभाष भास्कर के जीवंत अनुवाद को सराहा। कैलाश अहलूवालिया, अलका कलसरा, प्रेम विज, के.के. शारदा ने पुस्तक की विषयवस्तु की चर्चा की। सार्थक मंच संचालन विजय कपूर ने किया।