नयी दिल्ली, 14 जून (एजेंसी)भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी के शोधार्थियों के एक दल ने अत्यधिक मीठा खाने से लीवर में वसा (फैट) जमा होने की बीमारी से जुड़े कारणों का पता लगाया है। इस बीमारी को फैटी लीवर के नाम से भी जाना जाता है। शोधार्थियों के मुताबिक इस नयी जानकारी से लोगों को लीवर संबंधी गैर-अल्कोहोलिक रोग (एनएएफएलडी) के शुरूआती चरणों में मीठे की मात्रा घटाने के लिए जागरूक करने में मदद मिलेगी।
यह अध्ययन जर्नल ऑफ बायोलॉजिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित हुआ है। यह अध्ययन ऐसे समय में हुआ है, जब सरकार ने एनएएफएलडी को कैंसर, मधुमेह, हृदय संबंधी रोगों की रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया है। एनएएफएलडी, एक ऐसी मेडिकल स्थिति है जिसमें लीवर में अतिरिक्त वसा जमा होता है। इस रोग के लक्षण करीब 2 दशक तक भी नजर नहीं आते हैं। यदि इस रोग का समय पर इलाज नहीं किया जाता है तो अतिरिक्त फैट लीवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचा सकता है। यह रोग बढ़ने पर लीवर कैंसर का रूप भी धारण कर सकता है।
आईआईटी मंडी के स्कूल ऑफ बेसिक साइंसेज के एसोसिएट प्रोफेसर प्रसेनजीत मंडल ने बताया, ‘‘एनएएफएलडी का एक कारण मीठे का अधिक मात्रा में उपभोग है। मीठा और कार्बोहाइड्रेड के अधिक मात्रा में उपभोग के चलते लीवर उन्हें एक प्रक्रिया के जरिए फैट में तबदील कर देता है, इससे फैट लीवर में जमा होने लग जाता है।’
आबादी के करीब 9 से 32 प्रतिशत हिस्सा फैटी लीवर का शिकार
मंडल ने बताया कि भारत में एनएएफएलडी आबादी के करीब 9 से 32 प्रतिशत हिस्से में पाया जाता है। अध्ययन दल ने दावा किया है कि मीठे और लीवर में फैट के जमा होने के बीच संबंध का खुलासा होने से इस रोग का उपचार ईजाद करने में मदद मिलेगी। अध्ययन दल में जामिया हमदर्द इंस्टीट्यूट और एसजीपीजीआई, लखनऊ के शोधार्थी भी शामिल थे।