शारा
फिल्म कल्पना भी दो बार बनी और दोनों बार इसमें पद्मिनी ने काम किया था। एक फिल्म में काम करके तो वह अपने आपको खुशनसीब मानती हैं। यह फिल्म थी उदय शंकर द्वारा निर्देशित फिल्म, जिसमें उन्होंने बतौर हीरो भी काम किया था और उनकी नायिका थी अमला उदयशंकर। इसी फिल्म से पद्मिनी ने बतौर डांसर डेब्यू भी किया था। तब उनकी उम्र 16 साल की थी। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नही देखा। दूसरी फिल्म में उनके हीरो अशोक कुमार थे। फ्लैशबैक के पाठकों को शायद पद्मिनी का चेहरा याद नहीं आ रहा है। इसीलिए बता दूं कि यह पद्मिनी ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में राजकपूर की नायिका बनी थी और जिसने गीता गाया था ‘ओ बसंती पवन पागल।’ एक और हेल्पलाइन बता दूं कि यही वह युवती है जो काजल फिल्म में धर्मेंद्र की नायिका बनी थी तथा जिसके रूप-सौंदर्य की तारीफ में धर्मेंद्र ने गीत गाया था, ‘तुम्हारा चाहने वाला।’ उदयशंकर की इसी फिल्म से पद्मिनी की बड़ी बहन ललिता ने भी डेब्यू किया था। बात इतनी सी थी कि उदयशंकर की इस फिल्म में डांसर चाहिए थी सो ट्रावनकोर की इन सिस्टर्स के अलावा कौन अच्छा डांस कर सकता है? रागिनी भी इन्हीं की बहन थी। शास्त्रीय नृत्य में पारंगत इन तीनों बहनों को ट्रावनकोर सिस्टर्स कहा जाता है। वैजयन्ती माला से पूर्व राजकपूर इसी तेलुगू हीरोइन के दीवाने थे और उन्हीं के कहने से पद्मिनी को हिंदी फिल्में मिलने लगीं। लेकिन नृत्य में पारंगत होने के कारण पचासवें व साठोत्तर में इन्हें हीरोइनों में सबसे ज्यादा मेहनताना मिलता था। नृत्य और साथ में गठीला शरीर-बॉलीवुड को और क्या चाहिए? कल्पना फिल्म उदयशंकर की वाकई कल्पना थी। यह मूवी कम और डांसर बैले ज्यादा थी। पाठक जानते होंगे कि उदयशंकर डांस ट्रूप ले लेकर विदेश जाते थे और उन्होंने अल्मोड़ा में एक डांस स्कूल भी खोल रखा था, जिसकी देहरी पर माथा टेकना हर कलाकार चाहे वह डांसर हो या चित्रकार या फिर शायर, अपना सौभाग्य समझते थे। सभी एक बार इल्म की इस गंगा में डुबकी लगाने जरूर आते थे। यह उदयशंकर रविशंकर के भाई थे। इस फिल्म की शुरुआत ही 1940 के बाम्बे फिल्म समारोह से हुई थी, जिसमें इस ड्रांस ट्रूप ने इतनी अच्छी पेशकश दी थी कि प्रस्तोता उदयशंकर को समारोह के आयोजक को कहना पड़ा था कि आपको उन्हें पैसे का भुगतान करना पड़ेगा क्योंकि इस प्रोग्राम से समारोह की शान बढ़ी है। यही फिल्म का प्रारंभिक सीन था जो 2008 के इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल ऑफ इंडिया में पुरातत्वों में से अनोखी धरोहर बताकर दर्शकों को दिखाई गयी थी। यह भारतीय सिनेमा की पहली मूवी थी, जिसमें डांसर ही हीरो थे और वो समूचे रूप में डांस बैले ही थी। इस फिल्म से ही उषा किरण ने भी डेब्यू किया था। इसकी पटकथा लिखी थी अमृत लाल नागर ने, जबकि मूल कथा उदयशंकर की ही थी। इसका संगीत दिया था विष्णुदास सहराली ने, जबकि गीतों की रचना सुमित्रानंदन पंत ने की थी। जैमिनी स्टूडियो की इस प्रोडक्शन को कोरियोग्राफी का योगदान दिया था के. रामनाथ ने। मजेदार बात यह है कि इस फिल्म के बाद उदयशंकर ने कभी कोई और फिल्म प्रोड्यूस नहीं की। लेकिन वह अपने इसी मानस पुत्र के कारण सिनेमाजगत में नाम कमा गये।
आलोच्य फिल्म में हीरो थे अशोक कुमार और यह आरके राखन ने निर्देशित की थी। इसमें भी ट्रावनकोर सिस्टर्स ने काम किया था। यानी पद्मिनी के साथ उनकी छोटी बहन रागिनी भी थी। यह फिल्म भी डांस पर केंद्रित थी। दो-दो नर्तकियों का ठरक जो पूरा करना था। मूलत: यह सस्पेंस फिल्म थी। हां, रोमांटिक सीन होने के कारण कभी-कभी रोमांटिक मूवी का भ्रम होता था। 1960 में रिलीज इस फिल्म को संगीत दिया था संगीत में पंजाबी लोकधुन को तरजीह देने वाले ओपी नैयर ने और उनके बोल रचे थे हरसत जयपुरी, कमर जलालावादी, राजा मेहंदी हसन और जां निसार अख्तर ने। जां निसार अख्तर आजकल फिल्मों में छाये लेखक व शबाना आजमी के पति जावेद अख्तर के पिता थे। जानी-मानी ग़ज़ल गायिका बेगम अख्तर उन्हीं की ही बहन थी। जहां तक इस फिल्म का सवाल है, उस समय सस्पेंस फिल्मों की शुरुआत हो चुकी थी और मूलत: यह सस्पेंस फिल्म ही कही जा सकती है। बेशक इसमें रोमांस रिश्ते-नातों की भी बात की है लेकिन सस्पेंस मूल है। अमर (अशोक कुमार) अपनी नन्ही बेटी के साथ विधवा मां के साथ मुंबई के घर में रहता है। उसकी पत्नी का निधन मुन्नी को जन्म देते ही हो गया था। लिहाजा वह भी अकेला है। घर की रोजी-रोटी चलाने के लिए वह स्थानीय भारती कला केंद्र में बतौर प्रिंसिपल की नौकरी करता है और एक मध्यवर्गीय जीवन जीता है। जब कॉलेज में गर्मी की छुट्टियां पड़ती हैं तो वह कश्मीर सैर के लिए जाता है। साथ में उसका बटलर डी सूजा भी जाता है। कश्मीर जाकर उसे कल्पना (पद्मिनी) नामक लड़की से प्रेम हो जाता है। चूंकि वह चित्रकार है, इसलिए वह पद्मिनी को अपनी कल्पनाओं में कैद भी करता है। वे दोनों कई बार मिलते हैं। वापसी में जब वह घर के लिए रवाना होता है तो ट्रेन में उसकी मुलाकात आशा नर्तकी (रागिनी) से होती है जिसे वह गाहे-बगाहे अपने कॉलेज में नृत्य प्रोग्राम देने के लिए बुलाता रहता है। एक दिन वह उसे अपनी मां और बेटी से मिलाने के लिए घर ले जाता है। आशा को दादी-पोती पसंद कर लेती हैं ताकि अमर उससे शादी कर ले। तभी वह क्या देखता है कि कल्पना (पद्मिनी) उसी के कॉलेज में प्रोग्राम पेश कर रही हैं। वह कल्पना से मिलता है। दोनों अपने रोमांस को ताजा करते हैं। आशा यह बात नोटिस करती है लेकिन चुपचाप सीन से हट जाती है। हालांकि, उसका दिल टूट चुका है। अमर के कहने पर कल्पना उसकी बेटी व मां से भी मिलती है। जब भी दोनों मिलते हैं तो अमर नोटिस करता है कि जोहर (इफ्तिखार) नामक बंदा हमेशा कल्पना के साथ आता है जिसे कल्पना अपना भाई बताती है। लेकिन कालांतर जब कल्पना की सच्चाई उसकी पृष्ठभूमि सामने आती है तो अमर के जीवन में क्या होता है? यह आप फिल्म देखकर ही बता सकते हैं। (वैसे आपको हिंट दें कि कल्पना की मां कोठेवाली थी तो जोहर कौन था?) यह सस्पेंस है।
निर्माण टीम
निर्देशक : आरके राखन
प्रोड्यूसर : टीएस गणेशन, अशोक कुमार
मूल व पटकथा लेखक : अख्तर-उल-इमान, जलाल मलीहावादी, आरके राखन
सिनेमैटोग्राफी : एनएल नागर
गीत : जां निसार अख्तर, हसरत जयपुरी, कमर जलालवादी, राजा मेहदी अली खां
संगीत : ओपी नैयर
सितारे : अशोक कुमार, पद्मिनी, रागिनी, इफ्तिखार आदि
गीत
तू है मेरा प्रेम देवता : मन्ना डे, मोहम्मद रफी
मैं खिड़की पे आऊंगी : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
प्यारा प्यारा है समां : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
आ आसालम आलेकुम बाबू : सुधा मल्होत्रा, आशा भोसले
हमें मारो न आंखों के बाण : आशा भोसले
सावन में हूं बेकरार : आशा भोसले
फिर भी है दिल बेकरार : आशा भोसले
आना आना अटरिया पे आना : आशा भोसले
हमको समझ न लीजिए : आशा भोसले
बेकसी हद से जब गुजर जाए : आशा भोसले