स्वामी विवेकानंद के पास एक युवक आया। आते ही उनके सामने अपनी परेशानी रख दी। कहने लगा कि, ‘मैं बहुत गतिशील हूं। ये हवा है न बिल्कुल ऐसे ही। सुबह से शाम तक इतना काम करता हूं मगर मेरे महाविद्यालय में सम्मान औरों को मिला। मुझे तो कोई मान पत्र दिया ही नहीं गया।’ उसकी बात सुनकर, विवेकानंद उसको अपने साथ जंक्शन तक ले गये। रेलगाड़ी के नजदीक ले जाकर वे उसे बोले, ‘देखो, यह है रेल का इंजन, इसके पास खड़े होकर देखो। काम करने वाली भाप का स्वर कोई नहीं सुनता, केवल व्यर्थ जाने वाली भाप ही शोर मचाती है। जो ऊर्जा और शक्ति तुम उपयोग कर रहे हो वह अपना काम पूरी शांति से कर रही है उसको चीखने और ढोल पीटने की कभी कोई जरूरत नहीं है। इसलिए हर बात का प्रचार और उपद्रव नकारात्मक है, इससे बचो।’ युवक उसी समय जाग्रत हो गया और बस हर समय काम पर ही ध्यान देने लगा। अब वह नाम पर आसक्त नहीं रहा।
प्रस्तुति : पूनम पांडे