हाल में ही विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) द्वारा जारी नयी रिपोर्ट ‘लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2022’ के अनुसार वैश्विक स्तर पर 1970 से 2018 के बीच 48 वर्षों के दौरान वन्य जीवों की आबादी में 69 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। स्तब्ध कर देने वाली बात है कि नदियों में पाये जाने वाले
जीवों की करीब 83 फीसदी आबादी अब नहीं बची है। 1970 के बाद फिशिंग 18 गुना बढ़ी है जिससे शार्क की आबादी में औसतन 71 फीसदी की कमी दर्ज की गई है।
रिपोर्ट के मुताबिक, जैव विविधता में सबसे ज्यादा नुकसान दक्षिण अमेरिका और कैरेबियन क्षेत्र में दर्ज किया गया है जहां वन्यजीवन में 94 फीसदी की गिरावट आई है। अफ्रीका में 66 फीसदी, एशिया और पैसिफिक इलाके में 55 फीसदी, उत्तरी अमेरिका में 20 फीसदी, यूरोप और मध्य एशिया में 18 फीसदी की रिकार्ड गिरावट दर्ज की गई है। मीठे पानी की मछली, सरीसृप और उभयचरों में पैटर्न सबसे अधिक स्पष्ट था। लिविंग प्लैनेट इंडेक्स (एलपीआई) में वन्यजीवों की 5230 प्रजातियों के 32,000 जीवों की आबादी का विश्लेषण किया है। यह इंडेक्स पिछले 50 वर्षों से स्तनधारी जीवों, पक्षियों, मछलियों, सरीसृपों और उभयचरों की आबादी को ट्रैक कर रहा है।
साल के अंत में दुनिया के कई देश मॉन्ट्रियल में जैव विविधता की रक्षा के लिए एक नयी वैश्विक योजना तैयार करने के लिए मिलने वाले हैं। एक सच्चाई यह भी है कि जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के जितने भी अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन और कार्यक्रम होते हैं, उनमें विकासशील और विकसित देशों के बीच आर्थिक मुद्दों पर विवाद होता है। विकसित देश अधिक जिम्मेदारी उठाना नहीं चाहते। वे चाहते हैं कि विकासशील देश ही दुनिया में गर्म होती जलवायु, कम होते जंगलों, विलुप्त होते प्राणियों, प्रदूषित होती नदियों, सभी को बचाने का काम करें। इन कामों के लिए वे पर्याप्त आर्थिक मदद देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। जैव विविधता के लिए आधुनिक विकास और प्रकृति संरक्षण दोनों के बीच तालमेल बैठाना बहुत जरूरी है नहीं तो इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा।
वास्तव में कोरोना का वैश्विक संकट इसका ही नतीजा था और अभी भी बरकरार है। जीव-जंतुओं और पौधों की लगभग 50 प्रजातियां रोजाना विलुप्त हो रही हैं इसलिए अब पारिस्थितिकी तंत्र का संरक्षण किया जाना जरूरी है। हमारे पूर्वज पर्यावरण, सामाजिक और आर्थिक प्रबंधन में माहिर थे। उनके संस्कार जनित प्रयासों से ही हम जैव विविधता बचा पाये हैं और प्रकृति के साथ संतुलन बनाते हुए सबकी जरूरत पूरी करते रहे। पर्यावरण का निरंतर क्षरण रोज की बात है पर अब तो दुनिया भर में पाये जाने वाले पेड़-पौधों और जीव-जन्तुओं की करीब एक तिहाई प्रजातियां भी विलुप्त होने के कगार पर हैं। जनसंख्या दिन-ब-दिन बढ़ रही है, वहीं मानव अन्य जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को नष्ट कर उनकी जगह भी पसरता जा रहा है। जैव विविधिता संरक्षण बिना विकास का कोई महत्व नहीं है।
लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट के अनुसार, ताजे पानी के इलाकों में जैव विविधता में ज्यादा कमी आई है। ताजा पानी धरती के महज एक प्रतिशत हिस्से पर मौजूद है। मगर दुनिया की 50 प्रतिशत से ज्यादा आबादी ताजे पानी के 3 किलोमीटर के दायरे के अंदर रहती है। ऐसे में मानव की बढ़ती आबादी का दबाव बाकी जीवों पर आयेगा ही। इसी दबाव के कारण जलचरों की आबादी में 83 प्रतिशत की कमी आई है।
जंगलों की ग्लोबल वार्मिंग को रोकने की भूमिका के बारे में सभी जानते हैं। दुनियाभर के जंगल वातावरण से 7.6 गीगाटन कार्बन डाई ऑक्साइड सोखते हैं जो मानव गतिविधियों से दुनिया में पैदा हुई कार्बन का 18 प्रतिशत होती है। जंगल कुल मिलाकर इस धरती को 0.5 डिग्री ठंडा रखते हैं। मगर इसके बावजूद हम 10 मिलियन हैक्टेयर
जंगल हर साल खो देते हैं यानी हर साल एक पुर्तगाल खो रहे हैं।
भारत में सबसे ज्यादा जैव विविधता है। इसके संरक्षण की दिशा में काम करना जरूरी है। देश की आधी आबादी को कृषि से रोजगार मिल रहा है। हमारी सोच होनी चाहिए कि जीव-जंतुओं का महत्व हमसे कम नहीं है। संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा है कि सभ्यता और संस्कृति का बड़ा महत्व है। दुनिया को मिलकर यह प्रयास करना चाहिये कि कौन सा प्रयास बेहतर है जिसको और जगह भी अपनाया जा सके। विश्व की बढ़ती आबादी की खाद्य एवं पोषण सुरक्षा में कृषि जैव विविधता के संरक्षण से टिकाऊपन बनाये रखने के लिए अब ठोस प्रयास जरूरी हैं।
जैव विविधिता का क्षरण अकेले किसी एक देश अथवा महाद्वीप की समस्या नहीं है और न ही कोई अकेला देश इस समस्या से निपटने हेतु उपाय कर सकता है। वैश्विक समुदाय को जैव विविधिता संकट के लिए जिम्मेदार माना जाता है और यह समस्या भी वैश्विक समुदाय की ही है। सबकी नैतिक जिम्मेदारी है कि मिल जुलकर इस समस्या से निपटने के रास्ते तलाशें और योजनाएं क्रियान्वित करें। वर्तमान में विकास की दुहाई देकर जैव विविधिता का जिस प्रकार शोषण किया जा रहा है उसका दूरगामी दुष्परिणाम भी विकास पर ही देखने को मिलेगा। जैव विविधता पृथ्वी की सबसे बड़ी पूंजी है। पर विकास का इस पर विपरीत असर पड़ रहा है। आवश्यक है कि विकास के लिए जैव विविधिता के साथ बेहतर तालमेल बनाया जाये।
देश के प्राकृतिक संसाधनों का ईमानदारी से दोहन और जैव विविधता के संरक्षण के लिए सरकारी प्रयासों के साथ-साथ जनता की सकारात्मक भागीदारी की जरूरत है। इसके लिए जन जागरूकता लानी होगी। जैव विविधता संरक्षण का सवाल पृथ्वी के अस्तित्व से जुड़ा है। इसलिए विश्व के जीन पूल को कैसे बचाया जाये इस पर पूरी दुनिया को गंभीरता से विचार करते हुए ठोस निर्णय लेना होगा।