सुरेंद्र मेहता/हप्र
यमुनानगर, 28 जुलाई
हरियाणा के कई इलाकों में धान की फसल पर संकट के बादल छा गए हैं। धान की पौध में ऐसी बीमारी लगी है, जिसके चलते धान के पौधे छोटे-बड़े होने लगे हैं। एक जैसा पानी, एक जैसा बीज का पौधा होने के बावजूद पौधों का साइज छोटा बड़ा होने के बाद किसानों की नींद हराम है। यमुनानगर जिला ही नहीं आसपास के अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल के कई इलाके इस बीमारी की चपेट में है। बीमारी लगातार बढ़ रही है। उससे बचने के लिए किसान लगातार अलग-अलग दवाइयों का छिड़काव कर रहे हैं, लेकिन फायदे के बजाय नुकसान होने लगा है। एक एकड़ में दवाई के छिड़काव पर 6 से 10 हजार का खर्चा आ रहा है, लेकिन इसके बावजूद रोग बढ़ रहा है।
यमुनानगर जिला के रादौर, साढौरा, जगाधरी, सरस्वतीनगर, खिजराबाद ब्लॉक सहित कुरुक्षेत्र के लाडवा, शाहाबाद, अंबाला के बराड़ा, नारायणगढ़ सहित कई इलाकों में इस बीमारी का जबरदस्त प्रकोप देखने को मिला है। मुसिंबल गांव के पूर्व सरपंच व किसान हवा सिंह का कहना है कि पिछली बार ज्यादा वर्षा होने से गेहूं की फसल बुरी तरह प्रभावित हुई, किसानों पर कर्जा चढ़ गया। अब धान की फसल में बीमारी लगने से किसान बुरी तरह परेशान है। बार-बार दवाइयों का छिड़काव किया जा रहा है, लेकिन लाभ नहीं हो रहा, उल्टा किसान कर्जदार हो रहा है। यमुनानगर जिला में 82000 हेक्टेयर में धान की बिजाई होती है, यह इलाका धान व गेहूं की सर्वाधिक पैदावार वाला है। किसान समय-समय पर इसके लिए कृषि विभाग व कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह मशविरा करता है, लेकिन इस बार किसान को मिली सलाह का भी कोई फायदा नहीं हुआ।
किसानों की लगातार शिकायतें मिलने के बाद कृषि विज्ञान केंद्र दामला व कृषि विभाग की संयुक्त टीमों ने यमुनानगर जिला के कई प्रभावित इलाकों का दौरा किया। उन्होंने धान की फसल के नमूने लिए। धान में कई इलाकों में एक विशेष तरह की सुंडी नजर आई, जो धान की फसल की जड़ से रस चूसती है। इसी के चलते वह पौधा छोटा रह जाता है और सूख जाता है।
कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर बोले
कृषि विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ जसविंदर सिंह का कहना है कि किसानों की उनके पास काफी शिकायतें आई, जिसके बाद विभिन्न इलाकों का दौरा किया गया। उन्होंने बताया कि वर्षा का पानी अधिक समय तक खड़ा रहने व पौधों की जड़ों में हवा न लगने सहित अन्य कारणों से यह कीड़ा फसलों को नुकसान कर रहा है। इसके लिए सबसे पहले खेतों को खाली कर दें, उसका पानी निकाल दें, जिससे पौधे की जड़ों में हवा लगेगी और यह कीड़ा काफी हद तक समाप्त हो जाएगा। इसके अलावा लाल रंग की सुंडी का प्रकोप है। इन दोनों के लिए अलग-अलग दवाइयां किसानों को बताई जा रही हैं। उन्होंने माना कि किसानों ने पेस्टिसाइड की दुकानों से अपनी मर्जी से काफी संख्या में दवाइयों लेकर छिड़काव किया। अगर खेतों में पानी खड़ा रहेगा, दवाई का छिड़काव किया जाएगा तो उसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। इसलिए सबसे पहले खेतों में खड़ा पानी निकाले हैं, उसके बाद छिड़काव करें। निश्चित रूप से उसे इस बीमारी का प्रकोप कम होगा। उन्होंने बताया कि यमुनानगर जिला में 6000 एकड़ में इस बीमारी के प्रकोप का पता लगा है। इसके अलावा आसपास के जिलों में भी इस बीमारी के आने की सूचना है।
कृषि विश्वविद्यालय की समिति ने किया दौरा
चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय ने इसके लिए एक समिति का गठन किया। समिति में धान अनुसंधान केंद्र से क्षेत्रीय निदेशक डॉ. ओ.पी. लठवाल, रोग विज्ञानिक डॉ. अश्विनी दहिया, कृषि विज्ञान केंद्र कुरुक्षेत्र से वरिष्ठ समन्वयक डॉ. पी. भटटनागर, कृषि विज्ञान केंद्र दामला, यमुनानगर से समन्वयक डॉ. संदीप रावल, सस्य वैज्ञानिक डॉ. आराधना बाली, मृदा वैज्ञानिक डॉ. विशाल गोयल शामिल हैं। समिति ने यमुनानगर क्षेत्र में कई गांव का दौरा किया जिसमें तलाकौर और नगला जगीर शामिल हैं। इसके अतिरिक्त कमेटी ने कृषि विज्ञान केन्द्र अम्बाला के सहयोग से अम्बाला क्षेत्र का भी दौरा किया। सभी प्रभावित खेतों में जिंक की कमी के लक्षण पाए गए। अधिक तापमान व कम वर्षा से भी सूक्ष्म तत्वों की कमी फसलों में दिखाई देती है, ऐसा समिति के सभी सदस्यों ने पाया। सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति हेतु समिति ने जिंक-यूरिया का छिड़काव करने की सिफारिश की। इसके लिए 750 ग्राम जिंक सलफेट (33 प्रतिशत) में 5 किलो यूरिया मिलोकर 200 लीटर पानी का प्रयोग कर पौधो पर स्प्रे करें। इसमें किसान पानी में मात्रा का अवश्य ध्यान रखें। इससे न केवल सूक्ष्म तत्वों की कमी दूर होगी अपितु पौधे के बढ़वार में भी सहायक होंगे।