एक बार संत राबिया दोपहर के समय सिर पर एक घड़े में पानी और दूसरे हाथ में मशाल लेकर घर से निकली। उसको इस प्रकार घूमते देखकर लोग आश्चर्य से भर उठे और उसे देखने के लिए भीड़ लग गई। भीड़ में मौजूद किसी व्यक्ति ने उनसे पूछा, ‘आप दोपहर में ऐसा क्यों कर रही हैं?’ उन्होंने उत्तर दिया, ‘मैं इस घड़े के पानी को नरक की आग पर डालकर उसे बुझाने जा रही हूं। साथ ही इस मशाल से स्वर्ग को भी जला दूंगी, जिससे कोई भी मनुष्य स्वर्ग या नरक के भय से प्रभु की आराधना न करे, बल्कि अपने भीतर सर्वव्यापी परमात्मा को खोजकर उसे सब जगह देखे, क्योंकि संसार में सभी लोग या तो भय से ईश्वर को याद करते हैं, या कुछ पाने की आकांक्षा से। ये दोनों ही भाव उपासना को मार देते हैं। सच्ची भक्ति और स्वर्ग-नरक अच्छे कर्मों से निधार्रित होते हैं।’ प्रस्तुति : राजेश कुमार चौहान