शारा
इतनी हिट/सुपरहिट फिल्में बॉलीवुड को देने वाले धर्मेंद्र को जिस फिल्म के लिए इकलौता नामांकन प्राप्त हुआ था, वह फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ हेतु बेस्ट एक्टर के लिए था । इससे पहले की फिल्मों, ‘फूल और पत्थर’ तथा ‘आई मिलन की बेला’ में उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर के लिए ही नामांकित किया गया। ‘अनुपमा’ जैसी फिल्मों ने भी उन्हें पुरस्कारों से दूर ही रखा। यह बात अलग है कि भारत सरकार ने 2012 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। वह भाजपा के तगड़े सपोर्टर रहे हैं। उनकी दूसरी पत्नी हेमा मालिनी बाकायदा आज भी भाजपा के टिकट से ही चुनाव लड़ती हैं। बहरहाल, फ्लैशबैक में बात हो रही है धर्मेंद्र की फिल्म ‘मेरा गांव मेरा देश’ की। इस फिल्म में क्या सजीला गबरू है धर्मेंद्र ? और उस पर गर्लफ्रेंड आशा पारेख हो तो रोमांटिक मसखरापन देखते ही बनता है। याद कीजिए वह सीन जब जयंत निशाना लगाना सिखाता है तो वह निशाना चूक जाता है क्योंकि वहां आशा पारेख दिख रही हैं। यही मसखरापन आम दर्शक को गुदगुदाता है। इस फिल्म की महत्ता इसलिए भी है कि अगर यह फिल्म न होती तो ‘शोले’ भी न होती। इस फिल्म की पटकथा लिखते वक्त सलीम जावेद ने अंग्रेजी फिल्म ‘सेवन सैमुराय’ के अतिरिक्त किसी फिल्म को आधार बनाया था। जो फिल्म शोले की पृष्ठभूमि बनी, वैसी फिल्में कई बनीं, जो बात ‘मेरा गांव मेरा देश’ में थी, वह शोले में भी नहीं थी। शोले में भव्यता थी और कथानक के कैनवास को खींच कर बड़ा किया गया था। इससे पूर्व भी तो सुनील दत्त की ‘मुझे जीने दो’ दिलीप कुमार की ‘गंगा जमुना’ प्राण की ‘जिस देश में गंगा बहती है’ आई पर यह बात नहीं बनी। याद कीजिए डाकुओं की पृष्ठभूमि पर लिखी गई पटकथा, जिसमें गांव को उनके जुल्म से मुक्ति दिलाने जयंत धर्मेंद्र को आगे लाता है क्योंकि उसकी एक बांह कट चुकी है और वह धर्मेंद्र की बाहों से काम लेना चाहता है। इसलिए वह धर्मेंद्र को अपना बेटा मानकर ट्रेनिंग भी देता है। फिल्म ‘शोले’ में पुलिस अफसर संजीव की दोनों बाजुएं कट चुकी हैं। इसीलिए वह धर्मेंद्र और अमिताभ को इस काम में आगे लाता है। अमजद खान हकीकत में जयंत का बेटा है। वह ‘शोले’ से डेब्यू कराना चाहते थे, जिसमें वह कामयाब भी हुए। गब्बर सिंह को कौन नहीं जानता? इसी गब्बर सिंह की तर्ज पर ‘मेरा गांव मेरा देश’ में जब्बर सिंह, जिसका रोल पहले ही अदा कर चुके थे विनोद खन्ना। वही विनोद खन्ना, जिन्होंने गुरदासपुर से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता था और केंद्रीय मंत्रिमंडल में भी रहे। ‘मेरे अपने’ के बाद उनकी यह दूसरी मूवी थी, जिसमें उन्होंने अपनी मौजूदगी से धर्मेंद्र के पसीने छुड़वा दिए। बांका छैला गबरू भले ही वह डाकू हो, तब की युवा लड़कियों के दिलों की धड़कन बन गया था। नुकीली मूछें, काला कुर्ता और सफेद धोती, आग उगलती आंखें उसने तो सारा शो ही चुरा लिया। तब लड़कियों के दो गुट तैयार हो गए थे। जो लड़कियां आदर्शवाद को मानती थीं, वह तो धर्मेंद्र को ही सुंदर मानती थीं, लेकिन लड़कियों का एक वर्ग ऐसा भी था जो विनोद खन्ना के इस रूप का भी दीवाना था। डाकुओं के रोल में विनोद खन्ना फिर भी आए लेकिन जो टक्कर उन्होंने इस फिल्म में धर्मेंद्र को दी वह किसी अन्य फिल्म में नहीं। याद कीजिए वह गीत गाती लक्ष्मी-छाया कि ‘किस-किस को बताऊं’ क्या सुंदर एक्टिंग की है खुद को छुपाने के लिए। दरअसल, वह फिल्मी करिअर छोड़कर ओशो की शरण में न जाते तो आज उनका रुतबा अमिताभ और राजेश खन्ना सा होता। दूसरी पारी में उनके रोल अविस्मरणीय रहेंगे। जब्बर सिंह के रूप उनका रूप दर्शकों को वैसे ही याद रहेगा जैसे गब्बर सिंह, मोगैम्बो खुश हुआ का। यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर खूब हिट रही। गाने एक से बढ़कर एक। ‘मार दिया जाए’ इसी फिल्म का गाना है। संगीत लक्ष्मीकांत प्यारेलाल का। लिखा था आनंद बख्शी ने। इस फिल्म में लक्ष्मी छाया पर बहुत से गीत फिल्माए गए हैं, जिसका नोटिस आशा पारेख ने लिया था क्योंकि उस समय आशा पारेख की लोकप्रियता सातवें आसमान पर थीं। इस फिल्म की लोकप्रियता देख कर बाद में इसे तेलुगू में भी ‘मंची बबाई’ के नाम से बनाया गया। अब बात इस फिल्म के निर्देशक राज खोसला की। राज खोसला पहले गुरुदत्त के पास सहायक निर्देशक का काम करते थे और उसी दौरान गुरुदत्त की सीआईडी (1956) जैसी धांसू फिल्में बनीं। उन्हें महिला नायिकाओं का निर्देशक कहा जाता है क्योंकि भविष्य की स्टार नायिकाएं उन्होंने ही बॉलीवुड को दीं। सीआईडी में उन्होंने वहीदा रहमान को इंट्रोड्यूस किया था। ‘वह कौन थी’ से उन्होंने साधना को इंट्रोड्यूस किया था। इसमें भी साधना ने मिस्ट्री गर्ल का रोल किया था। ‘दो बदन’ में आशा पारेख को सीरियस रोल के उछल-कूद और रोमांस वाली हीरोइन के तमगे से छुट्टी दिलाई। इसी फिल्म में सिमी ग्रेवाल को सपोर्टिंग एक्टर का पुरस्कार भी मिला। दो रास्ते फिल्म से ही मुमताज को कैबरे और फिजूल के चलताऊ रोल से निजात मिली थी। और एक मैच्योर उम्र के पड़ाव पर खड़ी नूतन को ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ में सर्वश्रेष्ठ नायिका का पुरस्कार मिला। उन्होंने निर्देशक के तौर पर डेब्यू किया ‘मिलाप’ (1954) से, जिसमें देव आनंद और गीता बाली ने अभिनय किया था। खुद देव आनंद उन्हें अपने लिए काफी लकी मानते थे। पाठकों को बता दूं कि राहों (पंजाब) का यह पुत्त पहले संगीतकार बनने ही मुंबई आया था, लेकिन देव आनंद ने उन्हें गुरुदत्त के पास भेज दिया। उन्होंने ही ‘मेरा साया’, ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ बनाई थी। जितनी उनकी मास्टरी क्राइम थ्रिलर फिल्में बनाने की थी, उतनी ही रोमांटिक फिल्म निर्देशित करने की भी। जहां तक इस फिल्म की कहानी का सवाल है, वहां भी शोले याद आती है। कहानी इस प्रकार है-लोग एक सड़कछाप चोर अजीत को पकड़ लेते हैं। वे उसे स्वयं सबक सिखाना चाहते हैं कि हवलदार मेजर सिंह (जयंत) अजीत (धर्मेंद्र) को पुलिस के हवाले कर देते हैं। उसे छह माह की सजा हो जाती है। सजा पूरी करते ही जेलर उसे हवलदार मेजर जसवंत सिंह के पास भेजता है ताकि वह खुद अपनी रोजी-रोटी कमा सके। अब अजीत गांव आता है तो हवलदार मेजर जसवंत सिंह उसे खेतों में स्वयं की मदद के लिए रख लेते हैं। वहीं अजीत की मुलाकात अंजू (आशा पारेख) से होती है, जिससे उसे पहली नजर में प्यार हो जाता है। तभी अजीत को पता चलता है कि डाकू जब्बर सिंह (विनोद खन्ना) इस गांव के लोगों पर जुल्म करता है। इसके विरोध में अजीत आवाज उठाता है। जवाब में जब्बर सिंह उसकी गर्लफ्रेंड अंजू (आशा पारेख) को उठा लेता है और अजीत को कहलवा भेजता है कि अंजू को बचाने के लिए अजीत को स्वयं आना होगा। किसी तरह अजीत जब्बर सिंह के ठिकाने तक पहुंच जाता है। लेकिन जब्बर सिंह उसे भी बंदी बना देता है और अजीत को अपनी सहायक मुन्नी (लक्ष्मी छाया) के रहमो-करम पर छोड़ देता है। मुन्नी का प्रपोजल अजीत ने यह कहकर ठुकरा दिया कि वह अंजू से प्यार करता है। वहीं पर मुन्नी सारे डाकुओं को शराब में बेहोशी की दवा पिलाकर सुला देती है। फिर अजीत और उसकी प्रेमिका को फरार करवा देती है क्योंकि वह भी किसी मजबूरी में ही जब्बर के पास फंसी थी। यहीं पर ही वह गाना गाती है ‘मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए।’ उसके बाद जब्बर एक बार फिर गांव लूटने जाता है जहां उसका सामना अजीत से होता है। अजीत मार -मारकर उसका बुरा हाल कर देता है और पुलिस के हवाले कर देता है। इस प्रकार गांव वालों को जब्बर के जुल्मों से छुटकारा मिल जाता है।