पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ता जा रहा है। एशिया के साथ-साथ पहली बार यूरोप भीषण गर्मी का प्रकोप झेल रहा है। गर्मी की वजह से ब्रिटेन के इतिहास में पहली बार नेशनल इमरजेंसी की घोषणा करते हुए रेड वॉर्निंग जारी करनी पड़ी है। लंदन के ल्यूटन एयरपोर्ट की हवाई पट्टी गर्मी की वजह से पिघल गई और कई घंटों के लिए विमानों की आवाजाही को बंद करना पड़ा। फ्रांस, स्पेन और ब्रिटेन में गर्मी की वजह से हाहाकार मचा हुआ है। ब्रिटेन के कई शहरों में स्कूल-कॉलेजों को गर्मी की वजह से बंद करना पड़ा है। यूरोप के जिन देशों ने कभी गर्मी नहीं झेली वे देश भी इस बार बढ़ते पारे से बेहाल हैं। फ्रांस, ग्रीस, पुर्तगाल, ब्रिटेन, स्पेन में पारा 40 के पार है। विश्व मौसम विज्ञान संगठन के अनुसार यूरोप में चल रही हीटवेव, विशेष रूप से दक्षिण-पश्चिम क्षेत्रों में अफ्रीका से आने वाली गर्म हवाओं के कारण हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार जलवायु परिवर्तन इस हीटवेव की मुख्य वजह है। वहीं ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (जीएचजी), जो कोयले, गैस और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने से आता है, वो हीटवेव को अधिक गर्म और खतरनाक बना रहा है।
पिछले दिनों पृथ्वी के दो सिरे कहे जाने वाले दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव में तापमान में अचानक ऐसा उछाल आया कि सारे रिकॉर्ड टूट गए। अंटार्कटिक और आर्कटिक दोनों ही जगह तापमान में एकसाथ और अचानक रिकॉर्ड वृद्धि हुई। हाल में ही पूर्वी अंटार्कटिक में कुछ जगहों पर तापमान औसत से 40 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया। इसी तरह अंटार्कटिक के वोस्तॉक स्टेशन पर तापमान 15 डिग्री से ज्यादा बढ़ गया। यही हाल धरती के दूसरे सिरे पर भी था, आर्कटिक पर मार्च के औसत तापमान में 30 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। नॉर्वे और ग्रीनलैंड में भी गर्मी के नये प्रतिमान स्थापित हो रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बड़े पैमाने पर ग्लेशियर्स पिघल रहे हैं। ऑस्ट्रेलिया की एक जलवायु वैज्ञानिक थॉमस के अनुसार हाल में हुई मानवीय गतिविधियों ने ग्लोबल वार्मिंग को तेज कर दिया है और इसकी वजह से अंटार्कटिका में बड़े पैमाने पर बर्फ पिघल सकती है।
वास्तव में दोनों जगहों पर एक साथ एक जैसी घटना अकल्पनीय लगती है क्योंकि इन दोनों जगहों की प्रकृति एकदम भिन्न प्रकार की है। ऐसे समय में अंटार्कटिक पर दिन लगातार छोटे होते हैं और सर्दी बहुत अधिक होनी चाहिए। ठीक उसी वक्त आर्कटिक सर्दी से बाहर निकल रहा होता है। यहां एकदम उलटे मौसम हैं, उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव को एक साथ, एक समय पर पिघलते नहीं देखते। लेकिन इस बार ऐसा हुआ है तो यह पूरी दुनिया के लिए एक खतरे की घंटी है।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ‘तीसरा ध्रुव’ कहे जाने वाले हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालय अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद ग्लेशियर का तीसरा सबसे बड़ा सोर्स है। वैज्ञानिकों के अनुसार 400 से 700 साल पहले के मुकाबले पिछले कुछ दशकों में हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघले हैं। यह गतिविधि साल 2000 के बाद ज्यादा बढ़ी है। साइन्स जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुए एक शोध के अनुसार इससे एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के किनारे रहने वाले करोड़ों भारतीयों पर पानी का संकट आ सकता है।
वैज्ञानिकों की टीम ने लिटल आइस एज के दौरान हिमालय की स्थिति का पुनर्निर्माण किया। उन्होंने 14,798 ग्लेशियर की बर्फ की सतहों और आकार को सैटेलाइट की तस्वीरों से जांचा। इससे पता चला कि आज हिमालय के ग्लेशियर अपना 40 प्रतिशत हिस्सा खो चुके हैं। इनका दायरा 28,000 वर्ग किलोमीटर से घटकर 19,600 वर्ग किलोमीटर पहुंच गया है। रिसर्च में शोधकर्ताओं ने पाया कि अब तक हिमालय में 390 से 580 वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघल चुकी है। इस कारण समुद्र का जलस्तर 0.03 से 0.05 इंच तक बढ़ गया है।
विशेषज्ञों के एक अनुमान के अनुसार, अंटार्कटिका के ग्लेशियर के पूरी तरह से पिघलने पर पृथ्वी की ग्रेविटेशनल पॉवर शिफ्ट हो जाएगी। इससे पूरी दुनिया में भारी उथल-पुथल देखने को मिलेगी। पृथ्वी के सभी महाद्वीप आंशिक रूप से पानी के भीतर समा जाएंगे। लंदन, मुंबई, मियामी, सिडनी जैसे शहर पूरी तरह से महासागरों के अंदर आ जाएंगे। इन ग्लेशियर के भीतर बड़ी मात्रा में खतरनाक वायरस पिछले हजारों सालों से दफन हैं। वे विकट महामारी देश-दुनिया में ला सकते हैं। भारी मात्रा में जैव-विविधता को हानि पहुंचेगी। पृथ्वी पर रहने वाली हजारों प्रजातियां भी खत्म हो जाएंगी।
कई विशेषज्ञों का यह तक कहना है कि ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति पर भी पड़ेगा। इससे पृथ्वी के दिन का समय थोड़ा ज्यादा बढ़ जाएगा। पीने लायक 69 प्रतिशत पानी ग्लेशियर के भीतर जमा हुआ है। उसके पिघलने पर ये शुद्ध पानी भी साल्ट वाटर में मिलकर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। अभी भी हमारे पास बहुत वक्त है। हमें प्रकृति और विकास के साथ संतुलन बनाना होगा।