सत्ता का दंभ
शिवसेना और शिअद राजग के पुराने साथी थे, परंतु जब से भाजपा को केंद्र में अपने बहुमत से सत्ता मिली है तब से राजग के सहयोगी दल न तीन में हैं और न तेरह में। बहुमत का अहंकार भाजपा के सिर चढ़ कर बोल रहा है। अब भाजपा न तो किसी सहयोगी दल को महत्वपूर्ण पद देना चाहती हैं और न ही किसी विषय पर पक्ष-विपक्ष से विचार-विमर्श की जरूरत समझती है। इसीलिए शिवसेना ने राजग से अलग होकर मुख्यमंत्री का पद हासिल कर लिया तो अकाली दल ने सरकार के कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ खड़े किसानों के साथ खड़े होकर राजग छोड़ दिया है।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
साख पर आंच
गठबंधन धर्म की उपेक्षा कभी उचित नहीं हो सकती क्योंकि यह कर्त्तव्यविमुखता के साथ उसकी ताकत, अहंकार और तानाशाही को भी दर्शाता है। भाजपा शक्तिशाली होने से ही ऐसा कर रही है जो स्वाभाविक है। असल में उसके लिए अपने सभी सहयोगियों, विपक्ष और किसान संगठनों के साथ ही आगे बढ़ना ठीक था। यह स्वस्थ राजनीति में स्वस्थ कदम नहीं हो सकता। इससे भविष्य में आपसी एकता और विश्वास को बड़ा झटका लगाना भी स्वाभाविक है। ऐसे ही तो राष्ट्रीय जनाधार की क्षति के साथ पार्टियों की साख पर भी आंच आती है।
वेद मामूरपुर, नरेला
भाजपा के हित में
शिव सेना व अकाली दल या और छोटे-मोटे वनमैन राजनीतिक दलों का राजग छोड़कर चले जाना राजग का बिखराव नहीं अपितु राजग का सफाई अभियान चल रहा है। इन राजनीतिक दलों का भाजपा से वैचारिक सामंजस्य नहीं था। केवल सत्ता पाने का लालच इनको राजग में लाया था। कांग्रेस का ह्रास देख कर ये दल राजग में आ मिले थे। उस समय भाजपा भी कमजोर थी। अब हालात बदल गए हैं। मोदी की विकासोन्मुखी नीतियों के कारण जनसाधारण राजग के साथ है। महाराष्ट्र एवं पंजाब में अकेले चुनाव लड़ना भाजपा को लाभ देगा।
अनिल शर्मा, चंडीगढ़
मुश्किल होती राह
भाजपा की तरफ से शिअद को मनाने के कुछ खास प्रयास भी नहीं हुए। पिछले विधानसभा चुनावों के बाद दोनों दलों के रिश्तों में पहले जैसे गर्मजोशी भी नहीं रही थी। वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में इस अलगाव का असर दिखाई देगा और दोनों ही पार्टियों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा। कृषि प्रधान पंजाब में ग्रामीण पृष्ठभूमि में दखल रखने वाले शिअद का मुख्य वोट बैंक किसान ही है। ऐसे में पंजाब में किसान संगठनों के तल्ख विरोध को देखते हुए शिअद के लिए कोई और चारा भी नहीं था। अगला चुनाव भाजपा के लिए बेहद मुश्किल होने वाला है।
पूनम कश्यप, बहादुरगढ़
गठबंधन धर्म निभाएं
वैसे तो लोकतंत्र की सुन्दरता किसी देश में दो दलीय व्यवस्था से ही होती है, परन्तु देश में तो कई वर्षों से जनता ने इस प्रणाली को नकार दिया है, जिसकी वजह से राष्ट्रीय दलों को बहुमत प्राप्त करने के लिए अनेक सत्ता सुख, स्वार्थ सिद्ध क्षेत्रीय दलों के साथ न्यूनतम साझे कार्यक्रम के तहत गठबंधन करना पड़ता है। सत्ता में भागीदार होते ही कई दल अपने स्वार्थ एवं वर्चस्व के लिए स्वच्छन्दचारी बन जाते हैं, जिसकी वजह से बिखराव होना स्वाभाविक है। अत: सभी घटकों को गठबंधन धर्म का सच्ची निष्ठा से पालन करना चाहिए ताकि बिखराव की नौबत न आए। इसी में सबकी भलाई है।
एम.एल. शर्मा, कुरुक्षेत्र
कुनबा संभालें
कटु सत्य है कि परिवार में सभी सदस्यों को खुश नहीं रखा जा सकता। मोदी के नेतृत्व में लगातार दूसरी बार संसदीय चुनाव जीतने तथा कुछ और राज्यों में सत्ता पर कब्जा करने के कारण भाजपा के व्यवहार में निरंकुशता आ गई है। पिछले चुनावों में उसकी भारी जीत के पीछे उसकी सहयोगी पार्टियों द्वारा बनाया गया अनुकूल माहौल था। भाजपा राष्ट्रीय हित में फैसले लेने से पहले अपने सहयोगी दलों तथा जनता की राय को जरूर ध्यान में रखे। सभी दल सत्तापक्ष के साथ चिपक कर लाभ उठाना चाहते हैं। भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को अपने कुनबे को संभालना चाहिए।
शामलाल कौशल, रोहतक
निरंकुश व्यवहार
शिअद का केंद्र में सत्तारूढ़ गठबंधन से अलगाव असामान्य राजनीतिक घटनाक्रम है। इसका राष्ट्रीय राजनीति पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ना तय है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 303 सीटों पर प्रचंड विजय के साथ पूर्ण बहुमत हासिल किया। पूर्ण बहुमत के बाद निरंकुशता एक स्वाभाविक परिवर्तन है। अनेक विषयों पर भाजपा अपने सहयोगियों की अनदेखी कर रही है। गठबंधन सहयोगियों की अनदेखी, शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल के अलगाव से भारतीय जनता पार्टी नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह पैदा हो गया है।
सुखबीर तंवर, गढ़ी नत्थे खां, गुरुग्राम