कुरुक्षेत्र, 23 अप्रैल (हप्र)
कलाकार अपने अभिनय तथा कथानक के माध्यम से वक्त के दिए हुए जख्मों को हरा कर देते हैं। जो हमें सीख देते हैं कि वर्तमान में आम जनमानस को जातीय मुद्दों में न उलझकर देश को खुशहाल और समृद्ध बनाने में अग्रसर होना चाहिए। ये कहना था रंगकर्मी विरेंद्र का। वे हरियाणा कला परिषद द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत विश्व रंगमंच के उपलक्ष्य में आयोजित नाट्य मेला में मंचित नाटक के दौरान दर्शकों को सम्बोधित कर रहे थे। कला कीर्ति भवन की भरतमुनि रंगशाला में शनिवार को जातीय दंगों की पीड़ा को दिखाते हुए सार्थक सांस्कृतिक मंच, करनाल के कलाकारों द्वारा पाली भूपिंद्र के लिखे नाटक ‘जब मैं सिर्फ एक औरत होती हूं’ नाटक का संजीव लखनपाल के निर्देशन में मंचन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ न्यू उत्थान थियेटर ग्रुप कुरुक्षेत्र के अध्यक्ष नीरज सेठी, रंगकर्मी शिवकुमार किरमच, कला परिषद के कार्यालय प्रभारी धर्मपाल गुगलानी, पूर्व समन्वयक विरेंद्र तथा रमेश सुखीजा ने दीप प्रज्वलित कर किया। नाटक मेें एक हिन्दू रईस अपनी पत्नी और बहन के साथ अपने मुस्लिम नौकर के घर में विभाजन के दौरान हुए दंगों के समय शरण लेता है। उसकी पत्नी सैंदा हिंदुओं से नफरत करती है और हिंदू परिवार को पनाह देने से इनकार कर देती है। सैंदा का पति अपनी पत्नी को मनाकर हिंदू मालिक को घर में रख लेता है। सैदां अपनी बेटी की हत्या का बदला हिंदू परिवार से लेना चाहती है और हिंदू व्यक्ति की बहन को अपने बेटे से निकाह करने की शर्त लगा देती है। हिंदू परिवार के मना करने पर सैंदा का बेटा ननकू हिंदू युवती पर दबाव बनाता है। अपनी ननद की अस्मत लुटती देख हिंदू की पत्नी कुल्हाड़ी से ननकू पर वार करती है और उसकी हत्या कर देती है।