शारा
जिन पाठकों ने ज्वैल थीफ नहीं देखी तो उन्होंने क्या देखा? सस्पेंस, थ्रिलर और जासूसी के तेवरों वाली मूवी कभी भी बाद में उतनी खूबसूरती से नहीं बनी। गाइड की अभूतपूर्व सफलता के बाद बॉलीवुड के दोनों भाई देव आनंद व विजय आनंद एक बार पुन: अपनी घरेलू प्रोडक्शन नवकेतन के बैनर तले इकट्ठे हुए इस फिल्म की कामयाबी का स्वाद चखने के लिए। और कामयाबी भी कैसी कि सिर चढ़कर बोली। प्रोडक्शन कंपनी नोट गिनते-गिनते थक गयी। यह फिल्म 1967 में रिलीज हुई थी और उस दशक की 35वीं ज्यादा कमाऊ फिल्म साबित हुई। उस साल तो सबसे ज्यादा कमाई करने वाले पांचवे पायदान पर तो थी ही। उस साल ही नवकेतन लाखों में खेला था। कंपनी खेलती भी क्यों न? क्योंकि सभी कुछ जेम्स बांड को मात देने वाला था। फिल्म का प्लॉट, सेटिंग और किरदारों का चयन अल्फर्ड हिचकॉक की तीनों थ्रिलर मूवीज से प्रभावित था। ताजा-तरीन विदेश से पढ़-लिखकर आये विजय आनंद उर्फ गोल्डी ने जो विदेश में देखा, वही अपनी मूवी में उतार दिया, अपनी कल्पनाओं का छौंक लगाकर। जितना इसकी पटकथा पैनापन लिये हुए थी, उतना ही इसका संगीत पक्ष मजबूत था। एसडी बर्मन ने इसका सुरीला संगीत दिया था और गीत लिखे थे मजरूह सुलतानपुरी व शैलेंद्र ने। हालांकि उस समय शैलेंद्र का स्वास्थ्य ठीक नहीं चल रहा था। वह केवल इसके लिए एक ही गीत लिख सके ‘रुला के गया सपना मेरा।’ कितना मशहूर हुआ था उस समय? बाकी के सात गीत मजरूह सुलतानपुरी ने लिखे हैं। गीत-संगीत और पटकथा के साथ तकनीकी पक्ष भी मजबूत था ही, उस पर पात्रों के चयन में भी खासी परिपक्वता बरती गयी। देव आनंद, अशोक कुमार तो थे ही, वैजयंती माला, तनुजा, हेलेन, अंजु महेंद्रू के साथ फरयाल की एंट्री ने फिल्म को और भी ऊंचे पायदान पर बैठा दिया। जो गीत ‘दिल न होता बेचारा, कदम न होते आवारा’ फिल्म का हीरो गाता फिरता है, वह इसी फिल्म का गाना है। इसके गीतों की क्या तारीफ करूं, ऐसा सुरीला संगीत एसडी बर्मन ही दे सकते थे। इसी फिल्म की सफलता को भुनाने के वास्ते किसी और बैनर तले इसका सीक्वेल ‘रिटर्न ऑफ ज्वैल थीफ’ फिर बना, जिसमें देव आनंद और अशोक कुमार अपने पुराने किरदार में नजर आये। यह पहली दफा हुआ कि देव आनंद ने अपने नवकेतन के सिवाय किसी और की प्रोडक्शन में एक्टिंग की थी। इस मूवी में धर्मेंद्र, जैकी श्राफ और शिल्पा शिरोडकर थीं। पाठकों को याद होगा कि अगस्त 2008 में जब चंडीगढ़ फिल्म फेस्टिवल आयोजित हुआ था तो उस समय सूचना व प्रसारण मंत्रालय की ओर से गवर्नमेंट म्यूजियम ऑडिटोरियम में इस फिल्म को दिखाया गया था। हालांकि, देव आनंद की अन्य दो फिल्में भी दिखायी गयी थीं। इस फिल्म में जो रोल वैजयंती माला ने किया है, वह रोल पहले सायरा बानो को पेश किया गया था। देव आनंद इसी पक्ष में थे कि सायरा बानो यह रोल करें क्योंकि इस फिल्म से पूर्व 1966 में वह सायराबानो के साथ ‘प्यार मुहब्बत’ फिल्म में काम कर चुके थे। चूंकि सायरा बानो तब ताजा-ताजा दिलीप कुमार से शादी के सपनों में खोयी थीं, इसलिए उन्होंने फिल्म में काम करने से इनकार कर दिया। इससे पूर्व देव आनंद ने उन्हें ‘गाइड’ फिल्म की नायिका रोजी वाला रोल भी ऑफर किया था, तब भी उन्होंने देव आनंद को इनकार कर दिया था। इस फिल्म में काम करने से पूर्व वैजयंती माला ने देव आनंद के साथ ‘अमरदीप’ फिल्म में काम किया था। एक बारगी तो देव आनंद ने ‘गाइड’ फिल्म की हीरोइन के लिए भी वैजयंती माला का नाम तजवीज किया था, लेकिन तब गाइड के निर्देशक (अंग्रेजी रूपांतरण वाली फिल्म) टैड डेनियलेवस्की ने इनकार कर दिया था।
फ्लैशबैक काफी फ्लैश बैक में चला गया, अब मूल फिल्म की बात करते हैं। इस फिल्म के लिए एम बरोट को फिल्म फेयर का सर्वोत्तम साउंड अवार्ड मिला जबकि तनुजा बेस्ट स्पोर्टिंग एक्ट्रेस के पुरस्कार के लिए नामांकित की गयीं। इस फिल्म में तनुजा की सेंसुएल्टी देखते ही बनती है। ‘रात अकेली है, बुझ गये दीये’ गीत तनुजा पर ही फिल्माया गया है। कहानी में सस्पेंस है पर पाठकों को थोड़ा-बहुत बता देते हैं। एक शातिर चोर है हीरों का, जिसने जौहरियों के घर लूट डालकर देशभर में त्राहि-त्राहि मचायी है। अबकी बार उसका निशाना बम्बई है, बम्बई पुलिस कमिशनर ने कसम खायी है कि वह उसे 26 जनवरी से पहले-पहले दबोच लेगा। उनका बेटा विनय (देव आनंद) विशम्भर नामक जौहरी के पास नौकरी करता है क्योंकि वह हीरों का बड़ा पारखी है। तभी उसी दुकान में चोरी हो जाती है और नाम विनय का लगता है। यहीं से ही विनय के पिता कमिशनर को लगता है कि उनके बेटे की शक्ल हीरों के चोर अमर से मिलती है। इस पर विनय पुलिस की मदद के लिए तैयार हो जाता है। वह अमर की मदद से चल रहे गिरोह का भंडाफोड़ करने के लिए हेलेन से संपर्क साधता है फिर पुणे जाता है जहां वह अमर की पत्नी से भी मिलता है जो वह विनय को ही अमर समझ कर बताती है कि अमर गंगटोक गया है। गंगटोक में उसकी मुलाकात गिरोह के बाकी मेंबरों के साथ होती है। वह वहां नीना नामक अमर की सहयोगी से भी मिलता है जो उसे सूचनाएं देने की एवज में उसे ही गिरोह में फंसा देती है जहां उसे बंदी बना लिया जाता है। वहीं पर ही उसे पता चलता है कि गिरोह का असली सरगना अर्जुन (अशोक कुमार) है और अमर नामक कोई व्यक्ति नहीं है। यह सिर्फ पुलिस को धोखे में रखने के लिए पात्र पैदा किया गया है। यही फिल्म का सबसे बड़ा सस्पेंस है। विशम्भर नाथ की चोरी उसके प्लान का हिस्सा थी। जबकि शालिनी (वैजयंती माला) गिरोह का साथ इसलिए देती है क्योंकि उनके कब्जे में उसका भाई भी है। वही विनय को गुप्त रास्ते के बारे में बताती है। यहां मैं बता दूं कि विनय और शालिनी एक-दूसरे को प्यार करते हैं। तीनों वहां से भाग निकलते हैं लेकिन वे तीनों फिर पकड़े जाते हैं। अर्जुन विनय को इलेक्ट्रॉनिक शॉक देता है ताकि वह खुद को अमर समझ बैठे। हीरों के चोरों का क्या मकसद हल हो सकता है, विनय को बिजली के झटके देने से? आगे की स्टोरी पाठक बताएंगे। इतना सस्पेंस छिपाना तो बनता है।
निर्माण टीम
निर्देशक : विजय आनंद (गोल्डी)
प्रोड्यूसर : देव आनंद
मूलकथा : केए नारायण
संवाद व पटकथा : विजय आनंद
सिनेमैटोग्राफी : वी. रतरा
गीत : शैलेंद्र व मजरूह सुलतानपुरी
संगीत : एसडी बर्मन
सितारे : देव आनंद, वैजयंतीमाला, अशोक कुमार, तनुजा आदि
गीत
यह दिल न होता बेचारा : किशोर कुमार
आसमां के नीचे : किशोर कुमार, लता मंगेशकर
दिल पुकारे आ रे : लता मंगेशकर, मोहम्मद रफी
होंठो पे ऐसी बात : लता मंगेशकर, भूपिंदर सिंह
रुला के गया सपना : लता
बैठे हैं क्या उसके पास : आशा भोसले
रात अकेली है, बुझ गये दीये : आशा भोसले
ज्वैल थीफ डांस म्यूजिक : एसडी बर्मन