सहीराम
हे ऑक्सीजनदाताओं! हे पीपल देवता! हे गऊमाता! थोड़े और उदार बनो। उदार बनने का यही अवसर है। ऐसे मौके पर बड़े-बड़े सेठ तो चाहे उदार न होते हों, क्रिकेट स्टार तो चाहे उदार न होते हों, हमारे सेलिब्रिटी तो चाहे उदार न होते हों, नेता लोग तो चाहे उदार न होते हों, सरकारें तो चाहे उदार न होती हों, पर आम लोग जरूर उदार हो जाते हैं। आप भी कहां खास हो, आम ही हो। बेशक पीपल को देवता माना जाता है पर उसे घर में कौन लगाता है। डर होता है कि कहीं भूतों का वास न हो जाए। गऊ माता को भी चाहे कितनी ही माता माना जाए, पर उसे भी वैसे ही खदेड़ दिया जाता है, जैसे माताओं को वृद्धाश्रमों के लिए खदेड़ दिया जाता है। फिर भी अगर उदार बनने का मौका मिल रहा है तो उदार हो ही जाइए।
वैसे तो कहते हैं कि देने वाला भगवान है और हवा-पानी देने वाला तो सचमुच वही है। यह अलग बात है कि पानी की कमी को लेकर गालियां सरकार को ही पड़ती हैं, क्योंकि लोग यह मानते हैं कि पानी सरकार ही देती है। उन्हें बिल्कुल भी यह याद नहीं आता कि पानी भी भगवान ही देता है। अलबत्ता कभी-कभी दाता मेघ दे, पानी दे, की प्रार्थना अवश्य कर ली जाती है। लेकिन फिर भी अपने यहां इधर पता नहीं, यह कौन-सा चलन चला है कि लोग भगवान से ज्यादा सरकार को दाता मानने लगे हैं। और सरकार ऐसी है कि वह कुछ देती नहीं, वह हमेशा टैक्सों की तरह सब लेने के ही चक्कर में रहती है।
अब देखिए, सरकार तो ऑक्सीजन दे नहीं रही है। दे रही है तो पर्याप्त मात्रा में नहीं दे रही। सरकार की मेहरबानी से अगर राशन प्रणाली खत्म हुई तो सरकार की मेहरबानी से ही राशन प्रणाली फिर से वापस भी लौटी है। कम से कम ऑक्सीजन के मामले में राशन प्रणाली लौट आयी है। सो ऐसे में हे ऑक्सीजनदाताओं, हे पीपल देवता, हे गऊमाता थोड़े और उदार बनो। क्योंकि हे पीपल देवता हमें बताया गया है कि आप हमेशा चौबीसो घंटे ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते रहते हैं। इस लिहाज से आपका मामला बिल्कुल ट्वेंटी फोर इन टू सेवन वाला है। हालांकि, आप कोई इस्पात संयंत्र नहीं हो कि ऑक्सीजन का उत्पादन बढ़ा दोगे, फिर भी अगर बढ़ा सको तो अच्छी बात होगी।
तो हे पीपल देवता, हे गऊमाता थोड़ा और आॅक्सीजन उपलब्ध कराने की मेहरबानी करो क्योंकि सरकार ऑक्सीजन नहीं दे पा रही है।