राजकिशन नैन
प्रवेश शर्मा द्वारा अनूदित एवं समाचार वाचक के रूप में ख्यात प्रदीप रूपाल के यात्रा वृत्तांत की विलोकनीय पंजाबी पुस्तक ‘दर्रियां ते दरियावां संग’ के हिन्दी अनुवाद ‘दर्रों और दरियावों के साथ’ को पढ़ना, पत्रकारिता, रेडियो, टीवी, नाटक और डॉक्यूमेंट्री निर्माण से जुड़े एक शिष्ट मनुष्य के अंतस में यकायक झांकने जैसा है। लेखक ने अपनी शख्सियत के अनुसार सफर की यादों को सुरुचिपूर्ण ढंग से संजोया है। घुमक्कड़ी का चाव लेखक बरसों से अधर में उठाये फिर रहा है। घूमने की बाबत पूछने पर प्रदीप रूपाल ने हंसकर कहा, ‘बहुत घूमा हूं। पांव अभी थमे नहीं हैं। ‘मुसाफिर होने का वरदान’ हर किसी को नहीं मिलता। अपनी कुल्लू-मनाली, लेह-लद्दाख और कश्मीर की यात्रा के खट्टे-मीठे अनुभव मैंने मन से लिखे हैं।
वर्ष 2005 में जुलाई के प्रथम पखवाड़े में प्रेस क्लब की एडवेंचर कमेटी ने यह ट्रैकिंग टूर सिरे चढ़ाया था। ट्रैकरों के सोलह सदस्यों में कई मीडिया यूनिटों के पत्रकार शामिल थे। इस टीम का हिस्सा रहे एक सदस्य किताब को ट्रैकिंग व पर्यटन प्रेमियों के लिए पठनीय बताते हुए कहते हैं—‘चौमासे की झड़ी में, पग-पग पर जोखिम उठाकर सिंधु घाटी, जांस्कर घाटी, नुबरा घाटी, लद्दाख, पेंगोंग झील, खरदूंग और कारगिल के रास्ते डल झील (श्रीनगर) तक दुर्गम इलाकों में की गई विकट यात्रा का जीवंत दस्तावेज है। पुस्तक जोखिमभरी यात्रा के खतरों से जूझने का साहस देती है तो मुश्किलों से उबरने का रास्ता भी।’
18 अध्यायों में बंटी यह किताब यात्रा विधा, वीथिका, वीरता और ज्ञानार्जन हासिल करने का बहुत बड़ा जरिया है। रोहतांग दर्रे में बर्फ की भरमार देखकर लेखक को मढ़ी की वो दुखद ऐतिहासिक घटना याद आ गई जब यहां महाराजा रणजीत सिंह की सैन्य टुकड़ी बर्फ तले दबकर जान गंवा बैठी थी। महाराजा तब, तिब्बत को फतह करने निकले थे। रियासती काल में कुल्लू के राजा इस दर्रे के रास्ते तिब्बत व चीन के साथ व्यापार किया करते। मंडी से चलने के बाद इन ट्रैकरों को कांटी पास, रोहतांग, बड़ालाचा, नक्की ला, लाचुलूंग, तंगलंग और चांग ला सरीखे सात दर्रों को पार करके लेह का मार्ग मिला। वहां से यह दल पेंगोग झील पर पहुंचा। समुद्र तल से 14,000 फुट की ऊंचाई पर स्थित यह झील एशिया का सबसे बड़ा खारे पानी का स्थल है। लेह ‘नामग्याल’ घराने की पुरानी राजधानी रहा है। लेह से सटे सतोक गांव में राजघराने का पुराना महल अब भी जर्जर हालत में खड़ा है।
पुस्तक के परिचय में रतिका ओबरॉय का यह कहना कि ‘तेज बारिश में इस सफर की शुरुआत, चलने में हुई देरी, क्लच में आई खराबी एक तरफ, पर ब्यास नदी व पागल नाले की बाढ़ में जीप का फंसना, पहाड़ी खिसकना, पत्थर गिरना और हर रोज़ वापस मुड़ने की मंत्रणा के बीच यात्रा का तय अवधि में पूरा होना कुदरत का करिश्मा ही है, सोलहों आन्ने सच है।’
पुस्तक : दर्रों और दरियाओं के साथ लेखक : प्रीतम रूपाल प्रकाशक : सप्तऋषि पब्लिकेशन, चंडीगढ़ पृष्ठ : 96 मूल्य : रु. 200.