जीतेंद्र अवस्थी
संत्रास भी सृजन को शिथिल नहीं कर सकता बल्कि रचनात्मकता की अलग-सी जमीन की उर्वरता बढ़ाता है। साहित्य लेखन में पुख्ता पहचान बना चुके सैली बलजीत ने मौजूदा संत्रास काल की भीतरी छटपटाहट को लघुकथाओं की रचना में ढाला है। लघुकथाओं का शतक लगाकर इस विधा में अपनी दूसरी पुस्तक ‘खाली हाथ और लपटें’ से वह नम उदार हो गए। परेशानियों के दौर में सीखें जीने के हुनर ने उनके लेखन को गति देते हुए इसका परिमार्जन किया। अरसे से लिख रहे बलजीत बहुविध लेखक हैं। लघुकथा, कहानी, कविता, उपन्यास, संस्मरण आदि अनेक विधाओं में उन्होंने कलम अाजमाई है।
इस संग्रह की रचनाएं भी बहुधा स्वानुभूति या जगदानुभूति की गवाह हैं। मौजूदा व्यवस्था, सामाजिक ताना-बाना, भीतर से टूटते-बिखरते परिवार और मानव मात्र की समस्त संवेदनाएं और पीड़ाएं इनमें अटी पड़ी हैं।
‘खाली हाथ और लपटें’ लघु कथाएं जिंदगी के कटु सत्य को सामने लाती हैं। खाली हाथ का नायक भीख मांगने वाली औरत को रोटियां देने के बाद किसी अखबार में प्रकाशन के लिए उसकी फोटो खींचने की कोशिश करता है। बदले में यह महिला उससे Rs100 रुपये की मांग कर अपने जिस्म की पेशकश कर देती है। सकपकाया नायक नैतिकता को तरजीह देता है। इसी भावना का प्रकटीकरण लपटें लघु कथा में किया गया है, जिसमें जलती कार से उसके सवार को बचाने की बजाय एक प्रत्यक्षदर्शी सामान लूटने में लग जाता है। यहां भी नायक का नैतिक आचरण सामने आता है।
नैतिकता का यही तकाजा ज्वारभाटा, खाली हाथ, क्षोभ, उसे अब फौलाद होना है जैसी रचनाओं में मिलता है। सोने की मुर्गी में पेंशनयाफ्ता बाप के भाग जाने पर उसकी नहीं, सिर्फ उसकी पेंशन की रकम का लालच ही बेटे को उसे ढूंढ़ने के लिए प्रेरित करता है। गंदगी पति-पत्नी के संबंधों की नि:सारता की बानगी है।
कितना फर्क, हैवानियत, भीतर का आदमी, कैसी हैवानियत, नया जमाना, पत्थर दिल, पत्थरों के लोग, कैसी पहचान, टूटा हुआ खिलौना, कालचक्र, बेशर्म लोग, रिश्तों की अर्थी, मुनाफे का सौदा, जब पहाड़ टूटता है, लोकलाज, दुनियादारी, दफ्तर पुराण आदि लघुकथाएं मानवीय भावनाओं, संवेदना, स्वार्थपूर्ति, जलन, भ्रष्टाचार, भ्रष्ट आचरण वगैरा को ही उभार कर सामने लाती हैं। सब हमारे इर्दगिर्द घटती घटनाएं ही लगती हैं।
रवानगी और भाषा शैली में यत्र तत्र और सर्वत्र गुरुमुखी, पंजाबी माहौल और लोकाचार का समावेश है। यह रचनाएं संतोष भी देती हैं और गुस्सा व कचोट भी। अधिकांश लघुकथाओं में नैतिकता का प्रवाह नुमाया होकर सामने आता है अथवा भीतर ही भीतर वह अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है। लघु कथाएं पाठक के मन पर प्रभाव डालती हैं और कुरेदती हैं। कुछ रचनाएं तो लघुकथा नहीं बल्कि पूरी कहानी का कलेवर लिए हुए हैं अथवा ऐसा रूप अख्तियार करने की संभावना जगाती हैं। लघुकथाओं के साथ बलविंद्र के स्केच प्रस्तुति में चार चांद लगा देते हैं।
पुस्तक : खाली हाथ और लपटें लेखक : सैली बलजीत प्रकाशक : राजमंगल प्रकाशन, अलीगढ़ पृष्ठ : 214 मूल्य : रु. 250.