शारा
बहुत कम फिल्में होती हैं जो केवल गानों की बदौलत चल निकलती है, बॉक्स ऑफिस पर भीड़ जुटाती हैं। पुरस्कार समारोहों में हाजिरी लगाती हैं। ऐसी फिल्मों में बॉलीवुड की लाडली फिल्म ‘मेरे सनम’ का नाम लिया जा सकता है। यह फिल्म 13 नवंबर, 1965 को रिलीज हुई थी। वैसे भी 1960 से 1970 का दशक फिल्मी संगीत के लिहाज से काफी चर्चित रहा। इस दौरान बॉलीवुड के संगीत फलक पर कई जोड़ियां और संगीतकार बने। ‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर लगभग नौवें दशक तक धमाल मचाए रखा ओपी नैयर ने। संगीत में कई अनुसंधान किये। उन्होंने बॉलीवुड को महेंद्र कपूर जैसे गायक दिये। फिर आशा भोसले का संगीत के सिंहासन की तरफ पहला कदम उन्होंने ही उठवाया। यह बात अलग है कि आशा भोसले ने कभी भी ओपी नैयर का नाम नहीं लिया। तब गीतों की दुनिया में सिर्फ लता मंगेशकर का ही नाम लिया जाता था। उस जमाने में ‘तितली उड़ी’ गाने वाली शारदा भी सामने आयी थीं, लेकिन काबिलियत होने के बावजूद वह बॉलीवुड में टिक नहीं पायीं। क्योंकि समूचे बॉलीवुड में लता का ही सिक्का चलता था। ऐसे में अपने निजी जीवन में दुखी आशा भोसले को सहारा देने वाले ओपी नैयर ही थे। नैयर के संगीत में ही आशा ने तरह-तरह के गीत गाये। ‘यह रेशमी जुल्फों का अंधेरा’ जैसा गीत उनसे ही गवा सकते थे। क्योंकि लता की आवाज का सुरीलापन कैबरे डांस के गीतों में समा नहीं पाता। ‘पिया तू अब तो आजा’ में आशा के कंठ में लोचपन है। ओपी नैयर ने ‘रेशमी सलवार’ गवाकर शमशाद बेगम को लोकप्रिय कर दिया। उन्होंने अपने संगीत में पंजाबी ढोलक का इस्तेमाल किया जो बाद में नैयर साहब की यूएसपी बन गया। ‘नया दौर’ फिल्म के संगीत को कौन भूल सकता है? ‘आगे छेड़ेंगे गली के सब लड़के, तू चांद वैरी छुप लैण दे’ साहिर लुधियानवी के लिखे इस फिल्म के गीतों को नैयर साहब ने ही धुन दी थी। उन्होंने हमारे कॉमेडियन को भी गायक बनाने में कंजूसी नहीं की। ‘ऐ दिल है मुश्किल जीना यहां’ फिल्म सीआईडी में जॉनी वॉकर से गवाया। उन्हीं से ‘मिस्टर एंड मिसेज’ में ‘जाने कहां मेरा जिगर गया जी’ भी गवाया। नया दौर फिल्म में गाये जॉनी वॉकर के गीत को कौन भूल सकता है? ‘मैं बम्बई का बाबू नाम मेरा अंजाना’। आपको पता है ओमप्रकाश ने ‘ईंट की दुक्की, पान का इक्का’ स्वयं गाया था न कि रफी या मुकेश जी ने। नैयर साहब खुद गीत भी लिखते थे ‘नया दौर’ का गीत ‘यह देश है वीर जवानों का’ उन्होंने ही लिखा था। इस गीत के लिए उन्हें 1958 के फिल्म फेयर पुरस्कार के लिए सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक चुना गया। उनके गाने इतने लोकप्रिय थे कि आशा पारेख और शर्मिला टैगोर के अतिरिक्त ढेर सारी नायिकाएं उनके गीतों पर होंठ हिलाकर आसानी से गीत गाने की नकल करती थीं। बड़ी लंबी बात हो गयी नैयर पर, अब फिल्म की और लौटेंगे ‘मेरे सनम’ के हिट गानों में से कुछ का तो जिक्र यहां बनता है-‘जाइए आप कहां जाएंगे’, ‘यह है रेशमी जुल्फों का अंधेरा’, ‘हमदम मेरे मान भी जाओ’, ‘पुकारता चला हूं मैं’ संगीत इतिहास में मील का पत्थर हैं। पाठकों को बता दूं कि यह फिल्म अंग्रेजी फिल्म ‘कम सेप्टेंबर’ की एक तरह से रीमेक ‘अन ऑफिशियली’ है। ‘मेरे सनम’ में कश्मीर के दर्शनीय स्थलों की सिनेमैटोग्राफर के. बैकुण्ठ ने क्या सुंदर ढंग से कैप्चरिंग की है। इस फिल्म में विश्वजीत के साथ आशा पारेख हैं। मुमताज वैम्प के रोल में बेहद जंची हैं। विश्वजीत भी सुंदर दिखे हैं। आशा पारेख का यहां चुलबुलापन दर्शकों को काफी सुहाता है लेकिन एक्टिंग सिर्फ मुमताज की ही अच्छी है। फिल्म की कहानी ठीक-ठाक ही है। गीतों के कारण फिल्म ने प्रोडयूसर के गल्ले भर दिये। सैल्यूट टू नैयर साहब जिनके गीतों ने फिल्म को सुपरहिट बना दिया। कहानी इस प्रकार है-नीता (आशा पारेख) अपनी मां सावित्री देवी तथा अपनी कई सहेलियों के साथ कश्मीर दौरे पर निकली हैं। सावित्री देवी लखनऊ के किसी कॉलेज के हॉस्टल की वार्डन भी हैं। रास्ते में उन्होंने ‘ड्रीमलैंड होटल’ में ठहरने का फैसला किया कि पहली रात को ही होटल का मालिक कुमार (विश्वजीत) आ जाता है। होटल में मालिक के रूम में लड़कियां ठहरी हैं। पहली रात तो कुमार किसी तरह काट लेता है, लेकिन दिन चढ़ने पर वह केयरटेकर श्याम (प्राण) को कह देता है कि इन लड़कियों को किसी अन्य होटल का रास्ता दिखा दे क्योंकि यह उसके परिवार का आवासीय बंगला है और लड़कियों के शोर-शराबे से वह डिस्टर्ब होता है। यहां प्राण लड़कियों को बताता है कि कुमार जेहनी-ताजन खो चुका है। इसलिए वह खुद को होटल का मालिक समझता है जबकि सच यह है कि श्याम गैर-कानूनी धंधों में संलिप्त है और उसने होटल को नशीले पदार्थों की बिक्री का अड्डा बना रखा है। जहां तक कुमार का सवाल है वह होटल मेहरा साहब (नाजिर हुसैन) का है जो इंडस्ट्रियल एम्पायर के मालिक हैं तथा इस होटल मिल के भी, जिसके अफसरों ने ठहरने के लिए बंगला बनाया है। जिसे श्याम ने ड्रीमलैंड होटल में तबदील कर रखा है। श्री मेहरा कुमार के पिता के दोस्त थे। जब मेहरा अपने व्यापार के सिलसिले में अफ्रीका गए हुए थे तब अपनी दो वर्ष की बच्ची तथा पत्नी को अपने पिता के घर छोड़ गए थे। तभी देश विभाजन हो गया और सारा परिवार इधर से उधर हो गया। यह बात श्याम को पता लग चुकी थी कि सावित्री देवी ही श्री मेहरा की पत्नी है और लीला (आशा पारेख) उनकी बेटी। ये दोनों श्री मेहरा के असली वारिस भी हैं। जायदाद के लालच में श्याम मां और बेटी से किसी तरह संपर्क साधने में कामयाब हो जाता है और रिश्ते कायम करने की कोशिश करता है ताकि वह भी जायदाद का मालिक बन सके। इसके लिए वह खुद को नीना के पति के रूप में प्रस्ताव भी लेकर जाता है। कई मतभेदों के बाद और गुंडों की झड़प के बाद (नाइट क्लब में नीना के साथ गुडों की झड़प) कुमार और नीना प्यार करने लगते हैं लेकिन सीन में आये मेहरा इस रिश्ते को रद्द कर देते हैं क्योंकि सावित्री तक कुमार व कम्मो (मुमताज) के अतिरिक्त फोटो पहुंच गये थे जो कि श्याम द्वारा पहुंचाए गये। उन्हीं तस्वीरों के कारण नीना कुमार से नफरत करने लगी थी और श्याम से शादी के लिए तैयार हो गयी। श्याम ने यह सब कम्मो (मुमताज) से करवाया था तथा उसे और भी पैसा देने का लालच दिया था लेकिन कम्मो को उसने मरवा भी दिया और इल्जाम लगा कुमार पर क्योंकि फोटो की सच्चाई जानने के लिए कुमार जब कम्मो के कमरे में गया तो उसे मृत पाया। सावित्री को तो उसका पति मिल चुका था, लेकिन नीना तब तक कुमार के निर्दोष होने का पता लगाने कुमार के मित्र प्यारे लाल (राजेंद्र नाथ) के साथ जा चुकी थी, जिसने नीना को उसके खोए पिता के बारे में बताया था। यहीं पर ही उसे झलक मिलती है कि श्याम कुमार को क्लब में एक डांस के दौरान मरवाने का षड्यंत्र रच रहा है। प्यारे लाल नीना को डांसर के तौर पर प्रस्तुत कर देता है इसलिए वह क्लब में बैठे कुमार को बचा लेती है। लेकिन अंधेरे का फायदा उठाकर श्याम नीना को कार में भगा लेने में कामयाब हो जाता है। यहीं पर कार रेस शुरू हो जाती है आगे-आगे श्याम और पीछे-पीछे कुमार। आखिर में कुमार उसे दबोच लेता है। फिर पुलिस पहुंच जाती है। श्री मेहरा को अपना परिवार मिल जाता है और कुमार ओर नीना की शादी के लिए रजामंदी भी मिल जाती है।
निर्माण टीम
निर्देशक : अमर कुमार
प्रोड्यूसर : जीपी सिप्पी
मूल व पटकथा : नरेंद्र बेदी
संवाद : राजेंद्र सिंह बेदी
सिनेमैटोग्राफी: के. बैकुण्ठ
गीतकार : मजरूह सुल्तानपुरी
संगीतका : ओपी नैयर
संपादन : एमएस शिन्दे
सितारे : विश्वजीत, आशा पारेख, मुमताज, प्राण आदि
गीत
पुकारता चला हूं मैं : मो. रफी
भला मानो, बुरा मानो : मो. रफी
टुकड़े हैं मेरे दिल के : मो. रफी
हमदम मेरे मान भी : मो. रफी
रोका कई बार मैंने दिल की उमंग : आशा भोसले, रफी
हमने तो दिल को : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
हाजी हाजी हाजी बाबा : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
जाइए आप कहां जाएंगे : आशा
यह है रेशमी जुल्फों का : आशा