शारा
आपको हैरानी हो रही है ना? कि चेतन आनंद जैसा जीनियस बंदा कुदरत जैसी फिल्म भी बना सकता है? मगर ऐसा हुआ। कुदरत रिलीज हुई तो दर्शकों की बाढ़ आ गयी। नतीजतन, उस जमाने में ही इसके प्रोड्यूसर के खाते में इस फिल्म ने 4 करोड़ रुपये जमा कराये। यह फिल्म 1981 में रिलीज हुई थी। उस जमाने में करोड़ों का राजस्व कोई-कोई मूवी ही जुटाती थी। हुआ यूं कि एक तो राजेश खन्ना जैसे सितारे कॉलेज की लड़कियों का पीछा करने वाले मजनूं की उम्र पार कर चुके थे, सो आयु के हिसाब से पुनर्जन्म जैसे रोल ही रास आते थे। दूसरा फिल्मी रोमांस का यह जायका दर्शक बदलना चाहते थे क्योंकि सिनेमा पट पर ओमपुरी जैसे कलाकार यथार्थ सिनेमा के नारे के साथ बॉलीवुड में एंट्री मार चुके थे। सो जो दर्शक सिनेमा को अभी फैंटेसी के लिए देखना चाहते, उन्हीं कुछेक दर्शकों के लिए चेतन आनंद ने शिमला के प्रोड्यूसर बीएस खन्ना को लेकर फिल्म का जुआ खेला, मगर फिल्म सुपरहिट हो गयी। इस फिल्म ने कई फिल्मफेयर पुरस्कार भी जीते जिनमें चेतन आनंद को सर्वश्रेष्ठ कहानी, जल मिस्त्री को बढ़िया सिनेमैटोग्राफी के लिए पुरस्कृत किया गया। बढ़िया गायन ‘हमें तुमसे प्यार कितना’ के लिए किशोर कुमार को पुरस्कृत किया जाना था, यह पुरस्कार परवीन सुलताना ले उड़ी। हालांकि, उन्हें इसी गीत को फीमेल वॉयस में गाने के लिए नामांकित किया गया था। यह बात 1982 की है। इससे पहले हेमामालिनी और राजेश खन्ना की जोड़ी पुनर्जन्म की फिल्म महबूबा में आ चुकी थी। उस फिल्म ने भी अच्छी कमाई की थी। मगर तब राजेश खन्ना का फिल्मी सिक्का चलता था। कुदरत का निर्माण भी दो किस्तों में चला। आधी फिल्म बनाकर जब चेतन आनंद मुंबई चले गये तो पहली बार फिल्म निर्माण में उतरे शिमला के प्रोड्यूसर को फिल्म में लगाये पैसे की चिंता हुई। उन्होंने जब चेतन आनंद से संपर्क साधा तो उन्होंने अपनी मशरूफियत की बात बताकर फिल्म के निर्माण को टालना चाहा। इस पर दोनों में ठन गयी। लिहाजा यह पहली फिल्म होगी, जिसकी दोबारा कांट्रेक्ट डीड साइन हुई थी। हालांकि, प्रिया राजवंश शिमला के सेंट बीड्स में पढ़ी थीं और प्रोड्यूसर को बड़े निकट से जानती थीं। प्रिया राजवंश ने इस फिल्म में बाकायदा काम किया था। चेतन आनंद की फिल्मों में प्रिया राजवंश जरूर होती थी। साथ में राजकुमार भी। हीर-रांझा इसकी बानगी है। बहुत कम लोगों को पता होगा कि देव आनंद की पत्नी कल्पना कार्तिक प्रिया राजवंश की रिश्तेदार हैं। जिस वक्त पहली पत्नी उमा आनंद से चेतन आनंद की लगभग अनबन हो चुकी थी, उस वक्त सीन में प्रिया राजवंश ने एंट्री मारी, जिसे चेतन आनंद ताउम्र कानूनन पत्नी नहीं बना सके क्योंकि उमा ने उन्हें तलाक नहीं दिया था। उमा आनंद के बारे में भी पाठक कम ही जानते होंगे कि वह बेहद अच्छी डांसर थीं और उन्होंने ‘हकीकत’ फिल्म में रोल भी निभाया था। फिल्मकार केतन और विवेक उन्हीं के बेटे हैं, वही जो प्रिया राजवंश के कत्ल के आरोप में फंस चुके हैं। यह खानदान भी साहनी खानदान की तरह काफी सुर्खियों में रह चुका है। कुछ ज्यादा ही पढ़ गये हैं इसलिए ये लोग सामाजिक कद्र-कीमतों को तो नहीं मानते, कुदरत के उसूलों को भी नजरअंदाज करते हैं। विजय आनंद ने अपनी बहन की बेटी से शादी की है तो बलराज साहनी ने भी अपनी फर्स्ट कजन से शादी करके विजय आनंद की राहें आसान कीं। पाठक जानते होंगे कि शेखर कपूर की बहन यानी देव आनंद की भानजी बलराज साहनी के बेटे परीक्षित साहनी को ब्याही है। मतलब आनंद और साहनी परिवार साथ-साथ हैं। सितारों की कुंडलियां ज्यादा खुल गयीं, अब चलें फिल्म की कहानी की ओर। इस फिल्म के सभी गीत मजरूह सुलतानपुरी ने लिखे हैं सिर्फ एक गीत जो सारी फिल्म में गूंजता है-‘दुख-सुख की हर एक माला’ कतील शिफाई ने कलमबद्ध किया है। धुनें दी हैं आरडी बर्मन ने। राजेश खन्ना, राजकुमार, प्रिया राजवंश ने अपनी भूमिकाओं से हरेक दर्शक को कल्पना में अपनी कहानी बुनने के लिए मजबूर किया। मतलब मंजर आदि दर्शकों के थे और अभिनय किरदारों का। चेतन आनंद ने कहानी में यह तर्क परोसा कि कुदरत से अगर पंगा लेते हो तो कुदरत छोड़ती नहीं, भले ही बंदे को सात जन्म लेने पड़ें। शायद पुनर्जन्म नाम न रखकर उन्होंने फिल्म का नाम कुदरत इसीलिए रखा। कहानी की शुरुआत शिमला जाने वाली ट्रेन से होती है जहां चंद्रमुखी (हेमामलिनी) पहली बार अपने मां-बाप के साथ शिमला आ रही है। जहां वह ठहरी है, वह जनक सिंह (राजकुमार) का रिजॉर्ट है। हालांकि, वह शिमला पहली बार आयी है, तथापि उसे लगता है कि वह इस जगह को बड़े करीब से पहचानती है। हालांकि वह इसकी वजह से अनभिज्ञ है। तभी चंद्रमुखी और उसके माता-पिता की डॉ. नरेश से मुलाकात होती है। डॉ. नरेश देखते ही चंद्रमुखी पर मर-मिटता है। दोनों के माता-पिता डॉ. नरेश और चंद्रमुखी की शादी करने को तैयार हो जाते हैं। तभी मोहन कपूर जो चंडीगढ़ में वकील है, अपने अभिभावक तथा गॉड फादर को मिलने शिमला आता है। यह गॉड फादर जनक सिंह ही है। जनक सिंह की इकलौती बेटी करुणा भी पेशे से वकील है, जनकराज के कहने से मोहन करुणा से शादी के लिए हां कर देता है। मोहन इसलिए भी राजी होता है क्योंकि उसकी पढ़ाई-लिखाई का सारा खर्च जनक सिंह ने उठाया है। उधर चंद्रमुखी का मिलना गोपाल से होता है तो उसे अजीब अहसास होता है। जब मोहन वयोवृद्ध लोकगायिका सरस्वती को मिलता है तो वह भी कहीं खो जाता है और सरस्वती तो बड़े ही अजीब तरीके से पेश आने लगती है। वह मोहन से जब भी मिलती है, कहीं ख्यालों में गुम हो जाती है। उसके बाद उसे माधव (भाई) के दु:स्वपन आने लगते हैं। इस पर डॉ. नरेश की भौहें सिकुड़ जाती हैं। वह मोहन को याद दिलाने की कोशिश करने लगता है, लेकिन चंद्रमुखी को सब कुछ पिछले जन्म का याद आ जाता है कि वह पिछले जन्म में पारो थी और माधव यानी मोहन ही उसकी जान था। उसका जमींदार के बेटे ने बलात्कार किया था और बाद में हत्या कर दी थी। मोहन चंद्रमुखी से मिलकर सरस्वती को तलाशता है जो माधव की बहन थी। अब मोहन उहापोह में फंस जाता है क्योंकि जिस जनकराज ने उसे पैरों पर खड़ा किया उसी को वह अब अदालत में घसीटेगा। करुणा अपने पिता को बचाने के लिए आगे आती है। अदालत में साबित होता है कि जनकराज ने ही पारो का रेप करके उसकी हत्या की थी। यह जानकर माधव भी अपनी जान दे देता है। कोर्ट में मोहन केस हारने वाला ही होता है कि उसे उस महल की भनक लग जाती है, जिसमें पारो का कत्ल हुआ था। वह बिल्ली राम को भी ढूंढ़ निकालता है जो पेशे से मिस्त्री है तथा पारो की गुमशुदगी की बात जानता है क्योंकि जिस दीवार में उसने पारो को चिनवाया था, उसमें ईंट और गारा बिल्लीराम ने ही भरा था। मोहन पुलिस की उपस्थिति में उस दीवार को तुड़वाता है तो बीच में नर-कंकाल निकलता है। यह सब देख करुणा सदमे में आ जाती है। वह घर जाकर खुद को आग लगा लेती है, जनक मान जाता है कि कुदरत ने पारो के साथ न्याय किया है क्योंकि अदालत उसे हत्या का कसूरवार ठहराकर जेल में डाल देती है। उधर मोहन और चंद्रमुखी फिर मिल जाते हैं। कहानी खत्म। अब आप सोचते रहिए कि पुनर्जन्म होता है या नहीं? लेकिन चेतन आनंद ने पुनर्जन्म की इस कहानी को जिस सस्पेंस के साथ, जिस थ्रिलर के साथ पेश किया है, कहीं भी कोई घटना बेमानी नहीं लगतीं। यही कुदरत की फितरत है। यही पोइटिक जस्टिस है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : बीएस खन्ना
मूल, पटकथा व संवाद : चेतन आनंद
निर्देशक : चेतन आनंद
गीत : मजरूह सुलतानपुरी, कतील शिफाई
संगीत : राहुल देव बर्मन
सिनेमैटोग्राफी : जल मिस्त्री
सितारे : राजेश खन्ना, हेमामालिनी, प्रिया राजवंश, राजकुमार, विनोद खन्ना, अरुणा इरानी, देवेन वर्मा आदि
गीत
हमें तुमसे प्यार कितना : किशोर कुमार, परवीना सुलतान
छोड़ो सनम काहे का गम : किशोर कुमार, अन्नेट पिंटो
तूने ओ रंगीले कैसा जादू : लता मंगेशकर
सजती है यूं ही महफिल : आशा भोसले
सावन नहीं भादो नहीं : आशा भोसले, सुरेश वाडेकर
दुख सुख की हरेक माला : चंद्रशेखर गाडगिल और मोहम्मद रफी