आचार्य बोधिसत्व का एक युवा शिष्य था। एक बार पापक नामक इस शिष्य ने शास्त्रों में पाप-पुण्य के बारे में अध्ययन करना शुरू किया। शास्त्रों में उसी विषय पर आए एक प्रकरण को पढ़ते-पढ़ते उसे आभास हुआ कि उसका नाम बहुत खराब है। चिंतित होकर वह आचार्य बोधिसत्व के पास पहुंचा और विनम्रता से अपना नाम बदलने की प्रार्थना की। यह सुनकर बोधिसत्व मुस्कुराए और बोले, ‘एक काम करो पापक। तुम नगर में जाओ, जो नाम अच्छा लगे, ढूंढ़ कर ले आओ। तुम्हारा नया नाम वही रख दिया जाएगा।’ पापक शहर पहुंचा ही था कि उसने कुछ लोगों को एक अर्थी उठाए आते देखा। पता चला कि जीवक नाम के व्यापारी की मृत्यु हो गई है। आश्चर्य से उसने पूछा, ‘जीवक की भी मृत्यु होती है?’ वहां उसने धनपाली नामक महिला और उसके पति के बीच मारपीट होते देखी। गरीबी के कारण दोनों में कलह रहती थी। तभी एक व्यक्ति ने उससे पूछा, ‘भैया मेरा नाम पंथक है, रास्ता भटक गया हूं। रास्ता बताने की कृपा करें।’ अब पापक की आंखें खुल गईं। वह आचार्य बोधिसत्व के पास जाकर बोला, ‘मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि नाम पहचान मात्र के लिए है। मैं अपने इसी नाम के साथ धर्म कार्य करता रहूंगा और जीवन को सार्थक बनाने का प्रयास करूंगा।’ प्रस्तुति : पूनम पांडे