इंदौर (मध्यप्रदेश), 9 अक्तूबर (एजेंसी)
कोरोना वायरस संक्रमण के कारण फेफड़े खराब हो जाने और श्वसन संबंधी समस्याओं से जूझ रही 64 वर्षीय एक महिला ने यहां इलाज लेना बंद कर दिया और जैन धर्म की एक प्राचीन प्रथा के तहत कथित तौर पर अन्न-जल छोड़कर दो दिन पहले अपने प्राण त्याग दिए। महिला के परिजनों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी। परिवार ने बताया कि उपचार के बाद वह संक्रमण मुक्त हो गई थीं, लेकिन उनके फेफड़े खराब हो गए थे। दिवंगत महिला के करीबी रिश्तेदार जितेंद्र जैन ने बताया, ‘फेफड़े खराब होने के कारण शहर के एक निजी अस्पताल में गंभीर हालत में भर्ती रेणु जैन (64) ने अपने परिवार से कहा कि उन्हें पुष्पगिरि जैन तीर्थ ले जाया जाए। परिवार ने उनकी इस अंतिम इच्छा का सम्मान किया। धार्मिक प्रवृत्ति की महिला ने पड़ोसी देवास जिले में स्थित पुष्पगिरि जैन तीर्थ में समाधि मरण (संथारा) प्रथा के पालन का निर्णय किया और वहां अन्न-जल के साथ ही सांसारिक वस्तुएं छोड़कर बुधवार को प्राण त्याग दिए। संयोग से बुधवार को ही उनका 64वां जन्मदिन भी था। कुछ साल पहले उनके हृदय का ऑपरेशन भी हुआ था।
क्या है संलेखना
जैन समुदाय की धार्मिक शब्दावली में संलेखना को ‘सल्लेखना’, ‘समाधि मरण’ और ‘संथारा’ भी कहा जाता है। इसके तहत कोई व्यक्ति अपने अंतिम समय का आभास होने पर मृत्यु का वरण करने के लिए अन्न-जल और सांसारिक वस्तुएं त्याग देता है। कानूनी और धार्मिक हलकों में संथारा को लेकर वर्ष 2015 में बहस तेज हो गई थी, जब राजस्थान हाईकोर्ट ने इस प्रथा को भारतीय दंड विधान की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) और 309 (आत्महत्या का प्रयास) के तहत दंडनीय अपराध करार दिया था। हालांकि, जैन समुदाय के अलग-अलग धार्मिक निकायों की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने राजस्थान हाईकोर्ट के इस आदेश के अमल पर रोक लगा दी थी। पीलिया से ग्रस्त होने के बाद प्रसिद्ध जैन मुनि तरुण सागर (51) का दिल्ली के राधापुरी जैन मंदिर में एक सितम्बर 2018 को तड़के निधन हो गया था। मीडिया की खबरों में दावा किया गया था कि अंतिम समय में उन्होंने दवाएं लेना बंद करते हुए संथारा व्रत (मृत्यु तक उपवास) लिया था।