स्टॉकहोम, 7 अक्तूबर (एजेंसी)
आनुवांशिक रोगों और कैंसर के उपचार में मददगार ‘जीनोम एडिटिंग’ की एक पद्धति विकसित करने के लिए रसायन विज्ञान के क्षेत्र में 2020 का नोबेल पुरस्कार एमैनुएल चारपेंटियर और जेनिफर ए. डॉडना को देने की घोषणा की गयी है। रसायन विज्ञान में दो महिलाओं को एक साथ इस पुरस्कार से सम्मानित करने का यह पहला मौका है।
फ्रांसीसी वैज्ञानिक एमैनुएल और अमेरिकी वैज्ञानिक जेनिफर ने ‘सीआरआईएसपीआर/ सीएएस9’ (क्रिस्पर/कास9) नाम की एक पद्धति विकसित की है। इसका इस्तेमाल जंतुओं, पौधों और सूक्ष्म जीवों के डीएनए को अत्यधिक सूक्ष्मता से बदलने में किया जा सकता है। रसायन विज्ञान के लिए नोबेल समिति के अध्यक्ष क्लेज गुस्ताफसन ने कहा, ‘इस आनुवांशिक औजार में अपार क्षमता है। इसने न सिर्फ बुनियादी विज्ञान में क्रांति लाई है, बल्कि यह नये मेडिकल उपचार में जबर्दस्त योगदान देने वाला है। आनुवांशिक क्षति को ठीक करने के लिए कोई भी जीनोम अब एडिट किया जा सकता है। यह औजार मानवता को बड़े अवसर प्रदान करेगा।’ इसके साथ ही उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि इस प्रौद्योगिकी की अपार क्षमता का यह मतलब भी है कि हमें अत्यधिक सावधानी के साथ इसका उपयोग करना होगा। इसने वैज्ञानिक समुदाय में पहले ही गंभीर नैतिक सवाल उठाये हैं।
पुरस्कार की घोषणा होने पर चारपेंटियर (51) ने कहा, ‘मैं बहुत भावुक हो गयी हूं। मैं कामना करती हूं कि विज्ञान के रास्ते पर चलने वाली युवा लड़कियों के लिए यह एक सकारात्मक संदेश देगा।’
डॉडना ने कहा, ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि इसका उपयोग भलाई के लिए होगा, जीव विज्ञान में नये रहस्यों पर से पर्दा हटाने में होगा और मानव जाति को लाभ पहुंचाने के लिए होगा।’ उल्लेखनीय है कि इस प्रौद्योगिकी पर पेटेंट को लेकर हार्वर्ड के द ब्रॉड इंस्टीट्यूट और एमआईटी के बीच लंबी अदालती लड़ाई चली है और कई अन्य वैज्ञानिकों ने भी इस प्रौद्योगिकी पर महत्वपूर्ण कार्य किया है।
डीएनए में काट-छांट
‘जीनोम एडिटिंग’ एक ऐसी पद्धति है, जिसके जरिये वैज्ञानिक जीव-जंतु के डीएनए में बदलाव करते हैं। यह प्रौद्योगिकी एक कैंची की तरह काम करती है, जो डीएनए को किसी खास स्थान से काटती है। इसके बाद वैज्ञानिक उस स्थान से डीएनए के काटे गये हिस्से को बदलते हैं। इससे रोगों के उपचार में मदद मिलती है। चिकित्सा जगत में यह कांतिकारी कदम होगा।
गलत इस्तेमाल का भी खतरा
ज्यादातर देश इस प्रौद्योगिकी से 2018 में अवगत हो गये थे, जब चीनी वैज्ञानिक डॉ. हे जियानकुई ने यह खुलासा किया था कि उन्होंने विश्व का पहला जीन-संपादित शिशु बनाने में मदद की थी। भविष्य में एड्स विषाणु का संक्रमण रोकने के लिए प्रतिरोधी क्षमता तैयार करने की कोशिश के तहत ऐसा किया गया था। उनके इस कार्य की दुनियाभर में निंदा की गई थी, क्योंकि यह मानव पर एक असुरक्षित प्रयोग था। वह अभी जेल में हैं। विशेषज्ञों के एक समूह ने एक रिपोर्ट जारी कर कहा था कि आनुवांशिक रूप से बदलाव के साथ शिशु तैयार करना अभी जल्दबाजी होगी, क्योंकि इससे जुड़ी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए विज्ञान अभी उतना अत्याधुनिक नहीं हुआ है।