एक सेठ कबीर के प्रवचनों की महिमा को सुनकर उनके पास आया। तभी उसका ध्यान कबीरदास जी द्वारा पहने हुए खद्दर के कपड़ों पर गया। सेठ ने अगले दिन मखमल का कुर्ता लेकर कबीरदास जी के समक्ष रखकर उसे पहनने का अनुरोध किया। जब प्रवचन के समय उसने कबीरदास को उलटा कुर्ता पहने देखा तो हैरान रह गया। प्रवचन समाप्त हुआ तो कबीरदास जी बोले, ‘आप सभी को मैं तो बताना ही भूल गया, यह मखमल का कुर्ता मुझे इन्हीं सेठ ने दिया है। और सबसे पूछा, ‘कैसा है?’ तभी सेठ जी बोले आपने तो कुर्ते को उलटा पहन रखा है। कबीरदास जी मुस्करा कर बोले ‘अरे मैं साधारण-सा बुनकर इतना महंगा कुर्ता शायद ही कभी मोल ले पाऊंगा, इसलिए सोचा इसके मखमली भाग का सुख इस शरीर की चमड़ी को ले लेने दें। मैंने सोचा लोग देखकर क्या करेंगे, कम से शरीर को कुछ क्षणों के लिए सुख मिल जायेगा।’ यह सुन सेठ ने कबीरदास के चरण पकड़ लिए और बोला, ‘मैं सोचता था आपमें ऐसी क्या बात है जो सभी आपकी प्रशंसा करते हैं, आप तो सचमुच दिखावे, अहं, विकार सबसे परे हैं, मैं आपके दर्शन कर धन्य हो गया। कबीरदास बोले, ‘कपड़े का काम है, धूप, सर्दी, गर्मी और लोकलाज से बचाना। वैसे कपड़े तो मैं स्वयं बुन ही लेता हूं।’
प्रस्तुति : राजेश कुमार चौहान