शारा
धर्मेंद्र, बबीता और प्राण के अभिनय से सजी 1970 में बनी फिल्म ‘कब क्यों और कहां’ सस्पेंस और थ्रिलर मूवी थी। सत्तर के दशक में कामयाब साबित हुई इस फिल्म को अर्जुन हिंगोरानी ने अपने निर्देशन में ढाला था। यह उनके बेहतरीन निर्देशन का ही कमाल था कि फिल्म में रोमांस के साथ कॉमेडी का भी पुट डाला गया। फिल्म के गीत लिखे थे अंजान, इंदीवर ने और संगीत दिया था कल्याण जी आनंद जी ने।
जैसे कि फिल्म के नाम से ही पता लग जाता है कि यह ज़रूर थ्रिलर मूवी होगी। अर्जुन हिंगोरानी द्वारा निर्देशित इस फिल्म को प्रोड्यूस भी उन्होंने ही किया था। करण जौहर अपवाद नहीं हैं। कुछ कुछ होता है, कभी खुशी कभी गम जैसी क से शुरू फिल्में देकर उन्होंने दर्शकों को अर्जुन हिंगोरानी की याद करा दी थी। करण जौहर की तरह वह भी क के दीवाने थे। कहानी किस्मत की खतरों के खिलाड़ी के अलावा कब क्यों और कहां फिल्म ने भी अच्छा बिजनेस किया। कब, क्यों और कहां फिल्म के कमाऊ होने के पीछे रोमांस का तड़का भी था, टेक्नीकल तो यह मूवी पुख्ता थी ही। इस फिल्म में धर्मेंद्र के साथ बबीता थी। दोनों के बॉलीवुड में अभी कुछेक साल ही बीते थे। तरोताज़ा चेहरों की ताज़गी फिल्म में भी देखने को मिलती है। मूवी की शुरुआत ही फिल्म के टाइटल की तरफ इंगबत करती है। फिल्म की शुरुआत में ही नायिका के पिता (मुराद) जो कि नामी-गिरामी व्यक्ति हैं, का कत्ल हो जाता है। यहीं से ही कुछ सवाल सारी फिल्म में सस्पेंस फैलाये रखते हैं कि ऐसा क्यों हुआ और कैसे हुआ। चूंकि बबीता हसीन है और धर्मेंद्र जवान तो प्यार की चोंचे तो भिड़ेंगी ही। धर्मेंद्र और बबीता का मिलाप समुद्री जहाज के केबिन में होता है। यह मिलाप समुद्री जहाज में इसलिए होता है कि निर्देशक ने समुद्री जहाज की ऐश्वर्यमयी जिंदगी और पनपती साजिशें भी बतानी थीं। अब फ्लैश बैक के पाठक समझ गये होंगे कि कहानी कहां को जा रही है। वह जब लंदन से घर लौटती है, उसके पिता राय बहादुर जगदीश प्रसाद मुराद का कत्ल हो जाता है और उसके कत्ल की साजिशें भी शुरू हो जाती हैं। हमलावर कौन हो सकता है? क्योंकि इस फिल्म में प्राण (दलजीत) भी है। वह उसका सौतेला भाई है जो बबीता को मारकर अपने सौतेले बाप की जायदाद हड़प करना चाहता है। बबीता को यह तो पता है कि उसका सौतेला भाई लम्पट है मगर वह इस हद तक गिर सकता है कि उसकी सहेली लता (आशू) की इज्जत पर हाथ डाल दे, उसने कभी नहीं सोचा था। वह मौके पर पहुंचकर लता की इज्ज़त तो बचा लेती है मगर उसके हाथों अपने भाई का खून हो जाता है। अब एक और सस्पेंस है, थ्रिलर भी। दोनों लड़कियां लाश को ठिकाने कैसे लगाती है, मजेदार है। क्योंकि सीआईडी ऑफिसर और बबीता यानी आशा का बॉय फ्रेंड आनंद (धर्मेंद्र) जगदीश प्रसाद की हत्या की छानबीन करने के लिए अक्सर घर आता रहता है। पर चूंकि बबीता के हाथों खुद कत्ल हो गया है और वह लाश को ठिकाने लगाने की कोशिश में है। कहां तो वह कानून का साथ दे रही थी, अब कानून से बचती फिर रही है। कई दिलचस्प घटनाओं के बाद गुत्थी सुलझती है। चूंकि सस्पेंस की कहानी के बीच-बीच में रोमांस का तड़का भी लगता रहता है उससे यह होता है कि फिल्म से हर तरह का दर्शक चिपका रहता है। कहानी में मेन ट्विस्ट इंटरवल के बाद आता है। घटनाएं इतनी तेजी से घटती हैं कि दर्शक की आंखें एक पल भी नहीं झपकतीं। इसे निर्देशन का कमाल कहना चाहिए। ऐसा नहीं है कि कहानी में सस्पेंस, थ्रिल, रोमांस ही हो, यहां पर कॉमेडी भी रोमांस के साथ-साथ शुमार की गयी है। धूमल, असित सेन ने हास्य, प्राण ने थ्रिल और बबीता तथा धर्मेंद्र ने रोमांस से दर्शकों को बांधे रखा।
यह फिल्म 1970 में रिलीज हुई थी यह फ्रेंच क्लासिक मूवी ‘ले डायवोलिक’ से प्रेरित है। फिल्म में जो बाथटब के सीन हैं, फ्रेंच फिल्म से ही लिये गये हैं। आशा का आनंद से पहला सामना समुद्री जहाज़ में होता है। जहाज़ लंदन से मुंबई की वापसी पर है। रास्ते में आनंद जहाज पर बैठता है। वह लंदन किसी केस की छानबीन के सिलसिले में गया था। जहाज में आनंद को आशा से केबिन शेयर करना पड़ता है। यहां धर्मेंद्र 1960-70 दशक के हीरो की तरह आशा को रिझाने की पूरी कोशिश करता है फलस्वरूप आशा को आनंद से प्यार हो जाता है। उसके बाद आनंद खुलेआम आशा के घर में आता है लेकिन आशा पर हमले जारी हैं। कभी चाय या दूध में ज़हर मिला दिया जाता है। कभी स्वीमिंग पूल में मारने की साजिश होती है। पता तब चलता है अब लाश को ठिकाना लगाने की जद्दोजहद है, वह देखने काबिल है कि किस तरह दलजीत के शव को लकड़ी के बक्से में रखा जाता है। दलजीत की खुली आंखें डराती ज़रूर हैं लेकिन किसी तरह वे दोनों लाश को ठिकाने लगाने अंधेरी रात में चल पड़ती हैं। आनंद को कैसे इस कत्ल का पता चलता है यह तो स्टोरी देखकर ही पता चलेगा नहीं तो सस्पेंस सस्पेंस नहीं रहेगा। इस मूवी में सिनेमैटोग्राफी कमाल की है। खासकर जो फोटोग्राफी पानी में की गयी है, वह देखने योग्य है जो अंडरवाटर सीक्वेंस शाॅट किए गए हैं, वे एकदम असली लगते हैं। नहीं तो स्टोरी आम बॉलीवुड सस्पेंस फिल्मों की तरह है। साधारण स्टोरी को टुकड़े दर टुकड़ों में पेश करना ही निर्देशक की खूबसूरती है। कहीं कॉमेडी, कहीं गीतों का तड़का इस थ्रिलर फिल्म को कमाऊ फिल्म बनाए हुए है। इस फिल्म में हेलेन भी है, कमर झटकाती हुई। संगीत कल्याण जी आनंद जी का है और परफेक्ट सिनेमैटोग्राफी के. वैकुण्ठ की। फिल्म मनोरंजक है।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : अर्जुन हिंगोरानी
निर्देशक व मूल कथा : अर्जुन हिंगोरानी
कहानी संपादन : एस.एम. अब्बास
पटकथा : ध्रुव चटर्जी
सिनेमैटोग्राफी : के. वैकुण्ठ
गीतकार : अंजान, इंदीवर
संगीतकार : कल्याणजी आनंद जी
सितारे : धर्मेंद्र, बबीता, प्राण, धूमल, हेलेन आदि
गीत
हो गये तेरे हो गये : लता मंगेशकर
दिल तो दिल है किसी दिन : मोहम्मद रफी
प्यार से दिल भर दे : आशा भोसले, मोहम्मद रफी
ये आंखें झुकी- झुकी सी : आशा भोसले, ऊषा खन्ना