नरेन्द्र ख्यालिया/निस
हिसार, 8 जुलाई
प्रदेश के गवर्नमेंट कॉलेज में मुखियाओं का भारी टोटा बना हुआ है, 100 से अधिक कॉलेजों में प्राचार्य नहीं हैं। जिसके चलते एक-एक प्राचार्य को मजबूरन 3 से 4 कॉलेजों की व्यवस्था संभालनी पड़ रही है। 2012 के बाद इन पदों पर सीधी भर्ती भी नहीं हो पाई है। मजेदार बात तो यह है कि करीबन 4 जिलों के किसी भी कॉलेज में प्राचार्य नहीं है।
सरकार ने लगभग हर 20-30 किलोमीटर पर कॉलेज खोल रखे हैं, जिससे ग्रामीण क्षेत्रों की लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा मिला है, किंतु प्रदेश में चल रहे 172 गवर्नमेंट कॉलेजों में से मात्र 72 कॉलेजों के पास ही स्वतंत्र प्राचार्य लगाए गए हैं, जबकि 100 कॉलेजों के पास प्राचार्य नहीं हैं। ऐसे में प्रबंधकीय व्यवस्थाओं और एकेडमिक व्यवस्था पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।
4 जिलों के कॉलेजों में नहीं एक भी प्राचार्य
सूत्रों से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 100 कॉलेज बिना प्राचार्य के तो चल ही रहे हैं, जबकि प्रदेश के पलवल, चरखी दादरी, यमुनानगर व कुरुक्षेत्र जिलों के किसी भी गवर्नमेंट कॉलेज के पास प्राचार्य नहीं है, जबकि जिला महेन्द्रगढ़ के 15 महाविद्यालयों में से मात्र एक ही महाविद्यालय में प्राचार्य नियुक्त है। आंकड़ों पर गौर करें तो 44 पद सीधी भर्ती से प्राचार्यों की नियुक्ति का प्रावधान है, जिनमें से मात्र 4 प्राचार्य ही कार्यरत हैं और 40 पद सीधी भर्ती के खाली हैं, इसी प्रकार से लगभग 70 पद पदोन्नति पर आधारित रिक्त बताए गए हैं। हालांकि पदोन्नति पर आधारित पदों को तो 4 जुलाई 2020 को भरा गया था, लेकिन प्राचार्यों के पदों पर सीधी भर्ती 2012 के बाद नहीं की गई है। शिक्षाविदों का कहना है कि प्राचार्य का पद रिक्त होने से प्रबंधकीय व एकेडमिक दोनों ही काम प्रभावित होते हैं।
बिना पदोन्नति सेवानिवृत्त हो रहे प्रोफेसर
गवर्नमेंट पीजी कॉलेज की प्राचार्य डॉ. कुसुम सैनी ने कहा कि प्राचार्य के बिना कॉलेजों में डीडीओ के लिए व्यवस्था बना पाना मुश्किल रहता है और एकेडमिक सिस्टम पर भी प्रभाव पड़ता है। वहीं, गवर्नमेंट कॉलेज टीचर्स एसोसिएशन के प्रदेशाध्यक्ष डॉ. नरेन्द्र सिवाच शक्ति ने स्वीकार किया कि कॉलेज में प्राचार्य के बिना व्यवस्था स्थापित करना संभव नहीं होता है और एकेडमिक व्यवस्था भी प्रभावित होती है। कई वरिष्ठ प्रोफेसर विभाग की लापरवाही के चलते बिना पदोन्नति के ही सेवानिवृत्त हो रहे हैं।