जोगिंद्र सिंह/ट्रिन्यू
चंडीगढ़, 24 अगस्त
पंजाब विश्वविद्यालय की सीनेट की सबसे बड़ी कांस्टीचुएंसी रजिस्टर्ड ग्रेजुएट है। इसमें 3.62 लाख से भी अधिक वोटर हैं, मगर रोचक बात ये है कि इस सूची में शुमार बड़ी संख्या में मतदाता अब दुनिया में ही नहीं है। पूर्व कुलपति प्रो. अरुण कुमार ग्रोवर ने बताया कि करीब 85 फीसदी वोटर या तो मर चुके हैं या फिर उनकी पहचान की जानी ही मुश्किल है। हैरत की बात तो ये है कि पिछले 40-50 सालों से ग्रेजुएट कांस्टीचुएंसी की मतदाता सूची को रिवाइज ही नहीं किया गया। प्रो. ग्रोवर ने कहा कि पीयू जैसी लोकतांत्रिक बॉडी का ये हाल है जहां किसी को वास्तविक चुनाव सुधारों की कोई फिक्र ही नहीं है, क्योंकि वो ही सीनेटर बार-बार सीनेट में आना चाहते हैं। प्रो. ग्रोवर के सीनेट में पीयू के बंद होने वाले बयान का स्वत: संज्ञान लेते हुए पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने केंद्र, पंजाब व अन्य हितधारकों को नोटिस दिया था। केस के आर्थिक संकट वाले पहलू को तो निपटा दिया था मगर गवर्नेंस रिफार्म्स को लेकर अभी भी मामला हाईकोर्ट में विचाराधीन है। हाल ही में चांसलर द्वारा गवर्नेंस रिफार्म्स को लेकर गठित की गयी उच्च स्तरीय कमेटी ने भी अपनी सिफारिशों में इस कांस्टीचुएंसी को खत्म करने का सुझाव दिया है। इस कांस्टीचुएंसी का चुनाव अब तीसरी बार स्थगित किया जा चुका है। पीठासीन अधिकारी ने कई राज्यों से मतदान केंद्र बनाये जाने को लेकर आवश्यक परमिशन न दिये जाने की बात कही है। अभी तक इस कांस्टीचुएंसी के लिये कोई नई डेट भी घोषित नहीं की गयी है।
कालेजों में खाली पड़े हैं टीचर्स के पद
एफिलिएटिड आर्ट्स कालेजों और टेक्नीकल एवं प्रोफेशनल कालेजों की कांस्टीचुएंसी के चुनाव हालांकि हो चुके हैं लेकिन गौर करने की बात ये है कि इन कालेजों में से बहुत से ऐसे हैं जिनके हेड हैं ही नहीं। यही कारण है कि 78 प्रोफेशनल कालेजों के प्रिंसिपलों की जगह केवल 53 रेगुलर प्रिंसिपल के तौर पर काम कर रहे हैं जिनमें से 48 ने सीनेट चुनाव में अपने मताधिकार का प्रयोग किया। इसी तरह से इन कालेजों में फैकल्टी का भी ये ही हाल है। मात्र 789 टीचर्स ने ही इस बार सीनेट के लिये मतदान किया। डिग्री कालेज यानी एफिलिएटिड आर्ट्स कालेजों के प्रिंसिपलों के भी करीब आधे पद खाली पड़े हैं। रेगुलर प्रिंसिपलों की संख्या मात्र 59 है जिनमें से 57 ने वोट डाले। इन डिग्री कालेजों के 2423 टीचर इलिजिबिल हैं जिनमें से 2205 ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। तीन चौथाई टीचर्स के वोट ही नहीं है क्योंकि ये पद खाली पड़े हैं। इनमें से ज्यादातर ठेके पर हैं या एक्सटेंशन लेक्चरर हैं या फिर गेस्ट फैकल्टी हैं।
लंबित पड़ी पीआईएल पर भी हो सुनवाई
पूर्व कुलपति प्रो. अरुण ग्रोवर ने सवाल उठाया कि एक चीफ जस्टिस द्वारा दायर पीआईएल पर हररोज सुनवाई क्यों नहीं हो रही? जबकि गवर्नेंस रिफार्म्स अगले सीनेट चुनाव से पहले होने थे। हाईकोर्ट सीनेटरों की याचिकाओं पर कई बार सुनवाई कर चुका है जबकि पीआईएल की उपेक्षा कर रिलीफ भी दिया जा रहा है। अब वक्त आ गया है कि लंबित पड़ी पीआईएल को अहमियत दी जाये। उन्होंने चांसलर से भी आग्रह किया है कि वे केंद्र सरकार को एक लोकतांत्रिक संस्था में सुधारों के लिये प्रभावित करें। उन्होंने कहा है कि उच्चस्तरीय कमेटी द्वारा सुझाये गये सुधारों के लिये एक्ट में बदलाव की कोई आवश्यकता नहीं है और न ही पंजाब के सीएम या सरकार की कोई महत्ता कम होगी। अभी चुनाव होने से फिर वहीं गलतियां दोहराने का मौका मिलेगा।