शारा
कंगन नाम से फिल्म तीन बार बनी और तीनों बार इन फिल्मों के हीरो अशोक कुमार ही थे। हालांकि, नायिकाएं बदलती रहीं। वर्ष 1939 में पहली बार कंगन रिलीज हुई। इसमें अशोक कुमार के साथ लीला चिटनिस नायिका थीं। इसमें नाना पल्सिकर आदि चेहरे भी थे जिसे बाम्बे टॉकीज प्रोडक्शन कंपनी के तले प्रोड्यूसर हिमांशु राय, शशाधर मुखर्जी तथा राज नारायण दूबे ने प्रोड्यूस किया था। बाम्बे टॉकीज के मालिकों को तो आप जानते ही होंगे। अशोक कुमार की उस समय तूती बाेलती थी। नायिकाओं और प्रोडक्शन कंपनियों के बीच भी। खुद शशाधर मुखर्जी उनके रिश्तेदार थे। इस फिल्म के निर्देशक थे फ्रांज ऑस्टिन और पटकथा लेखन किया था सारादिंदू बंदोपाध्याय ने। मूल कहानी गजेंद्र कुमार मित्रा की थी। जबकि संगीत निर्देशकों में सरस्वती देवी और रामचंद्र पाल का नाम मिलता है। फोटो सेक्शन के निर्देशक थे जोजेफ वर्सिंग। गायकों के बारे में दिलचस्प बात बताती चलूं कि पुरानी फिल्मों के अधिकतर गीत फिल्म के पात्रों ने खुद गाये हैं। अशोक कुमार ने अधिकांश गीत गाये हैं। रिकार्ड में सहायक अभिनेताओं के भी नाम आये हैं, जिनमें अरुण कुमार प्रमुख हैं। पहले संगीत के रिकार्डों में जिन पात्रों ने फिल्म में जो गीत गाए होते थे, उन्हीं का नाम आता था, पार्श्व गायकों का नहीं। हां, संगीत निर्देशकों का नाम गाहे-बगाहे दर्ज हो जाता था। जब ‘महल’ फिल्म में मधुबाला ने लता की आवाज में गाने की एक्टिंग की और गाना लोकप्रियता की सीमाओं को पार कर गया तो श्रोताओं को पता लगने लगा कि लता मंगेशकर क्या चीज हैं? इसके बाद पार्श्व गायक पार्श्व गायक नहीं रहे। बाकायदा फिल्म की मार्केटिंग में उनका नाम आने लगा। एचएमवी के रिकार्ड्स में लिखा जाने लगा। फ्लैशबैक के पाठक जरा बताएं तो महल के किस गीत के बाद पार्श्व गायकों की एंट्री फिल्म की मार्केटिंग में होने लगी? इसी गाने के बाद भूतों के बारे में अवधारणा बदल गयी। वही सुरीली आवाज वाली लता का गाना जिसे सुनकर अशोक कुमार साये के पीछे भागता है। ‘आएगा आने वाला आएगा।’ तब फिल्म के निर्माताओं को शायद पहली बार पता चला कि गाने के कारण भी फिल्में चलती हैं और निर्माताओं के गल्ले भरती हैं। जब पार्श्व गायकों का फिल्म निर्माण की मुख्यधारा में आना हुआ तो कुछ सालों के बाद गीत लिखने वालों को भी अपनी कलम की ताकत का भान हुआ। तब तक फिल्मी लाइन में साहिर लुधियानवी जैसे गीतकार आ चुके थे। बस क्या था? गीतकारों को भी संगीत दल का हिस्सा समझा जाने लगा। बाकायदा साहिर की तो ओपी नैयर से इस मामले में तू-तू, मैं-मैं भी हो गयी क्योंकि साहिर का कहना था कि उनके गीतों के कारण ही बॉक्स ऑफिस पर भीड़ जुटती है, जबकि ओपी नैयर साहिर के इस दावे को कहां सही ठहराने वाले थे? उसके बाद नैयर साहिब ने साहिर के गीतों पर कभी धुन नहीं बनायी। साहिर भी कहां कम थे उन्होंने नैयर को टक्कर देने वाले कई संगीत निर्देशकों को बॉलीवुड में इंट्रोड्यूस किया। ‘जाने बहार हुस्न तेरा बेमिसाल है’ गीत को धुन देने वाले रवि साहिर की ही देन थी। यह व्यावसायिक खुन्नस की बात थी। बहरहाल, फ्लैशबैक इस बार खासा विषयान्तर हो गया। चलते हैं दूसरी वाली ‘कंगन’ फिल्म की ओर जो 1959 में रिलीज हुई। उस वक्त इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर खूब भीड़ बटोरी। नानाभाई भट्ट द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अशोक कुमार की नायिका थीं निरूपाराय। इसमें डेजी इरानी भी बाल कलाकार के रूप में दिखी हैं। डेजी इरानी कौन हैं? वही ‘शीरी फरहाद की तो निकल पड़ी’ फिल्म की कलाकार और जावेद अख्तर की पहली पत्नी हनी इरानी जो फरहान अख्तर और जोया की मां हैं, की बहन है। वह फरहा खान व साजिद की मौसी हैं। इस फिल्म में निरूपाराय ने क्या रोल किया है? यह फिल्म थी तो सोशल ड्रामा, लेकिन कहीं-कहीं सस्पेंस मूवी दिखती है। ऐसी ही फिल्म बाद में किसी और टाइटल के साथ बनी थी। लेकिन कहां निरूपाराय और कहां उस फिल्म ‘उलझन’ की नायिका सुलक्षणा पंडित? 1959 में बनी कंगन की कहानी में जो कसाव है, वह बाद की बनी कंगन फिल्म में भी नहीं। बात हजम नहीं होती लेकिन दुल्हन शादी के दिन अपनी सहेली और ननद के ब्लैकमेलर को सबक सिखाने होटल में उसके कमरे तक पहुंच जाती है बिना यह खौफ खाये कि उसकी इस हरकत पर उसके चरित्र पर आंच आ सकती है। बात इतनी-सी है कि दास परिवार में जिस व्यक्ति से उसकी शादी हो रही है उसकी बहन श्यामा निरूपाराय अथवा दुल्हन की सहेली है जिसे उसका ब्वॉयफ्रेंड उसे ब्लैकमेल करता है उन चिट्ठियों के लिए जो उसने रमेश (इफ्तिखार) को किन्हीं अंतरंग क्षणों में लिखे थे। खत तो वह बरामद कर लेती है लेकिन उसके हाथों रमेश (इफ्तिखार) की हत्या हो जाती है जो उसने अपनी आबरू बचाने के लिए की थी। वह खतों समेत वापस घर लौटती है और खत अपनी सहेली के हवाले करके खुद मंडप में बैठ जाती है। दुर्भाग्यवश यह केस उसके पति अशोक कुमार जो डीएसपी है, के सुपुर्द आता है। यहां पर पेंच पड़ जाता है। फिल्म में दिलचस्प सस्पेंस आ जाता है। निरूपाराय स्वीकारोक्ति करती है या नहीं? यह तो फिल्म देखने पर ही पता लगेगा, लेकिन कोर्ट सीन बड़े दिलचस्प बन पड़े हैं। पाठक इस फिल्म को जरूर देखें। तीसरी आलोच्य फिल्म 1971 में बनी थी, जिसमें अशोक कुमार की नायिका थी माला सिन्हा। केबी तिलक द्वारा निर्देशित यह फिल्म 1963 में रिलीज हुई तेलुगू फिल्म ईडू जोडू की तर्ज पर बनायी गयी। इस फिल्म में संजीव कुमार के रोल को काफी सराहा गया। इसके हिट होने के पीछे कल्याण जी आनंदजी का संगीत भी जिम्मेदार था। ‘सताए सारी रैना कुंवारे कंगना’, ‘झुके जो तेरे नैना’ इसी फिल्म के गाने हैं। इस फिल्म में सुनील यानी संजीव कुमार अपनी विधवा मां जानकी के साथ रह रहा है। मध्य वर्गीय जीवन जीने वाला सुनील शहर में डाक्टरी की पढ़ाई पढ़ रहा है। वह गांव की गोरी शांता से प्यार करता है और सारे गांववालों को पता है कि सुनील शांता शीघ्र विवाह कर लेंगे, लेकिन जानकी शांता को बहू के रूप में स्वीकार नहीं करती और सुनील की मंगनी शोभा से कर देती है। जानकी की नजर में शांता अनपढ़ और गंवार है। इस पर शांता की मां पार्वती बीमार पड़ जाती है और बेटी की हालत को देखते हुए दम तोड़ देती है। शांता की शादी गांव के ही सेठ लक्ष्मीपति (अशोक कुमार) से हो जाती है जो विधुर है और शांता से उम्र में काफी बड़ा है। उसकी पत्नी और बेटी लाइलाज मर गयी थीं। कोई भी लाइलाज न मरे, इसी भावना से लक्ष्मीपति गांव में अस्पताल बनवाता है। लक्ष्मीपति इस जानकारी के बिना शांता से शादी तो कर लेता है कि शांता और सुनील एक-दूसरे से शादी करने वाले हैं, वह पता लगाते ही शांता को पत्नी नहीं बल्कि बेटी समझता है और सुनील की शांता से शादी करना चाहता है जिसे शांता मंजूर नहीं करती क्योंकि वह भारतीय नारी है और भारतीय नारियां तर्क से नहीं जज्बों से चलती हैं। लक्ष्मीपति सुनील को शादी के लिए इसलिए मजबूर करता है क्योंकि वह उनके अस्पताल में डाक्टर है। अब क्या होगा? शांता सुनील से शादी करेगी या नहीं? लक्ष्मीपति की कोशिश तो नेक है लेकिन सारी बात तो फिल्म देखकर ही पता चलेगी।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : एमबी राज, जगदीश ए. शर्मा
निर्देशक : केबी तिलक
गीत : अंजान, इंदीवर, वर्मा मलिक
संगीत : कल्याणजी, आनंद जी
सितारे : माला सिन्हा, संजीव कुमार, अशोक कुमार, श्यामा, महमूद, अरुणा ईरानी आदि
गीत
सताए सारी रैना : लता मंगेशकर
झुके जो तेरे नैना : महेंद्र कपूर, उषा खन्ना
प्रभु जी मेरे अवगुण चित न धरो : अशोक कुमार
पंक्चर यह दुनिया मोटर गाड़ी है : रफी, महमूद