बारिश के इस मौसम में देशभर से बाढ़, जल जमाव और ट्रैफिक जाम के साथ ही बादल फटने से अनेक लोगों की मौत की दुखद खबरें आईं। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश और केन्द्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में ऐसे ही मामलों में 16 लोगों की मौत हो गई। कई मकान क्षतिग्रस्त हो गये। कई परियोजनाओं पर भी बुरा असर पड़ा। इससे पहले हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड में भी इस तरह की कई आपदाओं का सामना लोगों को करना पड़ा। एक तरफ जहां चक्रवाती तूफान के बारे में समय पर सूचना मिल जाने से समुद्र किनारे के लोगों को बचाने की कोशिश होती है, वहीं बादल फटने का पूर्वानुमान मौसम विभाग नहीं लगा पाता। इसके कारण पर्वतीय राज्यों में लोगों को भारी तबाही झेलनी पड़ती है। आइये जानते हैं बादल फटने के पूरे मसले को-
बादल फटने का मतलब क्या?
सभी जानते हैं कि किसी इलाके में कुल बारिश को मिलीमीटर या सेंटीमीटर में नापा जाता है। मौसम विभाग इसी पैमाइश के आधार पर घोषित करता है कि किस इलाके में कितनी बारिश हुई। इस तरह कहा जाता है कि जब एक निश्चित दायरे में कहीं एक घंटे में 10 सेंटीमीटर या उससे अधिक बारिश हो जाए तो वह बादल फटना होता है। अब सवाल उठता है कि जहां-जहां भी भारी बारिश होगी, वहां बादल फटना माना जाएगा? नहीं ऐसा नहीं है। बारिश अगर सुबह से रात तक लगातार चल रही हो या कहीं-कहीं तो कई दिनों तक बारिश होती है, फिर भी वहां की स्थिति बादल फटने की नहीं होती। असल में बरसाती बादल जब आपस में टकराते हैं और किसी एक ही इलाके में तेज रफ्तार से बारिश होती है तो वह बादल फटना कहलाता है। आमतौर पर पहाड़ी इलाकों में ऐसा होता है, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में ऐसी घटनाएं कम सुनने को मिलती हैं। इसका कारण यह है कि वहां अधिक बारिश वाले ज्यादातर इलाके चिन्हित हैं और पानी के निकास का समुचित प्रबंध है। उत्तर भारत के पहाड़ी राज्यों में स्थिति उलट है।
कैसे टकराते हैं बादल
असल में बारिश के मौसम में पश्चिमी विक्षोभ भी कई बार सक्रिय हो जाता है। मानसूनी हवाओं में भी नमी रहती है। नमी वाली हवाओं और पश्चिमी विक्षोभ के दौरान जब हवा का वेग बढ़ता है और उस दौरान छोटे-छोटे बादलों के झुरमुट किसी खास इलाके में उमड़-घुमड़ रहे होते हैं तो हवाओं के संपर्क में आते ही सक्रिय हो जाते हैं और वे एक खास इलाके में तेजी से बरस जाते हैं। हवाओं के अलावा भी पहाड़ी इलाकों में कई बार बारिश की स्थिति पहले से बनी रहती है।
सक्रिय मानसून के दौरान दोनों स्थितियों के मिलने से बादल फट जाते हैं। आमतौर पर मानसून के मौसम में ही बादल फटने की घटनाएं ज्यादा होती हैं, लेकिन कई बार मानसून से पहले या पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय रहने के दौरान भी ऐसी आपदाएं आ जाती हैं। यदि अनियोजित विकास न हुआ हो और पहाड़ पर बनी मानसूनी नदियों में अतिक्रमण न हो तो इस पानी का तेज़ी से निकास भी हो जाता है। ऐसे में नुकसान कम होगा, लेकिन परिस्थितियां उलट हुईं तो ज्यादा नुकसान की आशंका रहती है।
अभी पूर्वानुमान संभव नहीं
चूंकि बादल फटना एक निश्चित स्थान पर होता है। हवाओं की सक्रियता और स्थानीय परिस्थितियों पर यह निर्भर है इसलिए अभी तक इसका सटीक अनुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाया। जानकारों का कहना है कि बादल फटने की घटनाएं महज 8 से 10 किलोमीटर सीमा क्षेत्र में अचानक बनी परिस्थितियों के कारण होता है, इसलिए अभी इसका पूर्वानुमान लगाना कठिन है। हालांकि विशेषज्ञ उम्मीद जताते हैं कि जिस तरह भारी बारिश की संभावना के बारे में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है या अलर्ट जारी किया जाता है, उसी तरह आने वाले समय में बादल फटने के बारे में भी पहले से अलर्ट किया जा सकता है। वैसे भारी बारिश की आशंका के दौरान पहाड़ी क्षेत्रों, खासतौर पर अधिक ऊंचाई वाले स्थानों पर सतर्कता जरूरी है। – फीचर डेस्क