कुमार विनोद
गीता में कहा गया है, संशयात्मा विनश्यति। इसके बावजूद लोगों के मन में किसी न किसी बात को लेकर संदेह घर कर ही जाता है। इस चुनावी मौसम में, खुद को बड़ा फन्ने खां समझने वाले सूरमा भोपाली नेताओं तक के मन में शंकाओं के काले-काले बादल उमड़ने-घुमड़ने लगते हैं। पता नहीं इस बार उनकी पार्टी चुनाव लड़ने के लिए उन्हें टिकट देगी भी या नहीं? किसी और दल में शामिल होने पर, वहां उनकी दाल गलेगी कि नहीं! जिनका टिकट भी पक्का है, और जिन्हें अपनी जीत का यकीं भी है, उन्हें अपनी ही पार्टी के सरकार बना लेने पर संशय है!
दूसरी तरफ बजट आने से पहले, चौबीसों घंटे आमजन के मन में वही बरसों पुराने, घिसे-पिटे सवाल रह-रहकर मंडराते रहते हैं। फलां चीज महंगी होगी या सस्ती? अमुक योजना चालू रहेगी या बंद हो जाएगी? इनकम टैक्स की दरों में मनचाहा बदलाव होगा या नहीं? अलबत्ता, कुछ चुनिंदा किस्म के महारथियों के पास बजट आने से पहले ही उसके दूरगामी परिणामों तक की पुख्ता जानकारी होती है। ऐसे अपवादस्वरूप गुणीजनों के यहां संशय का तो सवाल ही नहीं उठता। ऐसे लोगों को यह गुनगुनाते हुए सुना जा सकता है, ‘बहुत पहले से उन कदमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ बजट हम दूर से पहचान लेते हैं।’
धुर सत्ता विरोधी हों या फिर घनघोर सरकार समर्थक, बजट आने से पहले ही ऐसे लोग ठोस निष्कर्ष निकाल रखते हैं कि रुपया कमजोर होगा या मजबूत। दोनों की मानें, तो रुपये के कमजोर होने के साथ-साथ उसका मजबूत होना भी तय है। लेकिन कैसे? यह तो रुपये बेचारे को खुद भी नहीं मालूम! डर बस इसी बात का रहता है कि संशयग्रस्त होकर कहीं वह आत्महत्या का इरादा ही न कर ले।
बजट के स्वागत में सनातन काल से दिए जाने वाले बयानों के कुछ ‘बीज शब्दों’ पर आप भी गौर कीजिए— न भूतो, न भविष्यति; क्रांतिकारी; कल्याणकारी; ऐतिहासिक; विकासोन्मुख; रोजगारपरक; गरीब-हितैषी; किसान-हितैषी; उद्योग-हितैषी; दूरदर्शी आदि-इत्यादि। दूसरी ओर, बजट को खरी-खोटी सुनाने वालों के पसंदीदा विशेषण हैं—दुश्वारियां बढ़ाने वाला, लोक-लुभावन, धोखा, जुमलेबाजी, मध्यम वर्ग पर प्रहारकारी, निराशाजनक, बेरोजगारी बढ़ाने वाला, दिशाहीन वगैरह-वगैरह।
कहते हैं, गीता-सार किसी भी समय पढ़ने से मन को असीम शांति मिलती है, लेकिन गुणीजन बताते हैं कि बजट सुनने के तुरंत बाद इसे पढ़ने-सुनने से विशेष शांति मिलती है, ‘जो हुआ वह अच्छा हुआ; जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है; जो होगा वह भी अच्छा ही होगा।’ वैसे देखा जाए तो इन गुणीजनों को भी गीता मनीषी मान ही लेना चाहिए!