राजकिशन नैन
‘छत्तीसगढ़ की लोक एवं मिथ कथाएं’ नामक कृति में हरिहर वैष्णव ने छत्तीसगढ़ के जनजीवन में सदियों से व्याप्त लोक एवं मिथक कथाओं का संकलन एवं संपादन सीधी सरल भाषा में प्रवाहपूर्ण ढंग से किया है।
हरिहर वैष्णव पचास साल से लिख रहे हैं। इनकी समूची रचना निधि बस्तर के ग्राम लोक की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक थाती पर केंद्रित है। हिंदी के अलावा इन्होंने बस्तर की तेजी से सिमट रही गोंडी, हल्बी, भतरी, बस्तरी और छत्तीसगढ़ी जैसी लोक भाषाओं में विपुल साहित्य का प्रणयन किया है। प्रस्तुत संग्रह की 77 कथाएं बस्तर की सत्रह भाषाओं से चुनी हैं। इनमें से चौदह कथाएं खुद लिखी हैं और बाकी की 63 कथाएं अपने 24 अन्य सहयोगियों से ली हैं।
कहने और सुनने की रीत के सहारे एक कंठ से दूसरे कंठ तक पहुंची इन रुचिकर कथाओं ने ग्रामवासियों को पोषण देकर जो जीवंतता उन्हें बख्शी है, वह अनमोल है। ये मनोरंजक तो हैं ही, इनमें गंवई समाज की आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक व अन्यान्य परंपराएं भी परिलक्षित होती हैं। हल्बी लोक कथा ‘उड़ने वाला घोड़ा’ बताती है कि लालच सबसे बड़ा दुर्गुण है। इसी भाषा की ‘चिडरामुसा की सूझबूझ’ नामक कथा भी यही सिखाती है कि लालची आदमी को मुक्ति नहीं मिलती। छत्तीसगढ़ी लोक कथा ’बहुला गाय’ कहती है कि सच्चे की बहुरे, झूठे की न बहुरे। सत्यवादिनी गाय बहुला ने सच के बल पर अपनी और अपने बछड़े, दोनों की जान बचा ली।
कमारी लोककथा ‘अनाथ लड़का’ से पता चलता है कि जनजातीय समाज में अपने पुरखों को देवता मानकर उनकी अर्चना की जाती है। बिरहोरी लोककथा ‘एक सियार की कहानी’ में दर्शाया गया है कि चातुरी के बूते पर एक मक्कार गीदड़ ने ब्रह्मा, विष्णु और शंकर समेत एक मगरमच्छ तक को मूर्ख बना दिया। गोंडी भाषा की कथा ‘डुमर फल’ में यह संदेश निहित है कि वृक्ष तले गिरे हुए फलों को पांवों से कदापि नहीं कुचलता चाहिए। छत्तीसगढ़ी कथा ‘कुएं का कमल’ में बताया गया है कि ‘आत्मा सो परमात्मा’ यानी पिंड में ब्रह्मांड का वास है। सब भूत प्राणियों में ईश्वर का दर्शन करो। बस्तरी लोक कथा ‘आदमी और बैल’ में आदमी और बैल के भाईचारे का दर्शनीय चित्रण देखने को मिलता है।
गऊ का जाया अपने मित्र युवक की रक्षा के लिए प्राणों की बाजी लगा देता है। चंदा और सूरज, आकाश ऊपर उठ गया, बादल, मारकंडे नदी, बांडाबाग, लदनी और कुमडाकोट नामक कथाएं भी रोचक बन पड़ी है। बाघ, बकरा, लोमड़ी, गिद्ध, कौआ, गौरैया, सांप और बगुले से जुड़ी कथाएं भी बस्तर संभाग में खूब प्रचलित हैं। ‘नगरिया का नागर’ जैसी लोककथाएं भी बस्तर के लोक मानस की उम्दा उपज हैं, जिनमें लोगों के दिमाग को कुंद कर चुके अंधविश्वास का चित्रण मिलता है।
पुस्तक : छत्तीसगढ़ की लोक एवं मिथक कथाएं संपादक : हरिहर वैष्णव प्रकाशक : सरस्वती बुक्स, भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़ पृष्ठ : 235 मूल्य : रु. 350.