नयी दिल्ली, 19 नवंबर (एजेंसी)
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 विवादास्पद कृषि कानूनों पर आखिरकार अपनी सरकार के कदम वापस खींच लिये और देश से ‘क्षमा’ मांगते हुए शुक्रवार को इन्हें निरस्त करने एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से जुड़े मुद्दों पर विचार करने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की। प्रधानमंत्री ने गुरु नानक जयंती पर राष्ट्र के नाम संबोधन में यह घोषणाएं की।
प्रधानमंत्री ने कहा आज मैं आपको… पूरे देश को… यह बताने आया हूं कि हमने 3 कृषि कानूनों को वापस लेने का निर्णय लिया है। इस महीने के अंत में शुरू होने जा रहे संसद सत्र में, हम इन तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने की संवैधानिक प्रक्रिया को पूरा करेंगे।’
उन्होंने कहा, ‘देश के कोने-कोने में कोटि-कोटि किसानों ने, अनेक किसान संगठनों ने, इन कानूनों का स्वागत किया, समर्थन किया। मैं आज उन सभी का बहुत आभारी हूं।’ उन्होंने कहा, ‘एमएसपी को और अधिक प्रभावी और पारदर्शी बनाने के लिए, ऐसे सभी विषयों पर, भविष्य को ध्यान में रखते हुए, निर्णय लेने के लिए, एक कमेटी का गठन किया जाएगा। कमेटी में केंद्र सरकार, राज्य सरकारों के प्रतिनिधि होंगे, किसान होंगे, कृषि वैज्ञानिक होंगे, कृषि अर्थशास्त्री होंगे।’
कृषि कानून वापस लेने के फैसले से भाजपा को भी राहत मिली है, क्योंकि इन कृषि कानूनों का पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में विरोध हो रहा था। यहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं।
ऐसे रद्द होंगे कानून
नयी दिल्ली : संविधान और विधि विशेषज्ञों के अनुसार, केंद्र सरकार को कृषि कानूनों को निरस्त करने के लिए संसद में विधेयक लाना होगा। इसके लिए आवश्यक संवैधानिक प्रक्रिया को इस महीने शुरू हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र में पूरा किया जाएगा। पूर्व केंद्रीय विधि सचिव पीके मल्होत्रा ने कहा, ‘किसी कानून को निरस्त करने के मामले में संसद की शक्ति संविधान के तहत कानून लागू किए जाने के ही समान है।’ सरकार को तीनों कानूनों को निरस्त करने के लिए एक विधेयक लाना होगा। पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा, ‘और कोई तरीका नहीं है।’ आचार्य ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को एक निरस्तीकरण विधेयक के जरिए निरस्त कर सकती है। मल्होत्रा ने कहा, ‘जब कोई निरस्तीकरण विधेयक पारित किया जाता है, तो वह भी कानून होता है।’ उन्होंने कहा कि तीनों कृषि कानून लागू नहीं किए गए थे, लेकिन वे संसद द्वारा पारित कानून हैं, जिन्हें राष्ट्रपति की अनुमति मिली है और उन्हें संसद द्वारा ही निरस्त किया जा सकता है।
…तो सुप्रीम कोर्ट में ‘निरर्थक’ हो जाएंगी याचिकाएं
कृषि कानूनों को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाएं संसद द्वारा नया कानून पारित करने या इन्हें निरस्त करने के बारे में आवश्यक अध्यादेश जारी होने के बाद ‘निरर्थक’ हो जाएंगी। वरिष्ठ अधिवक्ता एवं संवैधानिक कानून विशेषज्ञ राकेश द्विवेदी ने कहा, ‘याचिकाएं निरर्थक हो जाएंगी। … एक अध्यादेश के जरिये या एक अधिनियम के जरिये, न कि मौखिक बयान के जरिये।’ मामला सुनवाई के लिए कोर्ट की पीठ के समक्ष आने पर पक्षकारों के वकीलों को इन कानूनों को निरस्त किये जाने के बारे में उसे अवगत कराना होगा ताकि वह इन याचिकाओं को वापस लिया मानते हुए इन्हें खारिज करने संबंधी उचित आदेश पारित कर सके। शीर्ष न्यायालय ने राजद के राज्यसभा सदस्य मनोज झा, द्रमुक से राज्यसभा सदस्य तिरूचि शिवा और छत्तीसगढ़ किसान कांग्रेस के राकेश वैष्णव की याचिकाओं पर 12 अक्तूबर 2020 को केंद्र को नोटिस जारी किया था। कोर्ट ने किसानों की शिकायतों को सुनने के लिए चार सदस्यीय एक समिति भी गठित की थी, जिसने मार्च में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।
ये हैं तीन कृषि कानून
कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) कानून, 2021 इस कानून के मुताबिक किसान दूसरे राज्यों में भी फसल बेच और खरीद सकते हैं । फसल की बिक्री पर कोई टैक्स नहीं लगेगा ।
मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवाओं पर कृषक (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) अनुबंध कानून किसान खरीदार के साथ सीधे समझौता कर कांट्रैक्ट फार्मिंग कर सकते हैं । इस एमएसपी पर स्पष्ट नहीं किया गया।
आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून पुराने कानून को संशोधित कर खाद्य तेल, तिलहन, दाल, प्याज और आलू जैसे कृषि उत्पादों पर से केंद्र द्वारा स्टॉक लिमिट हटा दी गई है । अपरिहार्य स्थितियों में ही इन पर स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी ।