रोहतक, 13 दिसंबर (हप्र)
‘प्यार को रुपए-पैसे व ताकत के पिंजरों में कैद नहीं किया सकता, वह किसी भी दीवार, किसी भी ताले को तोड़कर अपनी मंजिल पा ही लेता है। सप्तक रंगमंडल, पठानिया वर्ल्ड कैंपस और सोसर्ग द्वारा किसनपुरा चौपाल में आयोजित घरफूंक थियेटर फेस्टिवल में मंचित इस बार के नाटक ‘बीवियों का मदरसा’ का कुछ यही निष्कर्ष रहा।
नाटक से यह संदेश भी मिला कि समाज का एक तबका महिलाओं को पैर की जूती समझने और घर की चारदीवारी में कैद करने की कोशिश करता है, लेकिन अंततः वे अपनी मंजिल पा ही लेती हैं। साप्ताहिक आयोजन में इस बार दिल्ली के ‘मास्क प्लेअर्स आर्ट ग्रुप’ के नाटक “बीवियों का मदरसा” का मंचन किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ विशिष्ट अतिथि एवं व्यापारी नेता गुलशन डंग, पीजीआई में यूरोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. वजीर सिंह राठी, वरिष्ठ सर्जन व समाजसेवी डॉ. आरएस दहिया, नाटक के निर्देशक चंद्र शेखर शर्मा और सतीश कक्कड़ के दीप प्रज्वलन से किया गया। इस अवसर पर सतीश कक्कड़ ने 1978 में खेले गए इस नाटक के हीरो विश्वदीपक त्रिखा व चन्द्र शेखर शर्मा को सम्मानित किया। डॉ. राठी, अविनाश सैनी व यतिन वधवा मन्नी ने अतिथियों को बुके व स्मृति चिह्न प्रदान किए।
प्रसिद्ध फ्रांसिसी नाटककार मौलियर का लिखा ये नाटक समाज के ऐसे लोगों पर व्यंग्य करता है जो अपने स्वार्थ के लिए धन-दौलत और रीति-रिवाज़ों की आड़ में लोगों को अपना ग़ुलाम बनाना चाहते हैं।
मंचन के दौरान डॉ. महेश महला, डॉ. राजीव मनचंदा, डॉ. आनंद शर्मा, देवदत्त, मिस निशु, वीरेन्द्र फोगाट, ब्रह्म प्रकाश सैनी, जगदीप जुगनू, रिंकी बत्रा सहित सुपवा के विद्यार्थी व अनेक नागरिक उपस्थित रहे। मंच संचालन सुजाता ने किया।