6 जनवरी के दैनिक ट्रिब्यून में भरत झुनझुनवाला का ‘वित्तीय अनुशासन से ही सुधरेगी आर्थिकी’ कोरोनाजनित मंदी के फलस्वरूप बढ़ते सरकारी खर्च और तेज़ी से घटते राजस्व के मद्देनजर आय के वैकल्पिक स्रोतों पर बल देने वाला था। नि:संदेह गैर-उत्पादक सरकारी खर्चे में कमी कर देनी चाहिए। सरकारी राजस्व में वृद्धि करने के लिए सरकार को आयात करों में वृद्धि करनी चाहिए। लेकिन लेखक ने जो सेवकों के वेतन में 50 प्रतिशत कमी करने की बात कही है, उससे सहमत नहीं हुआ जा सकता। मंदी के कारण लोगों की आय के अतिरिक्त साधन पहले ही कम हो गये हैं और दूसरे, महंगाई के कारण उनका बहुत बुरा हाल हो रहा है। कोशिश हो कि लोगों की आमदनी तथा मांग बढ़े।
शामलाल कौशल, रोहतक
पढ़ने की उम्र
दैनिक ट्रिब्यून के संपादकीय पृष्ठ पर प्रकाशित लेख ‘रिटायरमेंट के बाद डाॅक्टरी की पढ़ाई’ बहुत ही रोचक लगा। लेख ने साबित कर दिया कि पढ़ने की कोई उम्र नहीं होती। अगर जीवन का लक्ष्य हासिल करने के लिए कोई मन में दृढ़ संकल्प कर ले तो देर-सवेर सफलता मिल ही जाती है। लेख में तमाम बाधाओं के बावजूद उनके हौसले बुलंद हैं और वे तमाम ऐसे लोगों के लिए प्रेरणापुंज बने हैं जो देशकाल परिस्थिति के चलते अपने सपने पूरे नहीं कर पाते।
संदीप कुमार वत्स, चंडीगढ़
रास्ता निकालें
किसान नेताओं और सरकार के बीच हुई सातवें दौर की बैठक बेनतीजा खत्म हो गई। कंपकंपाती सर्दी में भी किसान आंदोलन चल रहा है, लेकिन फिर आंदोलन को समाप्त करने का कोई हल आखिर क्यों नहीं निकल रहा? सरकार और किसानों को एक-दूसरे को समझना चाहिए, तभी यह आंदोलन समाप्त हो सकता है।
राजेश कुमार चौहान, जालंधर