सुभाष रस्तोगी
शोधक, चिंतक और शिक्षक डॉ. लालचंद गुप्त ‘मंगल’ के लिए आलोचना भी एक रचनात्मक कर्म है और सत्यान्वेषण का पर्याय है। हरियाणा में रचित सृजनात्मक हिंदी साहित्य पर शोध की मार्फत प्रकाशवृत्त केंद्रित करके उसे हिंदी लेखन की मुख्य धारा में लाकर खड़ा करने का श्रेय डॉ. लालचंद गुप्त ‘मंगल’ को ही दिया जा सकता है। आज डॉ. मंगल नि:संदेह शोध, आलोचना और संपादन की नयी राहों के अन्वेषी के रूप में जाने जाते हैं। डॉ. मंगल के अब तक लिखित/संपादित 40 ग्रंथ तथा 200 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित/प्रसारित हो चुके हैं। यहां यह भी गौरतलब है कि उनके अब तक 8 ग्रंथ हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकूला और राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किए गए हैं।
हिंदी कविता का इतिहास लगभग 1200 वर्ष पुराना है। सरहपा (800 ई. के आसपास) से लेकर निरंतर प्रवाहमान इस काव्य यात्रा का कोई भी पक्ष, प्रवृत्ति, आंदोलन ऐसा नहीं है, जिस पर हिंदी साहित्य के विशेषज्ञों, विद्वानों, शोधकों-समीक्षकों द्वारा रचित सैकड़ों-सैकड़ों ग्रंथ हमें उपलब्ध न हों, लेकिन यह भी सत्य है कि कोई भी ग्रंथ संभवत: ऐसा उपलब्ध नहीं है, जिसमें एक ही स्थान पर हिंदी कविता का समग्र इतिहास हमें प्राप्त हो। अत: डॉ. ‘मंगल’ का यह ग्रंथ कोरोना काल में विद्वान लेखक-चिंतक की सतत साधना और ततस्पर्शिनी दृष्टि के प्रतीक के रूप में आया है।
ग्रंथ में हिंदी कविता का इतिहास कुल 9 अध्यायों में विभाजित है, जिसमें कालक्रमानुसार आदिकालीन हिंदी कविता, भक्तिकालीन, रीतिकालीन, भारतेंदु एवं द्विवेदीयुगीन कविता, छायावादी एवं राष्ट्रीय, सांस्कृतिक कविता, प्रगतिवाली एवं प्रयोगवादी, नयी कविता, समकालीन हिंदी कविता नवगीत, समकालीन हिंदी ग़ज़ल व दोहा, महादेवी वर्मा का गीतिकाव्य, त्रिलोचन शास्त्री काव्य-संवेदना तथा छंद और मुक्त छंद अर्थात् हिंदी कविता के संपूर्ण विहंगम परिदृश्य के आरपार हम सहसा ही झांक सकते हैं। समकालीन हिंदी ग़ज़ल की किंवदंती के रूप में जाने-माने सर्वांग-संपूर्ण कवि माधव कौशिक का स्थापित ग़ज़लकार, चर्चित नवगीतकार एवं सुपरिचित प्रबंधकार के रूप में विशेष अध्ययन यहां काबिलेगौर है। माधव के अपने लेखन के बारे में उनकी यह पंक्तियां हमारा ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट करती हैं, ‘जो भी लिखा, जैसा भी लिखा, पूरी ईमानदारी, निष्ठा व प्रतिबद्धता की जमीन पर खड़े होकर लिखा। यही वजह है कि मैं खूब सुखी और संतुष्ट हूं। जीवन के तमाम अभावों की पूर्ति साहित्य-सर्जन के आनंद से ही हो जाती है।
हिंदी कविता के लगभग 120 वर्ष पुराने इतिहास को एक स्थान पर उपलब्ध कराने वाला डॉ. लालचंद गुप्त ‘मंगल’ का सद्य: प्रकाशित ग्रंथ ‘हिंदी कविता का इतिहास’ निश्चय ही एक बड़े अभाव की पूर्ति करता है।