प्रदीप कुमार राय
फेफड़े जी… फेफड़े जी…। हमें पता है कि आप ही वो हो, जो हमारी रक्षा करते हो। शरीर के दूसरे अंग आपके मुकाबले क्या हैं। इन दिनों हर तीसरा आदमी अपने फेफड़ों को कुछ यूं महत्व दे रहा है। एक खास मित्र तो कहीं से धुन चुराकर ये पंक्तियां गुनगुनाते नजर आए… मैं और मेरे फेफड़े अक्सर तनहाई में यूं बतियाते हैं कि तुम ऐसे हो गए तो क्या होगा, तुम वैसे हो गए तो क्या होगा। भाई इनसान ऐसा करे भी क्यों न? जब कोरोना की दूसरी लहर में उसको गरज ही फेफड़ों से है।
वाकई इनसान की यह श्रेष्ठता है कि बिना मतलब तो वो अपने शरीर के किसी अंग को भी ज्यादा भाव नहीं देता। अपने खुद के शरीर के भी उस अंग को घास डालता है, जिससे ज्यादा दिक्कत आने का खतरा हो। उसका फंडा क्लियर है, जरूरत पड़ने पर गधे को पिताश्री कहने का फार्मूला अपनाओ, बिना मतलब अपने शरीर में भी टाइम न खपाओ।
कोरोना की पहली लहर में तो व्यक्ति पूरी देह को मन्दिर कहकर पूरे शरीर की सेवा करने लगा। दूसरी लहर में उसको पता चल गया कि ताजा हालात में मन्दिर के मुख्य देवता फेफड़े हैं। इसके रुष्ट होते ही मन्दिर की घंटियां बजनी तुरंत बंद हो जाएंगी। फेफड़ों की स्तुति में कविता गढ़ने वाले कवि की यह पंक्तियां लोगों को खूब भा रही हैं—‘इतना नाराज थे ऐ दोस्त (फेफड़े) तो कम से कम जताया तो होता। दिल की जगह तुम भी ले सकते थे, बस एक बार बताया तो होता… दिल का क्या है, वो तो टूटता है, फिर जुड़ जाया करता है, ऐ फेफड़े! तू गर नाराज़ हो तो इनसान मौत की तरफ मुड़ जाया करता है।’
एक सज्जन ने अभी हाल में आत्मा की महिमा बताने वाले अपने आध्यात्मिक गुरु के सामने सवाल दाग दिया—‘आत्मा से अपने को क्या लेना। होगी ये श्रेष्ठ… न कभी मरने वाली, न गलने वाली, न सड़ने वाली। न नजर आती, न किसी काम की। हां, बस यूं ही बड़ी बनी फिरती है। जबकि फेफड़ों के बारे तो स्पष्ट है कि ये देवता लंबी-लंबी सांस वाले किसी भी प्राणायाम व्यायाम से प्रसन्न होकर इनसान की सांसें चलाता है। इसलिए ध्यान केवलम एक ‘फेफड़े…’ ‘फेफड़े…’
इन दिनों तो फेफड़ा स्पेशल व्यायाम और प्राणायाम का दौर है। जिस वक्त भी दिगाम में कोरोना की फेफड़ों पर मार याद आई, उसी वक्त शेषनाग से भी बड़ी फूंक मार फेफड़े खाली कर देते हैं लोग। गुब्बारे फुलाने से फेफड़े ठीक रहते हैं, ये मालूम पड़ते ही लोग रोज कई-कई पैकेट गुब्बारे फुलाकर देह की पूरी हवा निकाल देते हैं।
शरीर से पूरी हवा निकाल चाहे चक्कर खाकर गिर जाएं, लेकिन फेफड़ों पर हाथ रखकर फिर भी उनकी सेवा में जुटे हैं… तुम्हीं मेरे मन्दिर, तुम्हीं मेरी पूजा… तुम्हीं देवता हो। फेफड़े अब तो इनसान के झांसे में आ जाएंगे, लेकिन जिस दिन मतलब निकला… उस दिन फेफड़ों की ये सेवा बंद। इनसान का फंडा क्लियर है… सुलफाय यार किसके, दम लगाया और खिसके।