देशपाल सौरोत/हप्र
पलवल, 10 दिसंबर
पलवल में बृहस्पतिवार को भी नेशनल हाईवे पूरी तरह से जाम रहा। बृहस्पतिवार को बुंदेलखंड के किसानों ने धरनास्थल पर तीनों कृषि कानूनों के विरोध में मुंडन करवाया। किसानों ने कहा कि सरकार ने एयरपोर्ट बेचे, बैंक बेचे, शिक्षा बेची, रेल बेची और अब खेती को बेचने के लिए सरकार ने गलत नंबर भी डायल कर दिया है। अब हम रूकने वाले नहीं है, चाहे जान चली जाए पर सरकार को उनके इरादे में कामयाब नहीं होने देंगे। बुंदेलखंड के किसान दिनेश कुमार निरंजन ने अपने साथियों के साथ सरकार के खिलाफ विरोध जताते हुए मुंडन कराया। किसानों ने कहा कि धरने को आज आठ दिन बीत चुके है, लेकिन गूंगी-बहरी सरकार पर कोई असर दिखाई नहीं दे रहा है। किसानों का कहना था कि सरकार को सोचना चाहिए जब देश का अन्नदाता सड़कों पर है तो देश का राजा कैसे गद्दी पर बैठ सकता है, उसे भी गद्दी छोड़कर किसानों के बीच आना चाहिए।
सत्ता में नहीं रहने देंगे : चढूनी
संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि सरकार को कृषि संबंधी तीनों कानूनों वापस लेने के साथ एमएसपी पर कानून लागू करना ही होगा। नहीं तो सरकार को हम सत्ता में नहीं रहने देंगे। चढूनी ने अंबानी व अदानी पर निशाना साधते हुए कहा कि अनाज को अपने गोदामों में जमा करने के बाद इसे महंगी कीमतों पर बेचेंगे। जिसका असर आम आदमी पर पड़ेगा। इसके अलावा हरपाल सिंह ने कहा कि बाबा रामदेव कहते है कि कृषि के लिए बनाए गए तीनों कानून ठीक है, क्योंकि बाबा रामदेव किसानों से 16 रुपए किलो गेहूं खरीदकर उसका आटा बनाकर उसे हमें ही 40 रुपए किलो बेच रहे हैं, तो उनका तो इसमें फायदा है। सरकार किसानों के साथ अन्याय कर रही है।
आंदोलन चलाना किसान की मजबूरी : पाटेकर
देश की प्रमुख समाजसेवी मेघा पाटेकर ने पलवल में धरना स्थल पर पहुंचकर कहा कि सरकार कारपोरेट क्षेत्र की खेती में घुसपैठ करा रही है। उन्होंने कहा कि ऐसे कानून क्यों लागू किये गये जिनमें इतने संशोधन की जरूरत है। कृषि आज भी घाटे का सौदा है। जिसके चलते आज देश में हर सत्रह मिनट में एक किसान की आत्महत्या हो रही है। इसलिये किसान की मजबूरी है कि वो जीवटता के साथ आंदोलन चलाएं। उन्होंने कहा अगर सरकार संवेदनशील है तो किसानों के जिस प्रस्ताव का जवाब वह 21 दिन या 51 दिन में देगी उसे एक दिन में भी दे सकती है। उन्होंने कहा सरकार की मंशा यह है कि खाद्य आपूर्ति में भी पूंजी निवेश लाया जाये जो किसानों के जीने मरने का सवाल है और आंदोलन चलाना किसान की मजबूरी है।