शारा
इस बार भी मैं फ्लैशबैक के पाठकों को मुग़ल-ए-आज़म की कहानी नहीं सुनाऊंगी क्योंकि यह सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि महाकाव्य है जिसे पाठकों ने सुन भी रखा है और देखा भी है। विशुद्ध प्रेम कहानी है सलीम और राजाओं के दरबार में नाचने वाली दासी के बीच पनपे प्यार की जिसे सलीम का बाप अथवा राजा यह कहकर नामंजूर कर देता है कि शहजादे का नचनिया से रिश्ता मंजूर नहीं। कहानी बदस्तूर पुरानी है लेकिन उसे छौंका गया है अलग मसाले से। और ये मसाले जरा महंगे हैं। इस फिल्म की भव्यता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसके एक बहुचर्चित गीत पर ही 10 हज़ार डॉलर का खर्च आया था, जबकि होर्डिंग बनाने वाले जी. काम्बले को छह लाख रुपये में पटाया गया। वैसे इस फिल्म पर काम 1944 से शुरू हो गया था लेकिन कुछ पैसे की तंगी और कुछ अनियमितताओं के चलते यह फिल्म बननी बंद हो गई थी। आपको पता है कि इसका संगीत किसने दिया था? नौशाद ने। गीत लिखे थे शकील बदायूंनी ने जिन्हें बड़े गुलाम अली समेत कई गायकों ने गाया। फिल्म की सफलता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सिनेमा हॉलों के टिकट विंडो पर दो दिन दर्शक खड़े रहे। जो रिकॉर्ड मदर इंडिया ने बनाए थे वे सारे मुग़ल-ए-आज़म ने तोड़े। उस जमाने में ऐसी भव्य फिल्म बनाने की कल्पना करना ही टेढ़ी खीर है। लेकिन के. आसिफ की कल्पना को सलाम। आठवें फिल्मफेयर अवॉर्ड समारोह में इसने 4 फिल्मफेयर पुरस्कार झटके। यह ऐसी प्रथम ब्लैक एंड ह्वाइट मूवी थी, जिसे डिजिटली कलर्ड किया गया था। इसका कलर्ड वर्जन 12 नवंबर, 2004 को रिलीज हुआ था। मुंबई में यह मराठा मंदिर में रिलीज हुई और पूरे 3 साल तक यह उस सिनेमाघर से नहीं उतरी। सिनेमा हॉल के बाहर पृथ्वीराज कपूर का विशाल कटआउट लगाया गया था। लेकिन इस उद्घाटन समारोह में फिल्म के हीरो दिलीप कुमार नहीं आए थे। कारण के. आसिफ ने दिलीप कुमार की बहन अख्तर से शादी रचा ली थी। दिलीप कुमार इस लव मैरिज के खिलाफ थे। दूसरा मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच अबोलापन। दोनों का प्यार ताजा-ताजा टूटा था। के. आसिफ बड़े रंगीन किस्म के इंसान थे। उनकी दूसरी शादी नृत्य को नया मुहावरा देने वाली सितारा देवी से हुई थी। तीसरी शादी निगार सुलताना से। इस भारी-भरकम फिल्म के प्रोड्यूसर थे शपूर जी पैलोन जी। एक वक्त ऐसा भी आया था जब के. आसिफ धनाभाव के कारण सारी उम्मीदें छोड़ चुके थे तब उन्होंने यह प्रोजेक्ट कमाल अमरोही को थमा दिया था। वही कमाल अमरोही जिन्होंने पाकीजा निर्देशित की थी। मुगले-आज़म में उन्होंने संवाद लिखे हैं। सारी फिल्म में संवाद ही हैं जो दर्शकों के मुंह पर चढ़े हैं भले ही उर्दू जुबान के कारण उन्हें अर्थ समझ न आते हों। यह कहानी मूलत: पाक गए नाटक (1922) अनारकली के लेखक और निर्देशक इम्तियाज की अनारकली पर आधारित थी। इस प्रेम कहानी से के. आसिफ इतने प्रभावित थे कि उन्होंने मुगले-आज़म बना डाली। उन्होंने इस कहानी को पटकथा में बदलने के लिए चार उर्दू लेखकों को रिक्र्यूट किया—अमानुल्लाह खान (जीनत अमान के पिता), वजाहत मिर्जा, कमाल अमरोही, एहसान रिजवी। पहले इस फिल्म की हीरोइन के रूप में सुरैया का नाम चल रहा था। जैसे ही पटकथा का काम संपन्न हुआ, के. आसिफ ने नरगिस को हीरोइन के रूप में चुनकर चंद्रमोहन को अकबर, डीके सप्रू को सलीम का रोल देकर बॉम्बे टॉकीज स्टूडियो में शूटिंग शुरू कर दी, लेकिन शूटिंग के दौरान पेश आई दिक्कतों के कारण प्रोजेक्ट रोक दिया गया। सियासी तनाव बढ़ रहा था। देश विभाजन (1947) हो चुका था। फिल्म के प्रोड्यूसर रहे शिराज अली पाकिस्तान चले गए थे। चंद्रमोहन की हार्टअटैक से 1949 में मृत्यु हो गई थी। तब शिराज अली जाते-जाते शापूरजी का नाम सुझा गए। किसी तरह वह फिल्म को प्रोड्यूस करने के लिए तैयार हो गए। उनकी हामी भरते ही 1950 में नए चेहरों के साथ फिल्म की शूटिंग शुरू हुई। रेगिस्तान की तपती रेत में शूटिंग करते वक्त दिलीप कुमार कई बार बीमार हुए। इस फिल्म में काम करते हुए मधुबाला को दिल की बीमारी लगी जो बाद में उनकी मौत का कारण बनी। हथियारों से लैस होकर रेगिस्तान में नंगे पैर चलने पर पृथ्वीराज कपूर को छाले पड़ गए थे, लेकिन उन्होंने पूरी तरह खुद को निर्देशक के हवाले किया था। तबला वादक जाकिर हुसैन का पहले सलीम के बचपन के रोल के लिए विचार हो रहा था, लेकिन बाद में जलाल आगा को लिया गया। जलाल आगा वही जिन्होंने ‘शोले’ फिल्म में ‘महबूबा ओ महबूबा’ गाया था। ‘प्यार किया तो डरना क्या’ मोहन स्टूडियो में लगे शीश महल पर शूट किए गाने पर ही दस लाख रुपये उस जमाने में खर्च आया था। यह शीश महल लाल किले का प्रतिरूप था। अकबर और सलीम के बीच युद्ध के लिए 2000 ऊंट, 400 घोड़े, 8000 सैनिक जयपुर कैवेलरी से मंगवाए गए थे। एक अकेला शॉट लेने के लिए सिनेमैटोग्राफर आरडी माथुर को आठ-आठ घंटे सेट लगाना पड़ता था। 125 दिनों में खत्म होने वाली शूटिंग को 500 दिन लगे।
इस फिल्म के प्रीमियर के निमंत्रण पत्र भी बिल्कुल मुगलिया स्टाइल में दिए गए। प्रीमियर में बड़ी-बड़ी हस्तियां शिरकत करने आईं। उस समय ही प्रति टिकट 100 रुपये में बिका। टिकट बिक्री के लिए मची हायतौबा को देखकर पुलिस बुलानी पड़ी। मुग़ले-आज़म 5 अगस्त, 1960 को देशभर के 150 सिनेमाघरों में रिलीज की गई। समीक्षकों ने इसे 100/100 अंक दिए। वर्ष 2004 में जब इसे दोबारा रंगीन पिक्चर प्रस्तुत किया तो काफी दिक्कतें आईं। मूल नेगेटिव काफी दयनीय हालत में थे। पहले इन्हें साफ किया, फंगस उठाई गई। स्कैन करके 10 मेगावाट के आकार में संभाला गया। रंगीन बनाने में 18 माह का समय लगा। मुगले-आज़म परिवार से जुड़ी कहानी तो थी ही, साथ ही साथ इसमें हिंदू-मुस्लिम के बीच धार्मिक सहिष्णुता की भी बात की गई है। एक तरफ तो यह फिल्म पिता-पुत्र के रिश्तों पर प्रकाश डालती है, दूसरी तरफ एक राजा के जनता के प्रति क्या कर्तव्य होते हैं, उस पर भी प्रकाश डालती है। साथ ही औरत के अस्तित्व की भी बात करती है। अनारकली द्वारा हिंदू भक्तिमय गीत गाना, अकबर द्वारा श्रीकृष्ण का पालना झुलाना, मुस्लिम राज दरबार में जोधाबाई की शिरकत करना राष्ट्रीय सौहार्द की बात करती है। समीक्षकों ने समीक्षा करते वक्त अनारकली की ऐतिहासिक उपस्थिति पर भी सवाल उठाये थे जो इस फिल्म की लोकप्रियता में दफन हो गये।
निर्माण टीम
निर्देशक : के. आसिफ
पटकथा लेखक : अमान, कमाल अमरोही, वजाहत मिर्जा, अहसान रिज़्वी
मूल रचना : इम्तियाज अली की अनारकली
प्रोड्यूसर : शापूरजी पालोनजी
सिनेमेटोग्राफी : आरडी माथुर
गीतकार : शकील बदायूंनी
संगीत : नौशाद
सितारे : पृथ्वीराज कपूर, दिलीप कुमार, मधुबाला, दुर्गा खोटे
गीत
मुहब्बत की झूठी कहानी : लता मंगेशकर
जब प्यार किया तो डरना क्या : लता मंगेशकर
बेकस पे करम कीजिए सरकारे-मदीना : लता मंगेशकर
खुदा निगहेबान हो तुम्हारा : लता मंगेशकर
ऐ मुहब्बत जिंदाबाद : मोहम्मद रफी
तेरी महफिल में किस्मत : लता मंगेशकर, शमशाद बेगम
शुभ दिन आयो राज दुलारा : उस्ताद बड़े गुलाम अलीखां
हमें काश तुमसे : लता मंगेशकर
वो आए सुबह : लता मंगेशकर
यह दिल की लगी कम क्या होगी : लता मंगेशकर
ऐ इश्क ये सब दुनियावाले : लता मंगेशकर
मोहे पनघट पे नंदलाल : लता मंगेशकर
प्रेम जोगन बनके : उस्ताद बड़े गुलाम अली खां
ऐ मेरे मुश्किल : लता मंगेशकर