शमीम शर्मा
वह भी समय था जब हैडमास्टर बगल में बैंत रखा करते और बच्चों को धमकाते हुए कहा करते-लाइन पे आ जाओ, नहीं तो बक्कल तार द्यूंगा। इस बात का अर्थ इतना-सा हुआ करता कि जो बच्चे कहे में नहीं हुआ करते या जिनका पढ़ाई में ध्यान नहीं होता, उन्हें सुधारने के लिये चेतावनी स्वरूप लाइन पर आने का पाठ पढ़ाया जाता। तब किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन दुनिया के सभी बच्चों से लेकर बड़े-बड़ों तक को लाइन पर आना ही पड़ेगा। सबके सब ऑनलाइन यूं अटके हैं जैसे नये घरों की चौखट पर तोते लटके होते हैं।
हमने तो बचपन में यही सुना था कि लाइनों पर सिर्फ रेलगाड़ियां ही आती हैं पर अब तो पूरी दुनिया ही लाइनों पर बैठी है। अभी तक तो शॉपिंग ही ऑनलाइन हुआ करती थी पर अब कामधन्धों से लेकर रिश्ते-नाते तक ऑनलाइन हो गये हैं।
हाल ही में अपनी एक मित्र के घर जाने का मौका मिला। मास्क वगैरह पहन कर तैयार होकर मैं पहुंची तो क्या देखा कि उनके बाहर वाले कमरे में तो साहब जी वर्क फ्रॉम होम में जुटे हुए थे, ड्राइंगरूम में मेरी सहेली ऑनलाइल क्लास लेने में तल्लीन थी और डाइनिंग टेबल पर लैपटॉप के सामने उनका दस वर्षीय बेटा मुंह बाये बैठा था। बैडरूम में उनकी बिटिया मोबाइल पर अपनी ऑनलाइन क्लास लगा रही थी। यानी कि सारा कुणबा ही ऑनलाइन विराजमान था।
अब मुझे देखना यह था कि मेरी जगह कहां होगी। ऑनलाइन होने में खलल न पड़ जाये, इसलिये सब इशारों में ही बतिया रहे थे। मैंने वापस आने में ही भलाई समझी।
ऑनलाइन के इस युग में प्रेमियों को इस बात का गम नहीं कि उनकी प्रियतमा उनसे बात नहीं कर रही। दुख इस बात का है कि वे देर रात तक ऑनलाइन विचरण कर रही हैं। एक मनचले का मानना है कि कुछ भी कहो, कांग्रेस के राज में एड्स वगैरह चाहे आ लिये हों पर कोरोना जैसे भयंकर वायरस कभी नहीं आये जो पूरी दुनिया लाइनों पर आ गई।
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एक बर की बात है अक नत्थू जाम मैं भूंडी ढाल फंस रह्या था, अर वो खड़ा-खड़ा अपने हेलमट कै खाज करण लाग्या। धोरै खड़्या सुरजा बोल्या—रै बावली तरेड़! हेलमट के उप्पर तैं खाज करै है, इसनैं काढ कै सिर खुजा ले। नत्थू बिचरता सा बोल्या—जद तेरी कांख मैं खाज होवै है तो फेर तू के बुरसट काढ के खाज कर्या करै?