शील कौशिक
मधुकांत की प्रस्तुत 18वीं पुस्तक ‘प्रेरक लघुकथाएं’ में 146 लघुकथाएं सम्मिलित हैं। संग्रह में वर्तमान में तेजी से बदलते समय की जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सड़ी-गली मान्यताओं, विसंगतियों, विडंबनाओं पर व्यंग्य करने के साथ-साथ शीर्षक को सार्थक करती बच्चों को सफल व सार्थक जीवन जीने की प्रेरणा देती प्रेरक लघुकथाएं सम्मिलित हैं। लघुकथा में किसी न किसी रूप में निशक्त, दिव्यांग भी प्रेरणा का स्रोत बने हैं।
‘रक्तदान’ लघुकथा में यमलोक में भी रक्तधाम की यात्रा अर्थात रक्तदान करने वाले का स्वर्ग में सबसे ऊंचा स्थान है, रक्तदान के लिए प्रेरित करने वाली बढ़िया लघु कथा है।
मूल से ब्याज ज्यादा प्यारा होता है, इस उक्ति को सार्थक करती लघुकथा है ‘पोते की शिक्षा’। जब पोता कहता है कि उसकी मैडम ने बताया है कि घर में कोई भी व्यक्ति धूम्रपान करता है, तो वह धुआं सांस द्वारा हमारे नाजुक फेफड़ों को खराब कर देता है। दादा बीड़ी का बंडल तोड़कर बाहर फेंक देते हैं।
‘पांव पर कुल्हाड़ी’ तथा ‘दूध का दूध’ शिक्षा जगत से जुड़ी लघुकथाएं हैं। ‘दूध का दूध’ में एक विद्यार्थी Rs200 रुपये में बोर्ड के प्रश्नपत्र खरीद लेता है और जब परीक्षा में एक भी सवाल नहीं आया तो प्रपत्र उसे मुंह चिढ़ाते हुआ मालूम दिया।
बच्चे का सहज, सरल स्वभाव अभिव्यक्त होता है ‘नियम’ लघुकथा में, जिसमें वह सहज भाव से पूछता है, ‘भगवान कहां रहते हैं?’ ‘ मंदिर में। ‘और अल्लाह!’ ‘मस्जिद में!’ ‘क्या सारे एक घर में नहीं रह सकते?’ ‘तुम ऐसा क्यों कह रहे हो!’ ‘अकेले-अकेले उदास रहते होंगे?’ धार्मिक सहिष्णुता का पाठ पढ़ाती बहुत अच्छी लघुकथा है।
परंपराएं जब बोझ बन जाएं तो उन्हें बदलना ही चाहिए। यही संदेश देती ‘सम्मान की कोथली’ में बहन भाई की आर्थिक स्थिति को समझते हुए उसके लिए कोथली भेजने से मना कर देती है।
लीक से हटकर उदात्त भाव की लघुकथा है, ‘प्रार्थना’, जिसमें पिता सुपरिंटेंडेंट से अपने बेटे का रोल नंबर बताते हुए कहता है कि मेरा बच्चा यदि नकल करे, तो उसे न करने दें और यदि न माने, तो उसे उचित सजा भी दें, क्योंकि इस आदत के चलते वह सदा के लिए अपंग बन जाएगा।
वस्तुतः एक तरह से ये लघुकथाएं लेखक के दीर्घ अनुभव तथा स्मृतियों की झांकियां हैं। लेखक का अधिकांश साहित्य सामाजिक विषयों जैसे रक्तदान, नेत्रदान जागरूकता कन्या संरक्षण, वन्य-जीव संरक्षण, जल, ऊर्जा संरक्षण आदि से जुड़ा है।
पुस्तक : प्रेरक लघुकथाएं लघुकथाकार : मधुकांत प्रकाशन : मोनिका प्रकाशन, दिल्ली पृष्ठ : 159 मूल्य : रु. 450.