जब मीडिया से लेकर राजनीति तक सब कुछ ड्रग्समय अर्थात् हेरोइनमय हुआ पड़ा हो, तब बताओ बिहार में लोग जहरीली शराब पीकर मर गए। भाई जब पांच-दस ग्राम की पुड़िया से लेकर टनों में हेरोइन उपलब्ध हो, तब शराब पीकर मर जाना सचमुच पिछड़ापन है। अब पंजाब को ही देखो। जब राहुल गांधीजी ने अपनी पार्टी वालों से पूछा कि शराब कौन-कौन पीता है तो बेचारे बड़े शर्मिंदा हुए। जबकि दल विशेष पर चिट्टे के खूब आरोप लगे पर वे शर्मिंदा कतई नहीं हुए। पंजाब इस मामले में सचमुच आगू स्टेट है।
दूसरा आगू स्टेट महाराष्ट्र है। वहां भी शराब की बात बताओ कौन कर रहा है। वहां राजनीति की बात हो तो शुगर सेठों की होती है और अपराध की बात हो तो ड्रगलाॅर्ड्स की बात होती है। बताओ पहले जब सुशांत सिंह राजपूत की मौत हुई थी, तब और अब जब आर्यन खान की गिरफ्तारी हुई तब किसी ने भी शराब का जिक्र तक भी किया। तब भी पुड़िया का ही जिक्र था और अब भी पुड़िया का ही जिक्र था, हालांकि अब तो वह टनों में कट्टों और बोरियों में भी उपलब्ध थी।
हमें तो ऐसा लगता है कि यह अगड़े और पिछड़े का ही फर्क है। अफसोस बस इसी बात का है कि जिस नीतीश कुमार को विकास पुरुष कहा जाता है, वे भी शराब से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे। वे शराबबंदी पर अटके हैं और लोग शराब के लिए जान देने पर आमादा हैं।
राजनीति में शराब अब पुराना मुद्दा है। नया मुद्दा हेरोइन है। पंजाब ने पांच साल पहले इस मुद्दे को पहचान लिया था, महाराष्ट्र ने अब पहचान लिया। पता नहीं बिहार वाले कब पहचानेंगे। कायदे से तो उन्हें सुशांत सिंह राजपूत वाले कांड के वक्त ही पहचान लेना चाहिए था। लेकिन देखो वे अभी तक शराब पीकर ही मर रहे हैं। वैसे भी जुआ-वुआ खेलने वालों को तो फिर भी लोग सम्मान के योग्य मान लेते थे, पर शराब पीकर दिवाली मनाने को कभी मान्यता नहीं मिली।
इन दिनों अगर वे जमकर पटाखे फोड़ते तो देशभक्त भी मान लिए जाते। इस दिवाली पर देशभक्ति सिर्फ पटाखे फोड़ने में थी और अच्छे हिंदू होने का तमगा बोनस के रूप में मिलता सो अलग। ऐसे में ये बंदे शराब की तरफ क्यों लपके? कहीं नीतीश कुमारजी ने वहां हुए दोनों उपचुनाव जीत लिए, इस खुशी में तो नहीं। या फिर शायद इस गम में कि लालूजी वहां दोनों उपचुनाव हार गए।
फिर तो भैया हिमाचल के मुख्यमंत्री को यह गम घणा सताना चाहिए था। खैर, असल बात यह है कि दिवाली इस तरह नहीं मनायी जानी चाहिए थी। दिवाली मनाने का यह एकदम पिछड़ा तरीका है। विकास पुरुष को विकास दिखाना था तो कुछ महाराष्ट्र-गुजरात टाइप करते। गुजरात टाइप की शराबबंदी करते-करते, वह बिहार के माफिया टाइप का विकास क्यों दिखा गए।