संजय द्विवेदी
यह साल जा रहा है, बहुत-सी कड़वी यादें देकर। कोरोना और उससे उपजे संकटों से बने बिंब और प्रतिबिंब आज भी आंखों में तैर रहे हैं और डरा रहे हैं। यह पहला साल है, जिसने न जाने कितने जानने वालों की मौत की सूचनाएं दी हैं। पहले भी बीमारियां आईं, आपदाएं आईं किंतु उनका एक वृत्त है, भूगोल है, उनसे प्रभावित कुछ क्षेत्र रहे हैं। यह कोरोना संकट तो अजब है, जहां कभी भी और कोई भी मौत की तरह दर्ज हो रहा है। इस बीमारी की मार चौतरफा है। रोजी पर, रोजगार पर, तनख्वाह पर, शिक्षा पर, समाज पर और कहां नहीं।
डरे हुए लोग रोज उसके नये रूपों की सूचनाओं से हैरत में हैं। बचा-खुचा काम व्हाट्सएप और अन्य सामाजिक माध्यमों पर ज्ञान और सूचनाएं उड़ेलते लोग कर रहे हैं। यह कितना खतरनाक है कि हम चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे। अपनी अस्त-व्यस्त होती जिंदगी और उसे तिल-तिल खत्म होते देखने के सिवा। ऐसे में नये साल का इंतजार भी है और भरोसा भी है कि शायद चीजें बदल जाएं। कैलेंडर का बदलना, जिंदगी का बदलना हो जाए। नया साल उम्मीदों का भी है, सपनों का भी। उन चीजों का भी जो पिछले साल खो गयीं या हमसे छीन ली गयीं।
मनुष्य की जिजीविषा ही उसकी शक्ति है, इसलिए खराब हालात के बाद भी, टूटे मन के बाद भी लगता है कि सब कुछ ठीक होगा और एक सुंदर दुनिया बनेगी । 2021 का साल इस मायने में बहुत सारी उम्मीदों का साल है, टूटे सपनों को पूरा करने के लिए फिर से जुटने का साल है। 2020 की बहुत सारी छवियां हैं, कोरोना से टूटते लोग हैं, महानगरों से गांवों को लौटते लोग हैं, बीमारी से मौत की ओर बढ़ते लोग हैं, नौकरियां खोते और गहरी असुरक्षा में जीते हुए लोग हैं। मनुष्य इन्हीं आपदाओं से जूझकर आगे बढ़ता है और पाता है पूरा आकाश। इसीलिए अटल बिहारी वाजपेयी लिख पाए :-
जड़ता का नाम जीवन नहीं है,
पलायन पुरोगमन नहीं है।
आदमी को चाहिए कि वह जूझे
परिस्थितियों से लड़े,
एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े।
हमें अपने सपनों को सच करना है, हर हाल में। आपदा को अवसर में बदलते हुए आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते हुए। इस जाते हुए साल ने हमें दर्द दिए हैं, आंसू दिए हैं पर वह हमें तोड़ नहीं पाया है। न हमारी जिजीविषा को, न हमारे मन को, न ही जीवन की गति को। नये अवसरों और नये रास्तों की तलाश में यह सारा वर्ष गुजरा है। हमारा समय, संवाद और शिक्षा सब कुछ डिजिटल होती दिखी। अब कक्षाओं का डिजिटल होना भी एक सच्चाई है। संवाद, वार्तालाप, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों को डिजिटल माध्यमों पर करना संभव हुआ है। इसे ज्यादा सरोकारी, ज्यादा प्रभावशाली बनाने की विधियां निरंतर खोजी जा रही हैं।
इस दिशा में सफलता भी मिल रही है। गूगल मीट, जूम, जियो मीट, स्काइप जैसे मंच आज की डिजिटल बैठकों के सभागार हैं। जहां निरंतर सभाएं हो रही हैं, विमर्श निरंतर है और संवाद 24×7 है। कहते हैं डिजिटल मीडिया का सूरज कभी नहीं डूबता। वह सदैव है, सक्रिय है और चैतन्य भी। हमारे विचार, व्यवहार और आदतों में भी बदलाव साफ दिख रहा है। हम बदल रहे हैं, देश बदल रहा है। अब वह पुराने साल को बिसार कर नये साल में नयी आदतों के साथ प्रवेश कर रहा है। ये आदतें सामाजिक व्यवहार की भी हैं और निजी जीवन की भी। यह व्यवहार और आदतों को भी बदलने वाला साल है।
स्वास्थ्य, सुरक्षा और डिजिटल दुनिया की त्रिआयामी कड़ी ने इस जाते हुए साल को खास बनाया है। 2020 ने हमें प्रकृति के साथ रहना सिखाया, पर्यावरण के प्रति ममत्व पैदा किया तो ‘हाथ जोड़कर नमस्कार’ को विश्व पटल पर स्थापित कर दिया। साफ-सफाई के प्रति हमें चैतन्य किया। इसका असर भी दिखा। साफ आसमान, साफ नदियां, खिला-खिला सा पूरा वातावरण,चहचहाते पक्षी कुछ कह रहे थे। दर्द देकर भी इसने बहुत कुछ सिखाया है, समझाया है। हमें कीमत समझायी है-अपनी जमीन की, माटी की, गांव की और रिश्तों की। परिवार की वापसी हुई है। जिसे हमारे विद्वान वक्ता मुकुल कानिटकर ‘घरवास’ की संज्ञा दे रहे हैं। लाॅकडाउन में जीवन के नये अनुभवों ने हमें बहुत कुछ सिखाया है। नयी पदावली से हम परिचित हुए हैं। एक नये जीवन ने हमारी जीवनशैली में प्रवेश किया है।
हम कोरोना से सीखकर एक नयी जिंदगी जी रहे हैं। बीता हुआ समय हमें अनेक तरह से याद आता है। हम सब स्मृतियों के संसार में ही रहते हैं। बीते साल की ये यादें हमें बताएंगी कि हमने किस तरह इस संकट से जूझकर इससे निजात पाई थी। किस तरह हमारे कोरोना योद्धाओं ने हमें इस महासंकट से जूझना और बचना सिखाया। अपनी जान पर खेलकर हमें जिंदगी दी। वे चिकित्सा सेवाओं के लोग हों, पुलिसकर्मी हों, पत्रकार हों या विविध सेवाओं से जुड़े लोग, सब अग्रिम मोर्चे पर तैनात थे। बहुत सारे सामाजिक संगठनों और निजी तौर पर लोगों ने राहत पहुंचाने के भी अनथक प्रयास किए, इसकी जितनी प्रशंसा की जाए, वह कम है।
इस साल ने हमें मनुष्य बने रहने का संदेश दिया है। अहंकार और अकड़ को छोड़कर विनीत बनने की सीख हमें मिली है क्योंकि प्रकृति की मार के आगे किसी की नहीं चलती। प्रकृति से संवाद और प्रेम का रिश्ता हमें बनाना होगा, तभी यह दुनिया रहने लायक बचेगी। महात्मा गांधी ने कहा था-पृथ्वी हर मनुष्य की जरूरत को पूरा कर सकती है, परंतु पृथ्वी मनुष्य के लालच को पूरा नहीं कर सकती ।
नये साल-2021 की पहली सुबह का स्वागत करते हुए हम एक अलग भाव से भरे हुए हैं। इस साल ने तमाम बुरी खबरों के बीच उजास जगाने वाली खबरें भी दी हैं, अयोध्या में राममंदिर की नींव का रखा जाना, नये संसद भवन का शिलान्यास, नयी राष्ट्रीय शिक्षा का आना, राष्ट्रीय भर्ती एजेंसी की परिकल्पना, सेना में महिलाओं को स्थाई कमीशन के साथ बोडो ग्रुप और सरकार के बीच समझौता साधारण खबरें नहीं हैं।
इसके साथ ही हमारी राजनीति, संस्कृति और साहित्य की दुनिया के अनेक नायक हमें इस साल छोड़कर चले गए, जिनकी याद हमें लंबे समय तक आती रहेगी। इन विभूतियों का न होना एक ऐसा शून्य रच रहा है, जिसे भर पाना कठिन है। बावजूद इसके उम्मीद है कि नव वर्ष सारे संकटों से निकाल कर नया उजाला हमारी जिंदगी में लाएगा। उस रोशनी से हिंदुस्तान फिर से जगमगा उठेगा। एक नया भारत बनने की ओर है, यह आकांक्षावान भारत है, उत्साह से भरा, उमंगों से भरा, नये सपनों से उत्साहित और नयी चाल में ढलने को तैयार। निराला जी की इन पंक्तियों की तरह :-
नव गति, नव लय, ताल-छंद नव
नवल कंठ, नव जलद-मन्द्र रव;
नव नभ के नव विहग-वृंद को
नव पर, नव स्वर दे!
लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान,
दिल्ली के महानिदेशक हैं।