मलिक मुहम्मद जायसी, जायस (रायबरेली) के रहने वाले थे। चेचक ने उनके सांवले रंग के चेहरे को और भी असुन्दर बना दिया था। मलिक मुहम्मद जायसी अमेठी के तत्कालीन राजा के काव्य-प्रेमी और कवि पोषक होने की चर्चा सुनकर दरबार में पहुंचे। राजा की नजर जायसी पर पड़ी तो वे रूप-रंग देखकर संयम खो बैठे और जोर से हंस पड़े। राजा के हंसने पर दरबारी भी ठहाका लगाने लगे। अपनी सूरत पर दरबार में हो रहे अपमान पर जायसी ने दुखी स्वर से यह रचना कही-‘मोहि कां हंससि कि कोंहरहिं। अर्थात मुझ पर हंस रहे हो या कुम्हार (मुझे बनाने वाले ईश्वर) पर? एकाएक यह प्रश्न सुनकर राजा को अपनी अशिष्टता पर लज्जा आई और वे समझ गये कि यह पहुंचे हुए कवि हैं। परिमार्जन करते हुए आदर के साथ कवि जायसी की आवभगत की गयी।
प्रस्तुति : अंजु अग्निहोत्री