जी. पार्थसारथी
पाकिस्तान का राजकाज चलाना कभी भी आसान काम नहीं रहा है, यहां तक कि बेनजीर भुट्टो और नवाज शरीफ जैसे मंजे हुए राजनेता के लिए भी नहीं। लेकिन इमरान खान में अनुभव की कमी और प्रशासन चलाने की जटिलताओं की समझ नाकाफी होने के अलावा घमंड भरा मिजाज है। इसके चलते उनके सामने आए दिन मुश्किलें पैदा होती हैं। इससे पहले इस्लामिक जगत में दीगर मुल्कों के बीच आपसी ऐतिहासिक, वर्गीय और सांस्कृतिक होड़ में खुद को न फंसाकर पाक ने अपने पत्ते काफी कुशलता से चले थे। लेकिन इमरान को मुगालता है कि उनकी छवि कभी डिग नहीं सकती। उन्हें लगता है नये वैश्विक इस्लामिक गठजोड़ का संस्थापक सदस्य बनने से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उनका रुतबा बढ़ जाएगा। इस नवीन इस्लामिक गुट को बनाने के सूत्रधार मलेशिया के नब्बे वर्षीय प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद और उनके जैसे ही अति महत्वाकांक्षी तुर्की के राष्ट्राध्यक्ष रेसेप एर्दोगन हैं। किंतु सऊदी अरब के नेतृत्व वाले अरब जगत ने इस विचार पर गंभीर एतराज जताए हैं। सऊदी अरब की भृकुटि तनने से बुरी तरह घबराए इमरान खान को महातिर की पहल से जुड़ने की दिशा में उठाए कदम पीछे खींचने पड़े। इसी बीच प्रधानमंत्री मोदी ने सऊदी अरब और यूएई के साथ संबंध प्रगाढ़ करने के लिए प्रभावशाली यत्न किए हैं, खासकर ऊर्जा के क्षेत्र में।
यूएई ने अभूतपूर्व संकेत देते हुए पिछले साल अबू धाबी में आयोजित 43 सदस्यीय आर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीस के इजलास में भारत के विदेश मंत्री को विशेष रूप से बतौर सम्माननीय मेहमान आमंत्रित किया था। हालांकि, इमरान खान ने इस बुलावे के लिए यूएई से एतराज जताया था। किंतु जल्द ही उन्होंने पाया कि देश की अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए विदेशी खैरात की बेतरह जरूरत है और मदद पाने के लिए तेल-संपन्न अरब मुल्क जैसे कि सऊदी अरब और यूएई की शरण में फिर से जाना ही होगा, इसलिए मन मसोसकर रह गए। इस तरह इस्लामिक जगत में व्यक्तिगत रूप से महती भूमिका निभाने का उनका सपना चूर-चूर हो गया! इस्लामिक संगठन (ओआईसी) में पाकिस्तान की शिरकत अब जम्मू-कश्मीर पर शोर मचाने तक सीमित है।
तुर्की के प्रधानमंत्री एर्दोगन के साथ इमरान की निकटता की वजह से जिन समस्याओं का पाकिस्तान को सामना करना पड़ रहा है, उसके बावजूद इमरान ने फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की आलोचना करने में एर्दोगन की लीक पर चलना मुनासिब समझा है। इसके बाद मैक्रों की कड़ी प्रतिक्रिया उस वक्त आई जब फ्रांस में शरण लेने आए मुस्लिमों शरणार्थियों के साथ हाल में पहुंचे युवक ने क्रूरता से सम्माननीय फ्रेंच अध्यापक का सर कलम कर दिया। इस पर एर्दोगन ने कहा ः ‘ मैक्रों नाम के इस व्यक्ति को मुस्लिमों और इस्लाम से क्या समस्य़ा है? मैक्रों को अपना दिमागी इलाज करवाना चाहिए।’ अपनी ओर से इमरान खान ने भी कहा ः ‘राष्ट्रपति मैक्रों ने ईश निंदा की श्रेणी में पड़ते और इस्लाम एवं मुकद्दस मोहम्मद साहिब को निशाना बनाने वाले कार्टूनों को प्रकाशित करने की छूट देकर, अपने देश के मुस्लिम नागरिकों के अलावा शेष दुनिया के मुसलमानों को जानबूझकर भड़काने की राह चुनी है।’ अब यूरोप भर में इस्लामिक देशों से आए उन शरणार्थियों के विरुद्ध रोष और गुस्सा बढ़ता जा रहा है, जिन्हें पश्चिमी देशों के तौर-तरीकों एवं मूल्यों को अपनाने में गुरेज है।
खुद को दुनियाभर के मुसलमानों का महान संरक्षक जताने का इमरान का दावा चीन के शिनजियांग प्रांत में चल रहे घटनाक्रम पर अपनाए गए रवैये की वजह से विरोधाभासों से भरा है। संयुक्त राष्ट्र के आम इजलास की मानवाधिकार कमेटी में 39 देशों के संयुक्त बयान में चीन से शिनजियांग प्रांत के बाशिंदे उइगर मुस्लिमों को बंदी शिविरों में डालने से रोकने को कहा गया है, साथ ही हांगकांग के लोगों की स्वतंत्रता की कद्र करने को भी कहा है। ऐसे में क्या पाकिस्तान को दुनियाभर के मुस्लिमों को दरपेश मुश्किलों के प्रति ईमानदार चिंताएं जताने वाला देश कहा जा सकता है? जबकि अमूमन 10 लाख चीनी उइगर मुसलमानों को अपनी धार्मिक आस्था पर कायम रहने की वजह से अकारण बंदी शिविरों में डाला गया है। यही समय है जब भारत सक्रियता दिखाकर इमरान के इन दोहरे मापदंडों को उजागर करे।
जहां इमरान खान की विदेश नीति से विश्वभर में कइयों की भौहें तन गई हैं वहीं खुद पाकिस्तान के अंदर उनके घमंडी स्वभाव और घरेलू नीतियों में उतार-चढ़ाव को लेकर खासी आलोचना हो रही है। जब सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा उनको दरकिनार कर वरिष्ठ विपक्षी नेताओं से सीधे मिलते हैं तो उन्हें दूसरी ओर ताकने के सिवा कोई चारा नहीं रहता। इमरान की अलोकप्रियता में होता लगातार इजाफा उस वक्त स्पष्ट हो गया जब लंदन में बैठे नवाज़ शरीफ ने पाकिस्तान के विपक्षी नेताओं को एकजुट कर दिया और देशभर में इमरान-हटाओ प्रदर्शन चल निकले। नवाज़ शरीफ और अन्य विपक्षी नेता इमरान को देश का ‘चुना हुआ’ प्रधानमंत्री न कहकर ‘चुनींदा’ (सेना का) प्रधानमंत्री कहते हैं। 11 विपक्षी दल, जिसमें नवाज़ शरीफ की पाकिस्तान मुस्लिम लीग भी शामिल है, ने हाल ही में वरिष्ठ पश्तून नेता और जमात-ए-उलेमा-ए-पाकिस्तान के अध्यक्ष मौलाना फज़लुर रहमान के नेतृत्व में एकजुट होने को हाथ मिलाया है। विपक्षी दलों की एकता का उदाहरण गुजरावालां में आयोजित संयुक्त प्रदर्शन की विशालता से देखने को मिला, जब हजारों प्रदर्शनकारी और राजनीतिक कार्यकर्ता रैली में इकट्ठे हुए। गुजरांवाला नवाज़ शरीफ का गढ़ होने के अलावा पाकिस्तानी सेना का हृदयस्थल भी है।
इस रैली से पहले 11 विपक्षी दलों के नेताओं ने बैठक की थी, इसमें पाकिस्तान डेमोक्रेटिक फ्रंट नामक संयुक्त मोर्चा बनाना तय किया गया है, जिसका ध्येय इमरान खान सरकार को उखाड़ फेंकना है। रैली में नवाज शरीफ के पूर्व रिकॉर्डिड भाषण ने उपस्थित लोगों में जोश भर दिया। इस घटनाक्रम में भारत भी एक कारक रहा क्योंकि भारतीय मीडिया ने पाकिस्तान की संसद में एक मंत्री के बयान को अनेक बार दिखाया है, जिसमें वे पुलवामा में जैश-ए-मोहम्मद की भूमिका को अपरोक्ष रूप से स्वीकार करते दिखाई देते हैं। अगर लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे गुटों को पाकिस्तान अपनी मदद जारी रखते पाया गया तो अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय कार्यबल क्या कार्रवाई करेगा, इसको लेकर डर पैदा हो गया है।
अपनी आलोचना की परवाह न करते हुए पाकिस्तानी सेना ने आर्मी रेंजर्स (जिसमें अधिकांश पंजाबी हैं) को आदेश दिया कि वह सिंध के पुलिस महानिदेशक के जरिए मरियम के पति मुहम्मद सफदर अवान को गिरफ्तार करवाए। जब अनइच्छुक पुलिस महानिदेशक ने इस अवैध आदेश की पालना करने में आनाकानी दिखाई तो उसे भी हिरासत में लिया गया। अपने मुखिया की बेजा हिरासत से आहत हुए सिंध प्रांत के लगभग सभी बड़े पुलिस अधिकारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए। डरी हुई सेना ने तुरंत पीछे हटते हुए अदालती आदेश के जरिए मरियम के पति को रिहा करवा दिया। अब जबकि इमरान खान की नाकाबिलियत का सबको पता ही है वहीं देखना यह है कि पाकिस्तानी सेना के बड़े-छोटे फौजी खुद अपने सेनाध्यक्ष जनरल बाजवा और आईएसआई मुखिया ले. जनरल फैज हमीद की साफ दिख रही बेवकूफी को लेकर क्या सोचते होंगे।
लेखक पूर्व राजनयिक हैं।