सरस्वती रमेश
होली यानी बहार का मौसम। रस, रंग और उमंग का पर्व। इन रंगों के स्वभाव में खिलखिलाहट है, आह्लाद है। ये हमें जीने की कला सिखाते हैं। जीवन के उल्लास और अल्हड़पन को जीने का मौका देते हैं। घर-परिवार में उमंगों की बरसात करते हैं। हंसने-हंसाने, मिलने-मिलाने के मौके मुहैया कराते हैं। जीवन में आह्लाद को भरने और उसे रंगीन करने का अवसर देते हैं।
कहने को तो त्योहारों की संस्कृति हम इंसानों द्वारा बनाई गई है, लेकिन अगर गौर से देखें तो फाल्गुन महीने में प्रकृति भी रंगों की होली खेलती है। बगिया में चारों ओर रंग-बिरंगे फूल खिल जाते हैं। हरियाली छा जाती है। जैसे प्रकृति भी रंगों के उत्सव में सराबोर हो उठी हो। हमें अपने इंद्रधनुषी रंगों के माध्यम से प्रेरणा दे रही हो। जीवन में रंगों के उल्लास को उतारने का संदेश दे रही हो। रंग आशाओं का प्रतीक होते हैं। जब बसंत के इस मौसम में प्रकृति आशाओं के रंग में रंगी हुई निखर रही है तो हमारा जीवन रंगहीन, आशाहीन क्यों रहे। हमें भी अपने जीवन को नयी उम्मीदों के रंग से भरकर आगे बढ़ना चाहिए।
उदासी को धोना
दुनिया में सबसे चटक और सुंदर रंग होता है खुशी का रंग और होली मौज, मस्ती, हुल्लड़ और खुशहाली का त्योहार है। जब घर की महिलाएं त्योहारों की तैयारी में लग जाती हैं तो घर का माहौल अपने आप बदल जाता है। चारों ओर रौनक सी छा जाती है। बिना महिलाओं के आगे बढ़े त्योहार का असली मजा कहां। बच्चे तैयारियों को देख चहक उठते हैं तो घर के पुरुष भी रसोई में महिलाओं का सहयोग कर त्योहारों को साथ मनाने का अहसास कराते हैं। तैयारियों के बाद शुरू होती है होली की ठिठोली। भौजाई के साथ ननद-देवर की होली न हुई तो असली होली देखने को कहां मिली! रंग लगाने के भी अपने मायने होते हैं। रंगों का उल्लास निराशाओं, दुख-दर्द को मिटाकर हमें उमंग से सराबोर कर देता है। और होली जैसे त्योहार तो हमें भीतर तक रंगने आते हैं। मतलब खुशहाली ऊपरी या दिखावटी न हो। हम भीतर तक रंगों की रंगीनियत में भीग जाएं। हंसें, नाचें, गाएं, मृदंग बजाएं।
दूरियां मिटाने आई होली
पिछले वर्ष कोरोना महामारी में हमने बहुत कुछ खोया। इसने सामाजिक दूरी के साथ मन में भी दूरियां पैदा कर दी। लोगों का मिलना-जुलना, साथ उठना-बैठना, शादी-ब्याह का उत्सव सब बंद। सखियों-सहेलियों का मिलना-जुलना छूट गया। दोस्तों-रिश्तेदारों से हम अजनबियों जैसे मिले। कोरोना की पाबंदियों ने खून के रिश्तों को भी दूर होने पर मजबूर कर दिया। अब होली आई है तो लोग घरों का रुख कर रहे हैं। अपनों से मिलने पहुंच चुके हैं। गले मिलकर तमाम दूरियों को मिटाने की कोशिश हो रही है। हालांकि खौफ अभी बरकरार है, फिर भी दिलों का मैल साफ करने और फिर से एक ही रंग में रंगने का समय है। मनमुटाव, टकराहट की सारी उदासी को दूर करने की जुगत हो रही है। होली के बहाने सारी कटुता, बैर को धोकर रिश्तों में नयी चमक लाने की कोशिशें जारी हैं।
अपनेपन का पर्व
होली एक ऐसा त्योहार है जब सिर्फ परिवार के लोग ही साथ नहीं मिलते बल्कि पूरा मोहल्ला, पूरा गांव होली खेलने के लिए एकजुट होता है। महिलाओं और पुरुषों की टोलियां बनती हैं। गीत गाए जाते हैं। ढोलक बजती है। और सभी अपनी प्रसन्नता को सामूहिक रूप से व्यक्त करने के लिए नाचते झूमते हैं। दरअसल, त्योहारों का संदेश भी यही है। हम एक दूसरे से मिलकर साथ रहें। सिर्फ खुशहाली के मौकों पर ही नहीं, दुख में भी। जिस तरह खुशी हमें बांधती है उसी तरह दुख भी हमारे संबंधों को प्रगाढ़ करें। हमें बिखरने से रोकें। हमारे मन में एक दूसरे के साथ का रंग कभी बोझिल न हो। प्रेम का सरस रंग हमारे रिश्तों को रंगीनियत से भरे। देखा जाये तो दुनिया की तमाम बाहरी बुराइयां हमारी भीतरी खामियों का परिणाम हैं। अगर हम बुराइयों को अपने भीतर से निकाल फेंकें तो बाहरी दुनिया भी सुंदर हो जाये। ये त्योहार इन्हीं खामियों को मिटाने और दुनिया को सुंदर बनाने का सन्देश लेकर आते हैं। होली के मतलब को जानना ही रंगों के त्योहार का सौंदर्य है। सिर्फ बाहरी तौर पर रंग लगाना और लगवाना असली होली नहीं है। असली होली खेलने के लिए रंग के पीछे छिपे अर्थ को भी समझना होगा।