वीरेंद्र प्रमोद/निस
लुधियाना, 11 मई
मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह और क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू के बीच चल रहे वाकयुद्ध पर यदि कांग्रेस आलाकमान ने तुरंत कोई कदम नहीं उठाया तो 2022 के शुरू में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। कांग्रेस और पंजाब के राजनीतिक गलियारों से एकत्र जानकारी के अनुसार नवजोत सिंह सिद्धू ने परिस्थितियों को भांपते हुए पार्टी में अपना धड़ा मजबूत करना शुरू कर दिया है। उनका कहना है कि वह पंजाबियों विशेषकर सिखों के धार्मिक ग्रंथों की हुई बेअदबी के आरोपियों को काबू करने और उन्हें सजा दिलाने, राज्य से नशा माफिया समाप्त करने और कोटकपूरा गोलीकांड व बहबकलां में पुलिस की गोली से दम तोड़ने वाले दो सिखों युवकों को न्याय देने के मामले को लेकर मुख्यमंत्री द्वारा किये गये वादों का रिपोर्ट कार्ड मांग रहे हैं।
इन मुद्दों को लेकर पंजाब कांग्रेस दो हिस्सों में बंट गई लगती है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह के समर्थन में अभी तक खुलकर केवल तीन वरिष्ठ मंत्री सुंदर शाम अरोड़ा, साधू सिंह धर्मसोत और स्थानीय निकाय मंत्री ब्रह्म महिंद्रा ही सामने आये हैं। इन तीनों नेताओं ने नवजोत सिद्धू के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्रवाई कर पार्टी से निकालने की मांग तक कर डाली है जबकि पंजाब के ही तीन अन्य वरिष्ठ मंत्री जिनमें चरणजीत सिंह चन्नी और सुखजिंदर सिंह रंधावा भी शामिल थे, ने सिद्धू द्वारा उठाए गये मुद्दों को उचित बताते हुए कहा है कि उन्होंने तो पंजाबियों को न्याय देने की मांग की है। अब तक सिद्धू का विरोध करने वाले लुधियाना के सांसद रवनीत सिंह बिट्टू भी उनके हक की बात करने लगे हैं। जालंधर से कांग्रेस विधायक व पूर्व हाकी खिलाड़ी प्रगट सिंह पहले ही सिद्धू के समर्थन में बोल चुके हैं। ऐसी परिस्थितियों में यदि कांग्रेस आलाकमान हरकत में न आया तो हालत क्या हो सकते हैं, इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है।