नीतियों में खोट
कटौती के कारण छोटे से लेकर बड़े उद्योग-धन्धों पर बिजली की कमी का असर हो रहा है। गर्मी के मौसम में बिजली की खपत बढ़ जाती है। सच्चाई तो यह है कि सरकारों द्वारा बिजली के नये संयंत्र नहीं लगाये जा रहे हैं। इसके अलावा जो यूनिट खराब हो गई हैं, उसको ठीक करवाने के स्थान पर प्राइवेट सेक्टर से बिजली खरीदने को बढ़ावा दिया गया। आज कोयले की कमी का बहाना बनाया जा रहा है जबकि पहले सरकार ने कोयला उत्पादन के संयंत्र प्राइवेट लोगों को बेच दिए। वर्तमान का बिजली संकट इसी का परिणाम है कि प्राइवेट कम्पनियां अपनी मर्जी से अपनी शर्तों पर बिजली सप्लाई कर रही हैं। लोगों को सौर ऊर्जा प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
जगदीश श्योराण, हिसार
नागरिकों का फर्ज
हर साल गर्मी का मौसम आते ही तकरीबन हर राज्य में बिजली कटौती होने लगती है। इस समय पूरी दुनिया ग्लोबल वार्मिंग के संकट से जूझ रही हैं। एक तो महानगरों में कंक्रीट के जंगलों के विस्तार व वन क्षेत्रों के सिमटने से साल-दर-साल तापमान में वृद्धि होती जा रही है, दूसरा जरूरत के साथ-साथ प्रतिष्ठा व विलासिता का घटक भी जुड़ा है। समृद्धि के साथ-साथ एसी व कूलर जरूरी हो गए हैं। नि:संदेह भारत जैसे विकासशील देश में संसाधन सीमित हों तो हर नागरिक का फर्ज बनता है कि बिजली का उपयोग संयम व सामंजस्य से करें।
पूनम कश्यप, नयी दिल्ली
परमाणु ऊर्जा का विकल्प
देश में जब भी कोई कमी पड़ती है प्रायः जनता कभी भी संयम नहीं दिखाती। लोगों में जागरूकता का अभाव है। वैसे आजादी के बाद से आज तक सरकारी तौर पर भी बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया। थर्मल और हाइड्रो बिजली प्लांट लगाए गये। आज ‘एटॉमिक पॉवर प्लांट्स’ का ज़माना है लेकिन सरकार इस ओर धीमी चाल से चल रही है जबकि यह कार्य द्रुत गति से होना चाहिए। इस समस्या का यही एकमात्र समाधान है। तभी बिजली संकट दूर होगा।
एमएल शर्मा, कुरुक्षेत्र
समीक्षा की जरूरत
गर्मियों में बिजली की मांग बढ़ने का अंदाजा केंद्र व राज्यों के बिजली प्रबंधकों को पहले से ही रहता है। इसके लिए प्लांटों की मरम्मत के साथ-साथ तेल व कोयले का पर्याप्त भंडारण भी जरूरी है। यदि समय रहते जिम्मेदार लोगों द्वारा जरूरी कदम उठाए गए होते तो बिजली संकट से रूबरू न होना पड़ता। विद्युत उत्पादन से मांग अधिक होने पर पॉवरकट लगाना तकनीकी रूप से जरूरी हो जाता है। ऐसे में हुक्मरानों द्वारा हरियाणा समेत देशभर की बिजली उत्पादन व वितरण नीति की तुरंत समीक्षा करने की जरूरत है ताकि भविष्य में बिजली संकट न उभरे।
देवी दयाल दिसोदिया, फरीदाबाद
समय से कदम उठायें
हर बार की तरह इस बार भी हरियाणा व देश के कई भागों में बिजली संकट गंभीर रूप धारण कर रहा है। ग्लोबल वार्मिंग के साथ-साथ वातानुकूलित जीवन शैली के कारण भी बिजली का संकट गहराता जा रहा है। बिजली संकट के स्थायी समाधान के लिए जरूरी है कि हमारे नीति-नियंता समय रहते कदम उठाएं। इसके साथ-साथ यह भी जरूरी है कि जनता बिजली की फिजूल खर्ची को रोके तथा सरकार का सहयोग करे। सुविधाओं से युक्त जीवनशैली के कारण भी बिजली संकट बढ़ा है। अतः इस ओर भी ध्यान दिया जाए।
सतीश शर्मा, माजरा, कैथल
राजनीति न हो
बिजली उत्पादन के प्रमुख घटक एनटीपीसी ने कोयले की कमी को परोक्ष रूप से नकार दिया है। कोयला कंपनियों के पास कोयला भंडार पर्याप्त मात्रा में होना, किंतु मांग-आपूर्ति के बीच संतुलन नहीं बनना, कुप्रबंधन एवं ओछी राजनीति सामने आ रही है। बिजली की मांग-आपूर्ति के अनुरूप संतुलन बनाये रखने एवं प्रबंधन स्तर पर बेहतरीन सामंजस्य बिठाने के साथ साथ ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों- सोलर एनर्जी, न्यूक्लियर एनर्जी के आविष्कार, अनुसंधान एवं विकास पर भी समानांतर ध्यान रखना होगा। तभी हम बिजली समस्या का स्थाई समाधान खोजने में सफल होंगे।
युगल किशोर शर्मा, फरीदाबाद
पुरस्कृत पत्र
दूरदृष्टि की कमी
भारत में 70 प्रतिशत बिजली का उत्पादन कोयले पर आधारित संयंत्रों से होता है। इस समय ज्यादातर संयंत्र कोयले की कमी के कारण अपनी पूर्ण क्षमता के अनुरूप बिजली का उत्पादन नहीं कर पा रहे हैं। रेलवे के पास पर्याप्त संख्या में वैगन उपलब्ध नहीं हैं, रेलवे ट्रैक खाली नहीं हैं। हमारे नीति-नियंता वक्त रहते इन का प्रबंध कर सकते हैं। लेकिन उनके पास या तो विजन की कमी है या जनता की कठिनाइयों के प्रति संवेदना की। आग लगने पर कुआं खोदने की प्रवृत्ति तभी रुकेगी जब नीति-नियंता अपनी जिम्मेदारी को समझेंगे। वातानुकूलित जीवन-शैली भी एक बाधा है। मुफ्त बिजली देने जैसी लोक-लुभावन नीतियों पर भी संयम बरतने की आवश्यकता है।
शेर सिंह, हिसार